समलैंगिक जोड़ों के लिए वैवाहिक समानताः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा यह एक विरोधात्मक याचिका नहीं

LiveLaw News Network

14 Oct 2020 11:20 AM GMT

  • समलैंगिक जोड़ों के लिए वैवाहिक समानताः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा यह एक विरोधात्मक याचिका नहीं

    दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायमूर्ति आशा मेनन की खंडपीठ ने बुधवार को दो समलैंगिक जोड़ों की तरफ से विवाह समानता की मांग करते हुए दायर याचिका पर सुनवाई की।

    श्री वैभव जैन और उनके साथी श्री पराग मेहता को भारतीय वाणिज्य दूतावास ने सिर्फ लैंगिग-रूझान या सैक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर उनकी शादी के पंजीकरण का प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था, जबकि डॉ कविता अरोड़ा और उनकी साथी सुश्री अंकिता खन्ना को पूर्वी दिल्ली स्थित एसडीएम के भवन में प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया था। वह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपनी शादी का पंजीकरण करवाने गई थी। 8 अक्टूबर, 2020 को न्यायमूर्ति नवीन चावला की एकल पीठ ने निर्देश दिया था कि इस याचिका को दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।

    उस निर्देश के बाद बुधवार को इस मामले की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने की और हाईकोर्ट ने पक्षकारों को काउंटर एफिडेविट्स और रिजाॅइंडर दायर करने का निर्देश दिया है। अब इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 8 जनवरी, 2021 को सूचीबद्ध किया गया है।

    याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी कि दोनों मामलों में अधिकारियों ने पुट्टस्वामी और नवतेज सिंह जौहर मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की उपेक्षा की है। जिनके तहत समलैंगिक जोड़ों को मानव गरिमा और निजता का अधिकार दिया गया है।

    यह कार्य ''समलैंगिक जोड़ों को मिली गरिमा को खत्म करने के समान या उनसे छीनने के समान है।''

    उन्होंने पीठ को बताया कि पुट्टस्वामी के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि निजता और सैक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है और नवतेज सिंह जौहर में एलजीबीटीक्यूआई लोगों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14,15,19 व 21 के तहत संरक्षण का हकदार ठहराया गया था।

    उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में अधिकारियों ने ऐसे तरीके से काम किया था, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकार्तओं से उनके अधिकारों को अलग कर दिया गया है। जबकि भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट की कई संविधान पीठों ने ऐसे जोड़ों को '' अंतर्निहित गरिमा व संवैधानिक नैतिकता की उम्मीद प्रदान की है।''

    पीठ ने प्रथागत कानूनों के तहत विवाह की अवधारणा की उत्पत्ति के मुद्दे के संबंध में अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि किसी भी मौजूदा कानून के तहत शादी की कोई परिभाषा नहीं है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि विदेशी विवाह अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता के पास अपील के रूप में एक वैकल्पिक उपाय भी उपलब्ध है।

    प्रश्नों का उत्तर देते हुए सीनियर एडवोकेट डॉ मेनका गुरुस्वामी ने याचिकाकर्ता को भारतीय वाणिज्य दूतावास की तरफ से भेजे गए संचारों को पढ़ा। जिनमें बताया गया था कि उनको शादी के पंजीकरण का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सकता है क्योंकि वाणिज्य दूतावास दिशानिर्देशों के तहत यह निषिद्ध है,हालांकि याचिकाकर्ताओं को विशेष रूप से यह नहीं दिखाया गया था।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा महावाणिज्य दूतावास को लिखे गए पत्र के जवाब में, उन्हें बताया गया था कि नवतेज सिंह जौहर के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में केवल आईपीसी के 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था,परंतु उसमें शादी का अधिकार प्रदान नहीं किया गया था। गुरुस्वामी ने कहा कि विवाह का अधिकार प्रथागत नहीं था,परंतु इसे एक वैधानिक अधिकार के रूप में एन्ट्रेन्च्ट किया गया था।

    वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ गुरुस्वामी ने ओस्नात अलिस बनाम यूओआई के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि फैसले में अदालत ने हरबंसलाल सहानिया पर भरोसा किया था और माना था कि एक वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता के आधार पर रिट क्षेत्राधिकार को हटाने का नियम एक विवेक का नियम है, कोई मजबूरी नहीं।

    दूसरा,धारा 17 के तहत अपील का प्रावधान केवल तभी उपलब्ध होगा जब विवाह अधिकारी द्वारा विवाह को पंजीकृत करने से इनकार किया गया हो। इस तरह के आदेश के अभाव में यह धारा लागू नहीं होती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में ऐसा कोई आदेश नहीं था क्योंकि याचिकाकर्ता को पंजीकरण प्रक्रिया में भाग देने से ही इनकार कर दिया गया था, इसलिए अपील का सवाल ही नहीं उठता है।

    उसने यह भी तर्क दिया कि विशेष विवाह अधिनियम केवल उन आधारों को प्रदान करता है जिन पर विवाह निषिद्ध है और इस मामले में रिट उपाय निहित है क्योंकि वे विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को भी चुनौती दे रहे हैं।

    उसने दलील दी कि पुट्टस्वामी और नवतेज सिंह जौहर मामले के तहत वास्तव में अनुच्छेद 21 के दायरे में विवाह के अधिकार को मान्यता दी गई थी और वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं को जस्टिस नरीमन और जस्टिस दीपक मिश्रा द्वारा दिए गए फैसले के ही पैराग्राफ को उद्धृत करते हुए ही ऐसा अधिकार देने से इनकार किया गया है। उसने अपनी दलीलों का निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि याचिकाकर्ता इस देश के अन्य नागरिकों के समान ही अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं।

    यूओआई यानी केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि यह स्थिति सनातन धर्म के इतिहास के विश्लेषण की मांग कर रही है। जिस पर अदालत ने कहा कि इस देश के कानून लैंगिक-तटस्थ हैं और यह राष्ट्र के नागरिकों के अधिकारों का मामला है और यह मामला विरोधात्मक नहीं है।

    पीठ ने यह भी पूछा कि क्या इस अदालत की अन्य पीठों के समक्ष कोई इसी तरह का मामला लंबित हैं, जिस पर वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ गुरुस्वामी ने कहा कि नहीं ऐसा कोई मामला नहीं है। उसने बताया कि हिंदू विवाह अधिनियम को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका लंबित है,परंतु उस मामले में पक्षकार खुद प्रभावित नहीं थे, लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता स्वयं प्रभावित पक्ष हैं। कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 8 जनवरी 2021 को करेगी।

    इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी, सुश्री अरुंधति काटजू, श्री गोविंद मनोहरन और सुश्री सुरभि धर ने किया।

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