सक्षम अदालत द्वारा बरी किए जाए बिना, पत्नी की हत्या के आरोपी व्यक्ति को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Nov 2020 8:13 AM GMT

  • सक्षम अदालत द्वारा बरी किए जाए बिना, पत्नी की हत्या के आरोपी व्यक्ति को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (10 नवंबर) को पत्नी की हत्या के आरोपी एक व्यक्ति को उसके दो नाबालिग बच्चों को कस्टडी देने से इनकार कर दिया।

    न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने बच्चों से मिलने के लिए भी आरोपी पिता को मुलाकात के अधिकार देने से इनकार कर दिया।

    मामले के तथ्य

    अवधेश गौतम (पिता /अभियुक्त) ने अपने दो नाबालिग बच्चों - शौर्य गौतम और कुमारी दिशि गौतम- की ओर से बंदी प्रत्यक्षीकरण/हैबियस कार्पस की याचिका दायर की थी।

    उसने प्रार्थन की थी कि न्यायालय द्वारा श्रीमती ब्रह्मा देवी तिवारी (प्रतिवादी नंबर 4/ नाबालिगों की नानी) और श्री बृद्धानंद बाल आश्रम, आर्य समाज जामा वाला, तिलक रोड, देहरादून, उत्तराखंड (प्रतिवादी नंबर 5) को निर्देश दिया जाए कि वह उसके दो नाबालिग बच्चों-डिटेन्यू को न्यायालय के समक्ष पेश करें और उसके बाद, बच्चों की कस्टडी उसे दी जाए।

    विशेष रूप से, अवधेश गौतम की पत्नी और नाबालिगों की मां पूनम गौतम की अप्राकृतिक मृत्यु हो गई थी। इस मामले में अवधेश गौतम और उसके परिवार के चार अन्य लोगों पर हत्या और सबूत नष्ट करने के लिए मामला दर्ज किया गया है। पिता-अवधेश व चार अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 147, 302, 201 के तहत प्राथमिकी नंबर 238/2017 दर्ज की गई है।

    तर्क दिए गए

    रिट याचिका में आरोप लगाया गया था कि शौर्य गौतम और कुमारी दिशि गौतम (नाबालिग बच्चे) को जबरन प्रतिवादी नंबर 4 (नाबालिगों की नानी) उस समय अपने साथ ले गई, जब अवधेश गौतम (पिता) को अपराध के सिलसिले में जेल भेज दिया गया था।

    अवधेश गौतम (पिता) को दिनांक 15 नवम्बर 2019 को जमानत दे दी गई थी और जेल से रिहा होने पर, उसने प्रतिवादी नंबर 4 से संपर्क किया और बच्चों से मिलने की अनुमति देने का अनुरोध किया।

    उसने अदालत के समक्ष बताया कि उसे पता चला है कि बच्चों को श्री बृद्धानंद बाल आश्रम, उत्तराखंड में रखा गया है। उसने यह भी दावा किया कि वह वहां पर अपने बच्चों से मिला था।

    उसने यह भी दावा किया कि उसने आश्रम के अधिकारियों को दस्तावेज दिखाए थे कि वह नाबालिगों का पिता है और उनसे अनुरोध किया था कि वे उसे नाबालिग बच्चों की कस्टडी सौंप दें,परंतु आश्रम ने बच्चों को रिलीज करने से इनकार कर दिया।

    प्रतिवादी नंबर 4,जो नाबालिगों की नानी है, ने कहा कि अवधेश गौतम ने उनकी बेटी की हत्या कर दी थी। ऐसे में अगर नाबालिगों की कस्टडी उसे सौंप दी तो इससे उनके जीवन को भी खतरा हो सकता है।

    उसने अदालत को यह भी बताया कि उसे अवधेश (पिता) के एक रिश्तेदार नीरज गौतम ने पुलिस स्टेशन - सहपऊ, जिला - हाथरस के स्टेशन हाउस आॅफिसर की उपस्थिति में नाबालिगों की कस्टडी दी थी। अवधेश की गिरफ्तारी के बाद बच्चे नीरज की कस्टडी नीरज में थे।

