COVID-19 से संक्रमित डॉक्टर के अंतिम संस्कार में रुकावट ड़ालने के मामले को मेघालय हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया, निर्देश जारी किए

LiveLaw News Network

17 April 2020 10:59 AM GMT

  • COVID-19 से संक्रमित डॉक्टर के अंतिम संस्कार में  रुकावट ड़ालने के मामले को मेघालय हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया, निर्देश जारी किए

    मेघालय हाईकोर्ट ने गुरुवार को COVID-19 से संक्रमित एक वरिष्ठ चिकित्सक की मौत हो जाने के बाद उसके अंतिम संस्कार में बाधा ड़ालने के मामले को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने कहा कि 15 अप्रैल को हुई इस घटना ने ''हर उचित सोच वाले व्यक्ति की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।''

    जस्टिस एच.एस थंगख्वी और जस्टिस डब्ल्यू .डेंग्डोह की पीठ इस मामले में हाईकोर्ट की मेघालय बार एसोसिएशन की तरफ से दायर एक जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। जिसमें 13 अप्रैल को शिलांग में सामने आए COVID-19 के पहले मामले के बाद कई मुद्दों पर प्रकाश डाला गया था। इस मामले में एक वरिष्ठ चिकित्सक की मौत हो गई थी।

    वरिष्ठ अधिवक्ता एस. पी मनंता, और बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष वकील के.के पॉल ने निम्नलिखित मुद्दे उठाए थे-

    -राज्य में COVID-19 के इलाज के लिए कोई विशेष अस्पताल नहीं है।

    -महामारी के कारण मरने वाले व्यक्तियों को दफनाने या उनका दाह संस्कार के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।

    - COVID-19 संक्रमित व्यक्तियों को दफनाने/ दाह संस्कार करने के लिए कोई निर्दिष्ट स्थान नहीं है।

    -चिकित्साकर्मियों के लिए पीपीई की कमी है।

    -मृतक डॉक्टर के प्राथमिक संपर्क में आने वाले व्यक्तियों का कोई परीक्षण नहीं किया गया है।

    -क्वारंटाइन में रखे गए व्यक्तियों के लिए भोजन की व्यवस्था का अभाव है।

    उन्होंने मृतक डॉक्टर के अंतिम संस्कार में स्थानीय निकायों द्वारा उत्पन्न किए गए अवरोध को भी उजागर किया।

    इस याचिका के जवाब में एडवोकेट जनरल ए.कुमार ने दलील दी कि राज्य सरकारी जरूरी कदम उठा रही है। याचिकाकर्ताओं को कोई भी बेबुनियाद आरोप लगाने से पहले राज्य के अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों को देखना चाहिए।

    पीठ ने स्थानीय निकायों के उस आचरण की भी आलोचना की जिसके कारण मृतक डॉक्टर के अंतिम संस्कार में बाधा उत्पन्न हुई थी।

    पीठ ने कहा कि-

    ''पहले मामले का पता लगने और वरिष्ठ चिकित्सक के दुर्भाग्यपूर्ण निधन के बाद की घटनाओं के मामले में यह अदालत कुछ नहीं कर सकती है। परंतु जिस अनपयुक्त तरीके से राज्य के अधिकारियों ने इस मामले को संभाला है और स्थानीय निकाय/दरबार शन्नोंग ने जो आचरण किया है,उस पर टिप्प्णी करते हुए पीठ ने कहा कि इन घटनाओं ने हर सही या उचित सोच वाले व्यक्ति की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। यह देखने में आया है कि राज्य के अधिकारियों ने इस संकट में नागरिकों की परेशानियों को कम करने के लिए इन दरबार शन्नोंग पर अत्यधिक विश्वास किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि नोंगपोह और झालुपारा नामक दो दरबार शन्नोंग अपने कार्य और आचरण के कारण समाधान का हिस्सा बनने की बजाय समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।''

    न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि मृतक चिकित्सक के प्राथमिक संपर्क में आने वालों का परीक्षण सुनिश्चित करें। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि बेथानी अस्पताल में रखे गए रोगियों और अन्य क्वारंटाइन गृहों में रखे गए लोगों को भी पर्याप्त सहायता उपलब्ध कराई जाए।

    राज्य सरकार डेड बॉडी मैनेजमेंट के मामले में भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करें। जिनके अनुसार बड़े स्तर पर कर्मचारियों को पीपीई की आपूर्ति की जाए और वहीं आम जनता को इस संबंध में सूचित करने और उनको जागरूकत करने के लिए भी इन निर्देशों को अधिसूचित किया जाए।

    दाह संस्कार में बाधा ड़ालने के मामले में न्यायालय ने आदेश दिया कि-

    ''कोई भी व्यक्ति, स्थानीय निकाय/दरबार शोंग या संगठन अगर इस महामारी को नियंत्रित करने के मामले में राज्य के अधिकारियों या मृत शरीर के प्रबंधन,दाह-संस्कार ओर अंत्येष्टि जैसे किसी भी मामले में बाधा डालता है तो उसके साथ कानून के अनुसार निपटा जाए। वहीं कानून के उपयुक्त प्रावधानों के तहत केस दर्ज किए जाएं।''

    राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वह जनता को इस मामले में विशेष रूप से सचेत या जागरूक करें दे। ताकि दफनाने या अंतिम संस्कार के लिए बनाए गए मैदानों में किसी भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना को घटित होने से रोका जा सकें जो घटना 15 अप्रैल 2020 को देखी गई थी।

    इस मामले में दायर की जाने वाली स्टेटस रिपोर्ट पर 21 अप्रैल को विचार किया जाएगा।




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