मृतक की विवाहित बेटी भी रेलवे अधिनियम के तहत मुआवजे की हकदारः बॉम्बे हाईकोर्ट

Manisha Khatri

15 Oct 2022 9:45 PM IST

  • Making Unfounded Allegations/Complaints Against Spouse With A View To Affect His/Her Job Amounts To Causing Mental Cruelty: Bombay High Court

    Image Source: High Court Bar Association, Nagpur's Website

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने माना है कि रेलवे दुर्घटना के शिकार हुए व्यक्ति की विवाहित बेटी भी रेलवे अधिनियम के तहत मुआवजे की हकदार होगी, भले ही वह उस पर निर्भर न हो।

    जस्टिस एम.एस. जावलकर की पीठ ने कहा, ''यदि रेलवे अधिनियम की धारा 123(बी)(i) को पढ़ा जाए तो यह आश्रित की परिभाषा है जिसमें बेटी शामिल है। विवाहित या अविवाहित बेटी की कोई योग्यता नहीं है। ऐसे में दावेदार मुआवजे की हकदार है।''

    कोर्ट ने मंजिरी बेरा बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि विवाहित बेटी कानूनी प्रतिनिधि होने के नाते मुआवजे की हकदार हैं और गैर-निर्भरता उसको मुआवजे देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।

    महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की एक 45 वर्षीय मजदूर याचिकाकर्ता मीना शहारे ने रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के 2013 के एक आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। ट्रिब्यूनल ने दुर्घटना की तारीख से ब्याज के साथ 8,00,000 रुपये के उसके दावे को खारिज कर दिया था।

    शहारे की शिकायत के अनुसार, उसके पिता 2011 में एक पैसेंजर ट्रेन से गोंदिया से वडसा की यात्रा कर रहे थे और ट्रेन में भीड़ के कारण वह गिर गए और उनकी तुरंत मृत्यु हो गई। याचिका के अनुसार घटना के वक्त वह कोच के दरवाजे के पास खड़े थे।

    रेलवे प्रशासन ने तर्क दिया कि मृतक बिना टिकट के यात्रा करने वाला यात्री था और उसकी अपनी लापरवाही के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी। यह भी कहा कि कथित घटना रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 123 और 124 के तहत कवर नहीं होती है। आगे यह भी कहा कि शहारे शादीशुदा है और इसलिए किसी भी मुआवजे की हकदार नहीं है।

    रीना देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए, बेंच ने कहा कि टिकट की अनुपस्थिति मुआवजे से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है। बेंच ने एक अन्य फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि अगर मृतक ट्रेन से गिरकर मर जाता है, तो उसके परिवार से टिकट पेश करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

    पीठ ने रेलवे को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता को 8 लाख रुपये मुआवजा दे। इसी के साथ पीठ ने कहा कि,

    ''ऐसे में मृतक की ओर से लापरवाही नहीं मानी जा सकती है जबकि यह रेलवे का सख्त दायित्व बनता है। उपरोक्त संदर्भित निर्णयों को देखते हुए, यह अनुमान लगाया जाना चाहिए कि मृतक एक वास्तविक यात्री था और उसका चलती ट्रेन से नीचे गिरना एक अप्रिय घटना थी।''

    केस टाइटल-श्रीमती मीना बनाम भारत संघ

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