बीसीआई अध्यक्ष पद का दुरुपयोग कर मनन कुमार मिश्रा कैसे लड़ रहे हैं अपनी न‌िजी और राजन‌ीत‌िक लड़ाइयां?

Vikas Bhadauria

1 Jun 2020 5:15 PM GMT

  • बीसीआई अध्यक्ष पद का दुरुपयोग कर मनन कुमार मिश्रा कैसे लड़ रहे हैं अपनी न‌िजी और राजन‌ीत‌िक लड़ाइयां?

    विकास भदौरिया

    बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा की प्रेस विज्ञप्तियों में एक आम पैटर्न होता है- उनका मकसद हमेशा वास्तविक आलोचनाओं और सुधारों को दबाना होता। निजी हमलों के जरिए बीसीआई अध्यक्ष यह सुनिश्चित करते हैं कि बातचीत, आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण का कोई भी स्थान न रहे।

    प्रयास होता है कि इन विचारों को बड़े पैमाने पर कानूनी समुदाय के विचारों के रूप में प्रचारित किया जाए। बीसीआई अध्यक्ष हमेशा यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रेस विज्ञप्तियां बीसीआई के लोगो और प्रतीक चिन्ह के साथ जारी की जाए, जबकि इन विज्ञप्‍तियों को जारी किए जाने से पहले परिषद में किसी भी प्रकार के सामूहिक विचार-विमर्श के कोई सबूत नहीं होते हैं। इस प्रकार का अलोकतांत्रिक दृष्टिकोण अधिकारों और प्रतीकों का उपयोग असंतुष्टों को आतंकित करने की मानसिकता को दर्शाता है।

    बीसीआई की नया कृत्य शनिवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति है, जहां श्री मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना को 'असंतुष्ट अधिवक्ताओं और पूर्व न्यायाधीशों द्वारा नापाक प्रयास' करार दिया है। हमेशा की तरह इस विज्ञप्‍ति में बिना किसी चर्चा या सुबूत के अ‌‌तिरंजित और भड़काऊ टिप्पणियां देखी जा सकती हैं। इन 'प्रेस विज्ञप्‍तियों' के जर‌िए हमेशा सत्ता में बैठे व्यक्तियों को खुश किया जाता है।

    निरंतरता का अभाव

    बीसीआई अध्यक्ष के स्टैंड की एक और खूबी निरंतरता का अभाव है। लंबे समय से श्री मिश्रा के नेतृत्व में बीसीआई एससीबीए और विशेष रूप से इसके अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को "राजनीतिक" होने के कारण निशाना बनाता रहा है। वो इससे पहले बार का राजनीतिकरण करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, डॉ एएम सिंघवी और विवेक तन्खा को भी निशाना बना चुके हैं।

    दिलचस्प बात यह है कि श्री मिश्रा ने अपनी राजनीतिक निष्ठा का ढ‌िंढोरा पीटने में कभी पीछे नहीं रहे। विडंबना है कि चेयरमैन मिश्रा 2014 में गांधीनगर में बीसीआई एक कार्यक्रम के बाद चर्चा में आए ‌थे, जिसमें उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को "महात्मा गांधी का पुनर्जन्म" कहा था।

    2016 में, उन्होंने प्रधान मंत्री मोदी को एक पत्र भेजा, जिसमें उनका प्रशस्‍ति गान किया था। पत्र में उन्होंने "माई लॉर्ड!", "आप हमारे अभिभावक, हमारे मार्गदर्शक हैं" दुनिया के सबसे कुशल और योग्य नेता"," हमारे प्यारे नरेंद्र मोदीजी का सबसे सक्षम और कुशल नेतृत्व "जैसे भावों के के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी।

    इसके अलावा, पत्र में कहा गया था कि प्रधामंत्री का सर्वोच्च नियामक संस्था पर प्रभुत्व है- "बार काउंसिल ऑफ इंडिया आपका संस्‍थान है।" और इसी के विपरीत पत्र में यह प्रतिज्ञा भी ली गई थी कि "कानूनी बिरादरी अपनी स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं कर सकती है"।

