कंप्यूटर साइंस के नंबरों को भी बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स और संबंधित विषयों में प्रवेश के लिए विचार किया जाना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

19 Sep 2020 1:19 PM GMT

  • कंप्यूटर साइंस के नंबरों को भी बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स और संबंधित विषयों में प्रवेश के लिए विचार किया जाना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला किया कि बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स और अन्य संबंधित पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए योग्यता की गणना के लिए कंप्यूटर साइंस को विषय के रूप में को शामिल नहीं करना तर्कपूर्ण नहीं है। न्यायालय ने हालांकि यह स्वीकार किया कि प्रवेश के लिए मापदंड में बदलाव वर्तमान शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि प्रवेश की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिया है कि वह अपने पाठ्यक्रम ढांचे और पात्रता मानदंड में सुधार करे और समय के साथ-साथ उसे संशोधित करे, ताकि आने वाले समय में याचिकाकर्ता जैसे छात्रों को कठिनाई में न डाला जाए।

    कोर्ट के समक्ष मुद्दा था कि जब दिल्ली विश्वविद्यालय में बीएससी (ऑनर्स) ‌फिजिक्स में प्रवेश के लिए मेरिट का निर्धारण किया जाए, तब बारहवीं कक्षा में कंप्यूटर साइंस में अंकों पर विचार किया जाना चाहिए।

    यह रिट याचिका में आईसीएसई बोर्ड के साइंस स्ट्रीम से बारहवीं कक्षा का एक छात्र ने दायर की थी।

    कोर्ट ने इस सवाल का सकारात्मक जवाब दिया और डीयू को पुनर्विचार करने और आगामी वर्षों में प्रवेश के लिए अपने मानदंडों को संशोधित करने का निर्देश दिया। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मामले में या मौजूदा शैक्षणिक वर्ष में प्रवेश के मामले में अपने तर्क को लागू करने से इनकार कर दिया-

    कोर्ट ने कहा,

    "चाहे वह रोजगार के लिए चयन के मामले में हो या शैक्षिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए हो, दौड़ शुरू होने के बाद खेल के नियमों को नहीं बदला जा सकता है। स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश की प्रक्रिया दो साल की लंबी प्रक्रिया है, जिसकी शुरुआत छात्रों के बारहवीं कक्षा में प्रवेश लेने, विषयों का चयन करने, तैयारी करने, विभिन्न टेस्ट और परीक्षाएं देने, और बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं या प्री-यूनिवर्स‌िटी परीक्षाओं के समापन के साथ समाप्‍त होती है... अधिकांश छात्र जो डीयू में बीएससी(ऑनर्स) फिजिक्‍स पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहते हैं, उन्हें बखूबी जानकारी होती है कि कंप्यूटर साइंस की गणना मेरिट में नहीं की जाएगी। उन्होंने अपनी तैयारी की होगी और उक्त पृष्ठभूमि में परीक्षा दी होगी।"

    पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कंप्यूटर साइंस के अंकों को "सर्वश्रेष्ठ चार" में शामिल करना

    कोर्ट ने कहा कि कंप्यूटर साइंस डीयू में बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स के पाठ्यक्रम के लिए प्रासंगिक विषय है।

    "फिजिक्स के किसी भी पाठ्यक्रम में कंप्यूटर साइंस के शिक्षण की आवश्यकता होगी। डीयू ने जवाबी हलफनामे में यह माना है कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स पाठ्यक्रम में छात्रों को पढ़ाया जाता है।"

    कोर्ट ने इस तर्क पर भी सवाल उठाया कि कंप्यूटर सांइस (ऑनर्स) के प्रवेश पर विचार करते हुए फिजिक्स, केमेस्ट्री और कंप्यूटर साइंस को सर्वश्रेष्ठ चार विषयों में शामिल किया जाता है, जबकि बीएससी (ऑनर्स) फिजिक्स में प्रवेश के लिए कंप्यूटर साइंस को प्रासंगिक नहीं माना जाता है।

    साइंस और आर्ट्स की स्ट्रीम के लिए कंप्यूटर साइंस के ज्ञान के महत्व और प्रासंगिकता पर जोर देते हुए, कोर्ट ने कहा,

    "तकनीकी विकास ने साबित किया है कि कंप्यूटर साइंस एक ऐसा विषय होगा जो न केवल साइंस स्ट्रीम के अंडर-ग्रेजुएट कोर्सेज के लिए प्रासंगिक होगा, बल्कि इकोनॉमिक्स, स्टैटिस्टिक्स, फाइनेंस आदि जैसे कई अन्य कोर्सेज के लिए भी होगा। विषयों में, जितना हो सके, लच‌ीलापन और विकल्प बिल्कुल जरूरी है, इकोनॉमिक्स या हिस्ट्री पढ़ने वाले छात्रों का कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने की इच्छा रखना असामान्य नहीं है। वास्तव में ऐसी सख्त पाबंद‌ियां आधुनिक शिक्षा की आवश्यकताओं की अनदेखी करती हैं। यहां तक ​​कि इकोनॉमिक्स और स्टैटिस्टिक्स की पढ़ाई करने वाले छात्र भी बारहवीं कक्षा में कंप्यूटर साइंस पढ़ चुके होते हैं, और यह नहीं कहा जा सकता है कि इकोनॉमिक्स और स्टैटिस्टिक्स में बीए करने के लिए उक्त विषय प्रासंगिक नहीं है।"

    कोर्ट ने आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता के रूप में विषयों को चुनने में लचीलापन और पसंद की आवश्यकता पर भी जोर दिया। कोर्ट ने हाल ही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का भी अवलोकन किया है, जिसमें कहा गया है कि यह अंतर-अनुशासनात्मक पाठ्यक्रमों की पेशकश करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है और एक छात्र को एक दोहरी मेजर ग्रेजूएशन की डिग्री प्राप्त करने की अनुमति देता है।

    डीयू को प्रवेश के लिए अपने पात्रता मानदंड पर पुनर्विचार करना चाहिए और आगामी वर्षों में प्रवेश के लिए उसी को संशोधित करना चाहिए

    कोर्ट ने कहा कि डीयू ने 3-4 वर्षों से अधिक समय से अपने प्रवेश मानदंड में बदलाव नहीं किया है।

    यह नोट किया गया कि चरणपाल सिंह बागड़ी और अन्य (2019) में कोर्ट की डिवीजन बेंच ने यह स्पष्ट किया था कि डीयू में आगामी वर्षों में कानून के अनुसार, अपनी पात्रता मानदंड में बदलाव करने का लचीलापन होगा। हालांकि, जो भी कारण हो, वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के लिए कोई बदलाव नहीं किया गया है।

    कोर्ट ने डीयू को निर्देश दिया है कि वह अपने पाठ्यक्रम ढांचे और पात्रता मानदंड पर ध्यान दे और उसे संशोधित करे, ताकि छात्रों को आगामी शैक्षणिक वर्षों में कठिनाई न हो।

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