सौतेली बेटी के साथ बलात्कार करने और उसे गर्भवती बनाने का आरोपी बरी| मेघालय हाईकोर्ट ने आदेश को चुनौती देने में विफलता पर राज्य को फटकार लगाई
Avanish Pathak
25 Oct 2022 5:02 PM IST
मेघालय हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निचली अदालत के एक आदेश और फैसले को चुनौती देने में विफल रहने पर कड़ी फटकार लगाई।
निचली अदालत के फैसले में एक व्यक्ति/आरोपी को बरी कर दिया गया था, जिसने कथित तौर पर अपनी सौतेली बेटी के साथ बलात्कार किया था, जिसके बाद वह गर्भवती हो गई थी।
चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने बलात्कार पीड़िता के बच्चे का पिता कौन हो सकता है, यह पता लगाने के लिए डीएनए परीक्षण नहीं करने के राज्य सरकार के कृत्य में भी दोष पाया।
कोर्ट ने कहा,
"यह आश्चर्य की बात है कि राज्य ने अपील नहीं की या डीएनए परीक्षण पर जोर देकर मामले की तह तक जाने की कोशिश नहीं की।
बच्चों का यौन शोषण एक सामाजिक अस्वस्थता है, जिसकी गहरी जड़ें हैं और यदि राज्य मामले को गंभीरता से नहीं लेता है और अपनी भूमिका को केवल अभियोजक के काम तक सीमित रखता है तो ....बड़े खतरे को रोका नहीं जा सकता है।"
मौजूदा मामले में, एक व्यक्ति पर उसकी नाबालिग सौतेली बेटी के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था और उस पर पोक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, निचली अदालत ने उसे इस तथ्य के आधार पर बरी कर दिया कि कथित पीड़िता ने मुकदमे में स्पष्ट रूप से गवाही दी थी कि आरोपी ने उसके साथ बलात्कार नहीं किया था।
मामला तब प्रकाश में आया जब पीड़िता की आंटी ने बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए अनुमति की मांग करते हुए मौजूदा आवेदन दिया। हालांकि, अदालत ने इस तथ्य के मद्देनजर आवेदन को खारिज कर दिया कि बरी करने का आदेश कथित पीड़िता के घटना से पूर्ण इनकार पर आधारित था।
हालांकि, आंटी की याचिका को खारिज करने से पहले बेंच ने अपने आदेश में भारतीय मानस पर ध्यान दिया कि ऐसे मामलों में, पीड़ित को ही दोषी ठहराया जाता है और शर्मिंदा किया जाता है और यह महसूस किया जाता है कि पीड़ित की ही गलती थी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यौन अपराधियों की पत्नियां या तो शारीरिक भय से या परित्यक्त होने के डर से अपने पतियों के खिलाफ गवाही नहीं देती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सौतेले बच्चे भी ऐसे कृत्यों की शिकायत करने से हिचकते हैं क्योंकि उनके पास खुद की देखरेख का कोई वैकल्पिक साधन नहीं हो सकता है।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में, राज्य को सक्रिय होना चाहिए और जब भी पीड़ित या सूचना देने वाले पर जोर-जबरदस्ती या धमकी दी जाती है, तो राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना चाहिए कि न्याय किया जाए, चाहे पीड़ित को सुरक्षा देकर हो या पीड़ित और अन्य रिश्तेदारों को परामर्श देकर हो।
कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राज्य महिला आयोग की भी भूमिका हो सकती है।
केस टाइटल- बिकोनिया सुतंगा बनाम वुडलैंड खोंगथीम और अन्य।