    इसके अलावा उन्होंने पत्र में घोषणा की थी कि कैसे वह 2003 में भाजपा में शामिल हुए थे, और उनकी रहनुमाई में कैसे सभी बार काउंस‌िलों ने चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन किया था।

    " मैं प‌िछले 5 सालों से बार काउंसिल ऑफ इंडिया का अध्यक्ष हूं। मैं आपके भलाई का प्रबल समर्थक हूं। 2003 में मैं अध्यक्ष था, मैं भाजपा में शामिल हो गया क्योंकि मैं आपके नेतृत्व, आपके विचारों और आपके विचारों से बहुत प्रभावित था। हालांकि, बीजेपी के कुछ नेता मुझे पसंद नहीं करते, लेकिन मुझे पता है कि मेरा नेता दुनिया का सबसे सक्षम नेता है, इसलिए मुझे दूसरों की परवाह नहीं है।"

    2014 के चुनाव से कुछ दिन पहले, श्री मिश्रा ने चुनाव प्रचार के लिए एक सप्ताह के लिए वाराणसी में डेरा डाला था। उन्होंने बीजेपी को एक करोड़ सत्तर लाख अधिवक्ताओं का समर्थन ‌दिलाने का भी वादा किया, था मानो बीसीआई अध्यक्ष सभी अधिवक्ताओं का भगवान ‌हो।

    वाराणसी में बीजेपी कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, "मैं नरेंद्र मोदी को भारत का अगला प्रधानमंत्री बनाने का समर्थन करता हूं। मैं देश भर में एक करोड़ सत्तर लाख वकीलों के प्रतिनिधि के रूप में बात कर रहा हूं।"

    श्री मिश्रा का प्रशंसाओं का यह प्रदर्शन शायद एससीबीए के प्रस्ताव के विरोध का कारण बताता है, जिसमें जस्टिस अरुण मिश्रा की सार्वजनिक टिप्पणियों की निंदा की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस अरुण मिश्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की की जमकर तारीफ की थी और उन्हें "बहुमुखी प्रतिभा का ऐसा नेता जो स्‍थानीय स्तर पर कार्य करता है और विश्व स्तर की सोच रखता है।"

    जिसके बाद अंततः एक के बाद कई घटनाएं हुई और एससीबीए ने अपने सचिव अशोक अरोड़ा (जिन्होंने एससीबीए द्वारा जस्टिस अरुण मिश्रा की निंदा किए जाने का विरोध किया था) को निलंबित कर दिया था और उसके बाद बीसीआई और एससीबीए आपस में भिड़ गई ‌थीं।

    निरंतरता के अभाव का एक अन्य उदाहरण अन्य उदाहरण पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा से श्री मिश्रा की गई वह अपील भी है कि जिसमें उन्होंने जस्टिस मिश्रा से कहा था कि वो सेवानिवृत्ति के बाद काम न करें।

    2018 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के रिटायरमेंट से कुछ समय पहले बीसीआई ने एक प्रस्ताव पारित कर सार्वजनिक रूप से आग्रह किया था कि जस्टिस मिश्रा "न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता के हित में" सेवानिवृत्ति के बाद सरकार के किसी काम या पद को स्वीकार न करें।

    बाद में बीसीआई ने श्री गोगोई के मुद्दे पर अपने स्टैंड में सुविधापूर्वक बदलाव कर लिया था और जस्टिस गोगोई का तब बचाव किया था, जब सीजेआई पद से रिटायरमेंट के छह महीने के भीतर राज्यसभा का नामांकन स्वीकार करने के लिए उनकी आलोचना हो रही थी।

    न्यायिक स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए की गई अपनी पुरानी अपील को भूलकर चेयरमैन ने सरकार के कदम की सराहना की थी और आलोचना को "अनुचित और समय से पहले" बताया था।

