आईपीसी की धारा 467 के तहत जालसाजी अभियोजन के लिए मार्कशीट 'मूल्यवान सुरक्षा' नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Brij Nandan

5 Dec 2022 11:28 AM GMT

  • आईपीसी की धारा 467 के तहत जालसाजी अभियोजन के लिए मार्कशीट मूल्यवान सुरक्षा नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आईपीसी की धारा 467 के तहत जालसाजी अभियोजन के लिए मार्कशीट 'मूल्यवान सुरक्षा (Valuable Security)' नहीं है।

    जस्टिस सुजॉय पॉल ने कहा,

    "महेंद्र कुमार शुक्ला (सुप्रा) के मामले में डिवीजन बेंच ने श्रीनिवास पंडित धर्माधिकारी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1980) 4 SCC 551 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात निर्णय का पालन किया है और यह माना है कि मार्कशीट आईपीसी की धारा 467 के तहत एक 'मूल्यवान सुरक्षा' नहीं है। मैं उपरोक्त फैसले से बाध्य हूं और उक्त फैसले की बाध्यता को देखते हुए यह मानने के लिए बाध्य हूं कि आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 467 के तहत आरोप टिकाऊ नहीं है।"

    मामले के तथ्य यह थे कि याचिकाकर्ता के भाई/सह-आरोपी ने कथित तौर पर याचिकाकर्ता की मार्कशीट को सरकारी नौकरी हासिल करने के लिए खुद के रूप में इस्तेमाल किया। तदनुसार, याचिकाकर्ता और उसके भाई के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और निचली अदालत ने उसके खिलाफ धारा 467, 468, 471 और 120-बी आईपीसी के तहत आरोप तय किए। क्षुब्ध होकर, याचिकाकर्ता ने आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 467 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए मार्कशीट को एक मूल्यवान सुरक्षा नहीं माना जा सकता है।

    यह आगे प्रस्तुत किया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता ने मार्कशीट के साथ छेड़छाड़ या जाली नहीं की है, इसलिए उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 468 के तहत लगाए गए आरोप में कोई दम नहीं है।

    आईपीसी की धारा 471 के तहत आरोप के संबंध में, यह प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन पक्ष ने यह नहीं दिखाया कि याचिकाकर्ता ने अपने स्वयं के लाभ को सुरक्षित करने के लिए कथित कृत्य में शामिल किया था।

    पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्कों में योग्यता पाई। न्यायालय ने कहा कि धारा 467 आईपीसी के उद्देश्य के लिए मार्कशीट को एक मूल्यवान प्रतिभूति नहीं माना जा सकता है।

    अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 467 और 471 के तहत आरोप टिक नहीं सकते क्योंकि यह अभियोजन पक्ष का मामला नहीं है कि उसने या तो दस्तावेज़ के साथ जाली/छेड़छाड़ की है या धोखे से इसका इस्तेमाल अपने लाभ के लिए किया है।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 468 और 471 की शुरुआत 'जो भी करे या जो भी इस्तेमाल करे' अभिव्यक्ति से शुरू होती है। कानून बनाने वालों की मंशा साफ है कि ये प्रावधान उस व्यक्ति के खिलाफ लक्षित हैं जिसने जाली दस्तावेज को असली दस्तावेज के तौर पर इस्तेमाल किया है। यदि अभियोजन पक्ष की कहानी को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार किया जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वर्तमान आवेदक के खिलाफ कोई आरोप नहीं है कि उसने या तो दस्तावेज़ से छेड़छाड़ की है या इस दस्तावेज़ का उपयोग रोजगार प्राप्त करने के लिए या किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया है। आरोप सह अभियुक्त रघुनाथ पटेल पर लगाया गया है कि उसने स्वयं को आवेदक बताकर वर्तमान आवेदक के शैक्षिक योग्यता दस्तावेजों का प्रयोग किया है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 467, 468 और 471 के तहत कोई मामला नहीं बनता है और इसलिए, विवादित आदेश को रद्द करने के लिए उत्तरदायी है।

    तदनुसार, याचिका की अनुमति दी गई और याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को रद्द कर दिया गया। याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित कृत्य में उसकी भूमिका के लिए कोई अन्य आरोप लगाया जा सकता है या नहीं, इस पर पुनर्विचार करने के लिए मामले को वापस निचली अदालत में भेज दिया गया।

    केस टाइटल: घनश्याम पटेल बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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