70% मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस इंटर्न को स्टाइपेंड नहीं दे रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमिशन से जवाब मांगा
Sharafat
15 Sept 2023 5:26 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (15 सितंबर) को नेशनल मेडिकल कमिशन (National Medical Commission) को उस शिकायत का जवाब देने का निर्देश दिया कि 70 प्रतिशत मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टरों को कोई स्टाइपेंड (Stipend) नहीं देते हैं या न्यूनतम निर्धारित स्टाइपेंड नहीं दे रहे हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) को एक सारणीबद्ध चार्ट दाखिल करने और यह बताने का निर्देश दिया कि
(i) क्या मेडिकल इंटर्न के लिए स्टाइपेंड की कमी के बारे में उपरोक्त बयान सही है और
(ii) एनएमसी इंटर्नशिप स्टाइपेंड के भुगतान के मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठा रही है।
यह घटनाक्रम तब हुआ जब पीठ मेडिकल इंटर्न द्वारा आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसीएमएस) द्वारा वजीफे के भुगतान की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
एसीएमएस की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कर्नल (सेवानिवृत्त) आर बालासुब्रमण्यम ने कहा कि कॉलेज सशस्त्र कर्मियों के बच्चों की सेवा के इरादे से सेना कल्याण शिक्षा सोसायटी (एडब्ल्यूईएस) द्वारा बिना किसी लाभ के आधार पर चलाए जाते हैं । सीनियर एडवोके वकील ने बताया कि संस्था को कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही है।
पीठ ने हालांकि कहा कि वित्तीय बाधाएं छात्रों को स्टाइपेंड देने से इनकार करने का कारण नहीं हो सकतीं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा,
"क्या आप कह सकते हैं कि हम सफाई कर्मचारियों को भुगतान नहीं करेंगे क्योंकि हम नॉन प्रोफिटेबल हैं? यह आपके लिए लाभ है लेकिन यह उनके लिए आजीविका है। क्या आप कह सकते हैं कि हम शिक्षकों को भुगतान नहीं करेंगे?... हम युवा डॉक्टरों से काम नहीं ले सकते ...हर किसी को माता-पिता का सहयोग नहीं मिल सकता।"
सीजेआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट लॉ क्लर्कों को स्टाइपेंड के रूप में प्रति माह 80,000 रुपये का भुगतान कर रहा है और कहा कि एसीएमएस को कम से कम 1 लाख रुपये का भुगतान करना चाहिए।
बालासुब्रमण्यम ने कहा कि संस्था का अस्तित्व भी एक विचारणीय कारक है। उन्होंने पीठ को सूचित किया कि दिल्ली के राज्य शुल्क नियामक आयोग ने गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज की फीस 4,32,000 रुपये कम करके 3,20,000 कर दी है। .
इस बिंदु पर पीठ ने अन्य सरकारी कॉलेजों में भुगतान की जाने वाले स्टाइपेंड दरों की तुलना की और याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वे कितनी उम्मीद कर रहे हैं। याचिकाकर्ता की वकील एडवोकेट चारू माथुर ने जवाब दिया, ''25,000 रुपये।''
पीठ ने एसीएमएस को मेडिकल इंटर्न को स्टाइपेंड के रूप में 25,000 रुपये प्रति माह का भुगतान शुरू करने का निर्देश दिया। फिलहाल सौ इंटर्न हैं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "इंटर्नशिप की अवधि के दौरान इंटर्न को स्टाइपेंड का भुगतान करना आवश्यक है। एनएमसी द्वारा अपनाए गए नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।"
साथ ही न्यायालय ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि कॉलेज सेना के बच्चों के कल्याण के उपाय के रूप में चलाया जा रहा है और यह पूरी तरह से व्यावसायिक नहीं है। इसलिए इसने कॉलेज को अदालत के निर्देशों के संभावित वित्तीय प्रभाव के विवरण के साथ दिल्ली में शुल्क नियामक समिति से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी।
न्यायालय ने आदेश दिया कि इस तरह के बयान के आधार पर, समिति यह निर्णय लेगी कि अतिरिक्त भुगतान को पूरा करने के लिए शुल्क में वृद्धि आवश्यक है या नहीं। कोर्ट ने यह रियायत इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए दी कि कॉलेज में फीस में काफी सब्सिडी दी जाती है।
उन स्टूडेंट के संबंध में जिन्होंने ठीक पिछले बैच में इंटर्नशिप पूरी कर ली है, कोर्ट ने कहा कि वह एकमुश्त भुगतान तय करने के इच्छुक है।
वकील वैभव गग्गर ने इस बिंदु पर दलील दी कि 70% कॉलेज स्टाइपेंड का भुगतान नहीं कर रहे हैं। पीठ ने एनएमसी के वकील गौरव शर्मा को इस बयान पर जवाब देने और हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल : अभिषेक यादव और अन्य बनाम आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज | डब्ल्यूपी(सी) नंबर 730/2022