    प्रतिगामी, महिला विरोधी विचार

    कई मौकों पर श्री मिश्रा को अपनी टिप्पण‌ियों के काराण महिला वकीलों और कार्यकर्ताओं की आलोचना का शिकार भी होना पड़ा है। बीसीआई ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद मिश्रा में नेतृत्व में "मेन टू मूवमेंट" के तहत एक मौन प्रदर्शन भी किया था।

    बीसीआई ने अपने बयान में कहा था, "संस्था में भरोसा रखने वाले आम वकीलों को भी मेन टू मूवमेंट का समर्थन करना चाहिए और सीजेआई श्री रंजन गोगोई के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए इंडिया गेट पर इकट्ठा होना चाहिए।"

    सीजेआई के‌ खिलाफ आरोपों के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाई गई जांच प्रक्रिया कर पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक भी शब्द बोलने के बजाय श्री मिश्रा ने पीड़िता को ही शर्मसार करने की कोश‌िश की थी।

    श्री गोगोई के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए जारी एक बयान में श्री मिश्रा ने शिकायतकर्ता की मंशा पर सवाल उठाया था और इस मामले में जांच समिति के फैसले को "पूरी तरह से न्यायपूर्ण और उचित" बताया था। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार कानून में बदलाव सहित यौन अपराधों से संबंधित कानूनों में संशोधन का आह्वान किया था। स्पष्ट रूप से, उन्होंने यह भी आग्रह किया था कि यौन अपराधों में अभियोजन पक्ष के बयान को दुर्भावनापूर्ण मामलों से बचने के लिए फेस वैल्यू पर नहीं लिया जाना चाहिए।

    "अभियोजन पक्ष की मौखिक गवाही धारा 354 और 376 आईपीसी के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए पर्याप्त है। हम 18 वीं सदी में नहीं हैं, कोई भी यह नहीं मान सकता है कि एक महिला अपने दुश्मनों को फंसाने के लिए कभी भी इस तरह के आरोप नहीं लगाएगी। हम महिलाओं का सम्मान करते हैं। लेकिन समय बदल गया है, हमें ध्यान में रखना चाहिए।"

    पत्र में आगे यौन अपराधों के मामलों को रिपोर्ट करने के लिए एक सीमा अवधि तय करने की मांग की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने में देरी "सामान्य रूप से यह सिद्ध और स्थापित करती है कि तथाकथित अभियोजन पक्ष झूठा है या संबंधों में सहमति थी"।

    श्री मिश्रा की कथित महिला विरोधी टिप्पणियों के खिलाफ जारी एक पत्र का 200 से अधिक महिला वकीलों ने समर्थन किया था।

    पत्र में कहा गया था, "हमने गहरी चिंता के साथ देखा है, जैसा कि आपने कई निंदनीय सार्वजनिक बयान दिए हैं, जिनसे बार में स‌िद्धांतपूर्ण नेतृत्व की गंभीर कमी दिखती है। समानता, और गैर-भेदभाव जैसे बुनियादी संवैधानिक मूल्यों के प्रति बार की प्रतिबद्धता में गंभीर कमी दिखती है।"

    कानून के विद्या‌र्थ‌ियों के एक समूह ने यह कहकर मिश्रा की आलोचना की थी कि, " जब सवाल पूछने की आवश्यकता थी, तब आपने सवाल न पूछकर पुरुष-केंद्रित दुराग्रहों की रक्षा का चुनाव किया हैं।"

    जेंडर जस्टिस के प्रति उनका दृष्टिकोण तब एक बार और सुर्खियों में आया था, जब जम्मू में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और कठुआ जिला बार एसोसिएशन के वकीलों ने कठुआ बलात्कार मामले में पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करने से रोक दिया था।

    श्री मिश्रा ने एक टेलीविज़न चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा, "कठुआ में जो हुआ वह वास्तव में घ‌िनौना था। लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि जम्मू में पूरी कानूनी बिरादरी हड़ताल पर है, हड़ताल किन परिस्थितियों में की गई, यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए। हमें इस बारे में पूछताछ करनी चाहिए कि वे सड़कों पर क्यों हैं और वे पुलिस जांच से संतुष्ट क्यों नहीं हैं।"

