मद्रास हाईकोर्ट ने जूनियर सिविल जज भर्ती 2003, 2009 और 2012 में रोस्टर सिस्टम के पालन की जांच करने के लिए समिति का गठन किया

LiveLaw News Network

10 July 2021 5:31 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) पद के लिए भर्ती के लिए जारी वरिष्ठता सूची के संबंध में एक जांच समिति का गठन किया है। एक याचिका दायर कर सूची में दोष का आरोप लगाया गया था। याचिका उन न्यायिक अधिकारियों ने दायर की थी, जिन्हें 2009 में भर्ती किया गया था।

    चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी और ज‌स्ट‌िस सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने समिति को कथित दोषों में सुधार करने और वर्ष 2009 के साथ-साथ 2003 और 2012 के लिए संशोधित वरिष्ठता सूची तैयार करने का काम सौंपा है, जिसमें वही गलतियां की गई थीं।

    कोर्ट ने कहा कि भर्ती के लिए राज्य में आरक्षण नीति के आधार पर 200-पॉइंट रोस्टर का पालन किया जाता है। रोस्टर यह सुनिश्चित करता है कि आरक्षित श्रेणियों और अनारक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए स्लॉट निर्धारित तरीके से भरे गए हैं।

    रोस्टर से संबंधित नियमों को सारांशित करते हुए, न्यायालय ने समझाया, "उदाहरण के लिए, यदि रोस्टर से आठ श्रेणियां स्पष्ट हैं, उनमें से एक अनारक्षित श्रेणी की है, तो सभी श्रेणियों में ऐसे रोस्टर में दर्शाए गए क्रमांक के अनुसार स्लॉट हैं। यदि तब, चयन प्रक्रिया के लिए कोई कट-ऑफ मार्क निर्धारित है, पहला अभ्यास कट-ऑफ मार्क के आधार पर योग्य उम्मीदवारों की खोज करना और उनके नामों को प्राप्त अंकों के अवरोही क्रम में व्यवस्थित करना और योग्यता के घटते क्रम में उनकी संबंधित श्रेणियों के अनुसार स्लॉट भरना है। किसी विशेष श्रेणी में उच्चतम अंक ऐसी श्रेणी के लिए आरक्षित 200-पॉइंट रोस्टर में पहला उपलब्ध स्लॉट प्राप्त करता है और इसी प्रकार अन्य श्रेणियों के लिए होता है।"

    बेंच ने कहा कि इस सामान्य नियम का केवल एक अपवाद है- यदि किसी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को अपेक्षित अंक मिलते हैं, जिससे ऐसा उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में रोस्टर में स्लॉट प्राप्त करने का हकदार होता, तो संबंधित स्लॉट एक वास्तविक अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार द्वारा लिया जाता है।

    बेंच ने समझाया, "परिणामस्वरूप, यदि आरक्षित श्रेणी में से 20 उम्मीदवार क्वालिफाइंग मार्क प्राप्त करते हैं, और उनमें से पहले को अनारक्षित श्रेणी में अंतिम स्थान प्राप्त उम्मीदवार की तुलना में अधिक अंक प्राप्त होते हैं, तो ऐसे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में गिना जाएगा और अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवार के लिए तय स्लॉट को भरेगा और, संबंधित आरक्षित श्रेणी से एक अतिरिक्त उम्मीदवार को भर्ती होने का अवसर मिलेगा।"

    हालांकि, कोर्ट ने पाया कि 2009 की भर्ती प्रक्रिया के दौरान इस तरह की रोस्टर प्रणाली का पालन नहीं किया गया था।

    आदेश में कहा गया है, "ऐसा प्रतीत होता है कि 200-बिंदु रोस्टर को राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा संदर्भित किया गया हो सकता है, एजेंसी को 2009 में भर्ती के संचालन का काम सौंपा गया था, स्लॉट्स को कैसे भरने से संबंधित सटीक नियमों का पालन नहीं किया गया हो सकता है, ये नियम अब न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त हैं और देश में समान रूप से लागू होते हैं, भले ही यह 40-पॉइंट या 100-पॉइंट या 200-पॉइंट रोस्टर हो।",

    इसके अलावा, कोर्ट ने पाया कि हालांकि मौजूदा मामले में 2009 बैच के सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) ने शिकायत की है, राज्य लोक सेवा आयोग ने 2003 की पहले की भर्ती और उसके बाद 2012 की भर्ती के दौरान ऐसी ही गलती की थी। इस प्रकार की खराबी की पहचान पर कोर्ट ने 2009 बैच के अलावा 2003 और 2012 बैचों के लिए संशोधित वरिष्ठता सूची मांगी थी।

    तदनुसार, कोर्ट ने महाधिवक्ता वी विजय शंकर, अधिवक्ता सीएनजी. निरैमती (तमिलनाडु लोक सेवा आयोग के वकील) की कमेटी का गठन किया। कमेटी को वरिष्ठता सूची में कथित दोषों को दूर करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

    अदालत ने समिति को 19 जुलाई को होने वाली सुनवाई की अगली तारीख तक उपरोक्त प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटिल: एन.वासुदेवन बनाम रजिस्ट्रार जनरल

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