    न्यायालय का अवलोकन

    न्यायालय ने कहा कि अवधेश अधिनियम, 1956 की धारा 6 (ए) के तहत नाबालिगों का प्राकृतिक संरक्षक है, हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि ''नाबालिगों की कस्टडी का मुद्दा यह दावा करने वाले के अधिकार के बारे में इतना नहीं है, जितना कि यह नाबालिगों के कल्याण के बारे में है।''

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा,

    ''अगर यह दिखाई दे कि नाबालिगों का कल्याण अवधेश के हाथों में सबसे अच्छा है, तो यह अदालत तुरंत पिता को उनकी कस्टडी सौंप दे। हालांकि, इस मामले में ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। पिता एक आरोपी है। ऐसे में बच्चे के कल्याण का मुद्दा यंत्रवत् रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है। इस पर व्यापक और सूक्ष्म दोनों कारकों को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील रूप से विचार किया जाना चाहिए।''

    कोर्ट ने नील रतन कुंडू व अन्य बनाम अभिजीत कुंडू (2008) 9 एससीसी 413 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि नाबालिग बच्चे के कल्याण के बारे में निर्धारित करते समय एक प्राकृतिक संरक्षक की अपने जीवनसाथी की मौत से संबंधित आपराधिक मामले में भागीदारी एक महत्वपूर्ण विचार/कारक है।

    नील रतन कुंडू के मामले में, पिता अपनी पत्नी की दहेज हत्या से संबंधित एक मामले में आरोपी था। उसने अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी का दावा किया था,जो अपने नाना और नानी की कस्टडी में थे।

    अपनी पत्नी की दहेज हत्या से संबंधित मामले में पिता की भागीदारी को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने तथ्यों और सबूतों के संदर्भ में सावधानीपूर्वक संबोधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना था।

    महत्वपूर्ण रूप से, जब हाईकोर्ट ने 10 वर्षीय नाबालिग शौर्य के साथ बातचीत की, तो उसने कहा कि वह अपने पिता के पास वापस जाने या उसके साथ रहने की इच्छा नहीं रखता है। इसका कारण पूछने पर उसने बताया कि उसे अपनी जान को खतरा लगता है।

    उसने यह भी कहा कि वह हॉस्टल में रहना चाहता है। इसलिए उसे वहीं रहने दिया जाए और उसने अपने पिता के पास वापस जाने से इनकार कर दिया।

    इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने कहा कि,

    ''रिकॉर्ड पर आई परिस्थितियों की समग्रता बताती है कि जब तक बरी नहीं किया जाता है, तब तक दो नाबालिग बच्चों को उनके पिता की कस्टडी में रखना उचित नहीं होगा।''

    अंत में, कोर्ट ने कहा,

    ''मामले की सारी परिस्थितियों को देखने के बाद यह अदालत ऐसा नहीं मानती है कि अवधेश गौतम नाबालिगों की कस्टडी का हकदार है, कम से कम इस स्तर पर, जब वह आपराधिक आरोपों का सामना कर रहा है। यदि कभी वह बरी हो जाता है और बच्चे, फिर भी नाबालिग होते हैं, तो ऐसी स्थिति में वह सक्षम अदालत के समक्ष अधिनियम 1890 के तहत एक उचित आवेदन दायर करके उनकी कस्टडी मांग सकता है। जिसके बाद संबंधित अदालत उस आवेदन पर कानून के अनुसार व मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ,यहाँ पर कही गई किसी भी बात से प्रभावित हुए बिना अपना निर्णय देगी।"

    इस प्रकार, याचिका विफल हो गई और खारिज कर दी गई।

    केस का शीर्षक - शौर्य गौतम (नाबालिग) व अन्य बनाम यू.पी. राज्य व 4 अन्य ,हैबियस कार्पस रिट पिटिशन नंबर - 140/ 2020

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