यदि पति-पत्नी ने कोर्ट द्वारा सत्यापित समझौता विलेख के जरिए अपने विवाद का समाधान किया है तो वैवाहिक मामला रद्द कर दिया जाना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट
Manisha Khatri
10 Jun 2022 4:48 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब पार्टियों ने अदालत द्वारा विधिवत रूप से सत्यापित समझौता विलेख के जरिए अपने पूरे विवाद को आपस में सुलझा लिया हो तो पति और पत्नी के बीच चल रहे वैवाहिक विवाद को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
जस्टिस चंद्र कुमार राय की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए पत्नी की शिकायत पर पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, 323 और डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत दर्ज एफआईआर और उसके बाद शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने यह आदेश देते समय दोनों पक्षों के बीच मार्च 2021 में निष्पादित समझौता विलेख को ध्यान में रखा है। इस विलेख को विधिवत सत्यापित भी किया गया था और निचली अदालत की सत्यापन रिपोर्ट के साथ हाईकोर्ट को भी भेजा गया था।
न्यायालय के समक्ष, आवेदकों (पति और उनके परिवार के सदस्यों) ने प्रस्तुत किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, 323 और डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत लंबित आपराधिक मामले की कार्यवाही को रद्द किया जाए क्योंकि विवाद के पक्षकारों ने समझौता किया है जिसे निचली अदालत द्वारा सत्यापित भी किया गया है।
आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि आवेदक नंबर-1 (पति) और प्रतिवादी नंबर- 2 (पत्नी) अपने बच्चों के साथ हंसी-खुशी रह रहे हैं,इसलिए इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं किया होगा।
इसे देखते हुए, कोर्ट ने जियान सिंह बनाम पंजाब राज्य व अन्य (2012) 10 सुप्रीम कोर्ट केस 303, नरिंदर सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य (2014)2 सुप्रीम कोर्ट केस 466 और मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण व अन्य (2019) 5 सुप्रीम कोर्ट केस 688 के मामलों में दिए गए फैसलों पर विचार किया।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि,
''वर्तमान मामले के तथ्यों के साथ-साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद को उन मामलों में रद्द कर दिया जाना चाहिए, जब पार्टियों ने अपने पूरे विवाद को आपस में समझौता करके सुलझा लिया हो और इस समझौते को न्यायालय द्वारा विधिवत रूप से सत्यापित किया गया हो। मामले का एक और पहलू यह है कि एफआईआर आईपीसी की धारा 498-ए, 323 और डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत दर्ज की गई है, जो माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नरिंदर सिंह (सुप्रा) में निर्धारित पैरा संख्या 29.4 में निर्दिष्ट श्रेणी और मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित पैरा संख्या 15.1 में निर्दिष्ट श्रेणी के अंतर्गत आती है,जिनके तहत वैवाहिक विवाद से संबंधित कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए रद्द किया जा सकता है।''
इस प्रकार तत्काल मामले में आईपीसी की धारा 498-ए, 323 और डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत दायर की गई चार्टशीट और इन धाराओं के तहत लिए गए संज्ञान के आदेश सहित मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल- राम प्रवेश व 3 अन्य बनाम यू.पी. राज्य व अन्य,।APPLICATION U/S 482 No. - 650 of 2022
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 282
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