कमाने योग्य विवाहित पुरुष पत्नी और बच्चों का खर्च उठाने के लिए बाध्य, दरिद्रता की दलील नहीं दे सकताः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट ने दोहराया
Manisha Khatri
21 Nov 2022 2:15 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक बार जब कोई व्यक्ति विवाह कर लेता है और एक परिवार का पालन-पोषण करने का फैसला कर लेता है, तो फिर वह मुड़कर यह नहीं कह सकता है कि वह विवाह से संबंधित अपने नैतिक और कानूनी दायित्व को निभाने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह आजीविका कमाने के मूड में नहीं है।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने विक्रम जामवाल बनाम गीतांजलि राजपूत व एक अन्य (2010) 1 जेकेजे 236 के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया और कहा,
''यह फैसला व्यक्ति को करना होता है कि उसे शादी करनी है या नहीं करनी है, लेकिन एक बार जब कोई व्यक्ति शादी करने का फैसला करता है, तो वह सभी कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य है और उन सभी दायित्वों का निर्वहन करता है जिनकी समाज और कानून अपेक्षा करते हैं और जिनका निर्वहन करने की आवश्यकता होती है।''
पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रधान सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी। प्रधान सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा पारित उस आदेश को बरकरार रखा था,जिसमें उसकी पत्नी और बेटी (उससे अलग रहने वाली) को भरण-पोषण देने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी देनदारियों को ध्यान में रखे बिना अत्यधिक दर पर यांत्रिक रूप से भरण-पोषण की राशि को तय कर दिया गया, जबकि सभी आवश्यक कटौती करने के बाद उसकी आय लगभग 12000 रुपये है। उसने यह भी कहा कि वह उनके खर्चों का ख्याल रखने के लिए तैयार हैं, बशर्तें वे वापस उसके साथ रहना शुरू कर दें।
इस मामले पर निर्णय देते हुए, जस्टिस कौल ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि एक व्यक्ति पर अपनी पत्नी, बच्चे / बच्चों और माता-पिता को बनाए रखने के लिए कर्तव्य की प्रकृति में कमाई की क्षमता को शामिल करने के लिए पर्याप्त साधनों की व्याख्या की गई है और जब तक एक व्यक्ति कमाने की क्षमता के साथ सक्षम है,तब तक वह इस आधार पर अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता (जो खुद को बनाए रखने में असमर्थ हैं) को बनाए रखने के अपने कानूनी कर्तव्य से नहीं बच सकता है,उसकी वास्तव में कोई आय नहीं है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं प्रतिवादियों को वापस लाने से इनकार कर दिया था और इस प्रकार, उनके पास याचिकाकर्ता से अलग रहने के लिए पर्याप्त आधार है।
तदनुसार, याचिका को बिना किसी योग्यता के पाया गया और खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल- शशि पॉल सिंह बनाम गुरमीत पॉल व अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 220
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