    बाद में, बीसीआई ने जम्मू और कठुआ बार एसोसिएशनों को क्लीन चिट देकर अप्रत्यक्ष रूप से उन वकीलों का समर्थन किया था, जिन्होंने आरोपियों के समर्थन में बंद का आह्वान किया था।

    हालांकि अध्यक्ष ने जून 2019 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सात में से छह आरोपियों को दोषी पाए जाने पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

    सीएए के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों का अनादर किया

    विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 ने कई प्रासंगिक संवैधानिक प्रश्नों को जन्म दिया था, और कानून के खिलाफ 160 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

    सीएए के खिलाफ जब देश उग्र विरोध प्रदर्शनों हो रहे थे, तब श्री मिश्रा ने केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रत‌ि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए उत्साह से कहा था कि विरोध "अनपढ़ और अज्ञानी लोग" कर रहे हैं, जिन्हें "गुमराह किया जा रहा है।"

    उन्होंने वकीलों, बार एसोसिएशनों, स्टेट बार काउंसिलों, एनएलयूएस और सभी लॉ कॉलेजों के छात्र संघों से आग्रह किया था कि वो यह सुनिश्चित करें कि पूरे देश में "कानून और व्यवस्था" बनी रहे।

    श्री मिश्रा को कानून के बारे में अपने निजी विचार रखने का हक है, लेकिन उनके पास बीसीआई अध्यक्ष के कार्यालय का उपयोग करके सीएए के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों का अनादर करने का हक नहीं है। बीसीआई के एक सदस्य ने, बाद में, सीएए के मसले पर अध्‍यक्ष का खुला विरोध किया था और पत्र जारी कर सीएए का समर्थन किया था।

    लगभग 1,000 वकीलों ने अध्यक्ष के बयान से यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया कि यह बार के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। आजादी के बाद से, यह पहली बार था कि देश भर के हजारों वकील अभूतपूर्व तरीके से सड़कों पर उतरे ‌थे। हिरासत में लिए गए लोगों की मदद के लिए वकीलों खुलकर सामने आए थे और कई गिरफ्तार भी हुए थे।

    बीसीआई ने ऐसे वकीलों के साथ एकजुटता व्यक्त करना भी उचित नहीं समझा, जिन्होंने पुलिस द्वारा गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को कानूनी सहायता सुनिश्चित करने के ‌लिए कई प्रयास किए। जबकि कानून के छात्रों तक ने छात्र पर हुई पुलिस कार्रवाई की निंदा की थी।

    श्री मिश्रा को किसी भी मामले में कानूनी मसलों अपने व्यक्तिगत विचारों को प्रसारित करने के लिए बीसीआई अध्यक्ष पद और अपने कार्यालय का उपयोग करने की क्या आवश्यकता है? विशेषकर जब समस्या, प्रत्यक्ष रूप से बीसीआई के कामकाज से संबंधित नहीं होती है।

    ऐसा लगता है कि श्री मिश्रा ने असंगति को अपना पुरस्कार समझ लिया है। श्री मिश्रा में सत्ताधीशों की उपासना, यथास्थिति प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति घृणा की भावना स्पष्ट दिखती है। वह अपने कार्यालय का उपयोग अपनी राजनीतिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करने के लिए करते रहे हैं। जब ऐसे व्यक्ति बार के 'राजनीतिकरण' का आरोप दूसरों पर लगाते हैं तो विडंबना भी सिर पकड़ लेती होगी।

    यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि श्री मिश्रा ने बीसीआई अध्यक्ष पद को एक ऐसे दरबारी गायक के रूप में बदलकर, जो कि सत्ता के धुनों पर गाता है, संस्थागत सुधारों के अवसर को गंवा दिया है, जिनकी बहुत जरूरत है।

    डिस्क्लेमर :इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।

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