मैरिटल रेप को अपवाद की श्रेणी में रखना अनुच्छेद 21 के तहत विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा

LiveLaw News Network

12 Jan 2022 4:36 AM GMT

  • मैरिटल रेप को अपवाद की श्रेणी में रखना अनुच्छेद 21 के तहत विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपवाद की श्रेणी में रखने से संबंधित संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।

    न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राघव अवस्थी को सुना।

    अवस्थी ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार का गैर-अपराधीकरण संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत विवाहित महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है।

    फ्रांसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक, केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली पर भरोसा जताया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पर बलात्कार के एक हानिकारक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर चर्चा की, जिसका अर्थ है कि यह भारत के संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन है।

    उन्होंने कहा कि एक बलात्कारी और एक विवाहित व्यक्ति के बीच कोई स्पष्ट अंतर नहीं है जो अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से दायर लिखित निवेदन में कहा गया है,

    "अनिवार्य रूप से, यहां जो तर्क दिया जा रहा है, वह यह है कि बलात्कारियों के एक समूह के साथ बलात्कारियों के दूसरे समूह से अलग व्यवहार किया जाना चाहिए, क्योंकि वे अपने पीड़ितों से विवाहित होते हैं।"

    अवस्थी ने बताया कि वैवाहिक बलात्कार पाकिस्तान सहित विभिन्न न्यायालयों में एक दंडनीय अपराध है।

    उन्होंने एडगर जुमावान (2014) के एक मामले पर भरोसा किया, जहां फिलीपींस के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को माफ नहीं किया जा सकता है और बलात्कार के रूप में माना जा सकता है, इस तथ्य को देखते हुए कि फिलीपींस सभी प्रकार के भेदभाव और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का पक्ष है।

    अवस्थी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत भी उक्त सम्मेलनों का एक हस्ताक्षरकर्ता है और तर्क दिया कि फिलीपींस के फैसले में उद्धृत अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का उपयोग घरेलू नगरपालिका कानून की व्याख्या के लिए सहायता के रूप में किया जाना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रीय कानून में कोई रिक्तता है, तो इसे अंतरराष्ट्रीय मिसालों से भरा जा सकता है।

    हालांकि इस तर्क को न्यायमूर्ति शेखदर ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हमारे पास विशाखा जजमेंट, बैंक ऑफ कोच्चि, आदि है।

    इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता करुणा नंदी ने यह भी तर्क दिया कि रतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपवाद की श्रेणी में रखना एक महिला की गरिमा, व्यक्तिगत और यौन स्वायत्तता के अधिकार और भारत के संविधान के तहत निहित आत्म अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन है।

    बेंच ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता नंदिता राव को भी सुना, जिन्होंने प्रस्तुत किया कि अपवाद पत्नी को पति के साथ संभोग करने के लिए मजबूर नहीं करता है और ऐसी स्थितियों में महिला के पास आपराधिक कानून के तहत अन्य उपायों सहित तलाक का उपाय उपलब्ध है।

    इससे पहले, याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का सबसे बड़ा रूप है, जिसकी कभी रिपोर्ट, विश्लेषण या अध्ययन नहीं किया जाता है।

    वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ याचिकाएं गैर सरकारी संगठनों आरआईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ और दो व्यक्तियों द्वारा दायर की गई हैं।

    केस का शीर्षक: आरआईटी फाउंडेशन बनाम भारत संघ एंड अन्य जुड़े मामले

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