मद्रास हाईकोर्ट ने कहा, जाति भेद के बिना सभी के लिए हो एक ही श्मशान/कब्रिस्तान, उल्लंघन के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का सुझाव

LiveLaw News Network

8 Dec 2021 10:54 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

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    मद्रास हाईकोर्ट ने अरुंथथियार कम्यूनिटी के लिए एक स्थायी कब्र‌िस्तान आवंटित करने के लिए दायर याचिका पर कहा है कि एक विशेष जाति/समुदाय के लिए अलग कब्र‌िस्तान का कोर्ट समर्थन नहीं कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि अरुंथथियार समुदाय के सदस्य प्रतिवादी अधिकारियों से एक सामान्य कब्रिस्तान के आवंटन के लिए कह सकते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "... किसी धर्म के अंतर्गत जाति या समुदाय के आधार पर शव के दाह संस्कार/ दफन में भेदभाव या अलगथलग करने का कोई भी कार्य, साथ ही साथ किसी भी जाति/ समुदाय के सदस्यों को उसके मृतकों को सामान्य श्मशान में या निर्धारित भूमि पर दफन करने/ अंतिम संस्कार करने से रोकना या किसी विशेष जाति/समुदाय के लिए श्मशान/कब्रिस्तान को विशेष रूप से निर्धारित करना, संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 25 के साथ-साथ संविधान के मौलिक कर्तव्यों की भावना के खिलाफ है।"

    मामले में बी. कलैसेल्वी और माला राजाराम ने रिट याचिका दायर की है। वे अरुंथथियार समुदाय के सदस्यों द्वारा शवों के निस्तारण के लिए अपनी संपत्त‌ियों से लगी एक जल इकाई के उपयोग से व्यथित थीं।

    उन्होंने प्रतिवादी, जिला कलेक्टर को उक्त समुदाय के सदस्यों के शवों को दफनाने/अंतिम संस्कार के लिए अलग भूमि आवंटित करने का निर्देश देने की मांग की थी।

    जाति आधारित भेदभाव के मद्देनजर जस्टिस आर महादेवन ने जाति पृथक्करण के खतरे को रोकने के लिए स्थानीय निकायों, राज्य सरकार और अन्य अधिकारियों को कई सुझाव दिए:

    -सभी गांव/ब्लॉक/जिले में श्मशान भूमि पर अलग-अलग समुदायों के लिए विभाजन के लिए लगाए गए अलग-अलग बोर्ड हटा देने चाहिए ताकि पूरे श्मशान भूमि का उपयोग सभी समुदाय कर सकें।

    -निर्माण और रखरखाव, साथ ही साथ एक धर्म के सभी समुदायों को बिना किसी भेदभाव या अलगाव के, और अनुच्छेद 25 के तहत संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किए बिना, सामान्य दफन की भूमि और उसे जुड़ी सुविधाओं के उपयोग की अनुमति देना।

    -किसी भी सामाजिक अक्षमता को हटाना, जिससे संविधान के साथ-साथ नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, और नस्ल और नस्लीय पूर्वाग्रह पर घोषणा के तहत प्रतिबद्धताओं की पूर्ति में बाधा आती हो, जिसमें भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है।

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ताओं ने बताया कि अरुंथथियार समुदाय के सदस्यों ने अपने मृतकों के शवों को 'ओदई पुरम्बोक' के रूप में वर्गीकृत भूमि में दफनाया, जो उनकी जमीन की सीमा पर है, यह तमिलनाडु ग्राम पंचायत (दफन और दाह के मैदान का प्रावधान) नियमों के नियम 7 का उल्लंघन है, जिसके तहत किसी भी निवास स्थान के 90 मीटर के दायरे में किसी भी स्थान पर शव को दफन या दाह नहीं किया जा सकता है।

    यह तर्क दिया गया कि उक्त कृत्य भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 300 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे बरसात के मौसम में बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है।

    प्रतिवादी अधिकारियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि मदुर गांव में 30 अरुंथथियार परिवार हैं, जो तीन दशकों से दो निकटवर्ती ओदई पुरम्बोक भूमि में अपने परिजनों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं । एक कब्रिस्तान आवंटित करने के उनके हालिया अनुरोध पर, प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा यह पाया गया कि समुदाय को आवंटित करने के लिए कोई उपयुक्त आधार नहीं हैं। इस बीच, समुदाय को मृतकों के अंतिम संस्कार/ दफन के लिए ओदई पुरम्बोक का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।

    वकील ने यह भी बताया कि राजस्व मंडल अधिकारी द्वारा कल्लाकुरिची के तहसीलदार को एक उपयुक्त सरकारी भूमि का पता लगाने के लिए एक पत्र भेजा गया था, जिसे दफन जमीन में परिवर्तित किया जा सकता है या अरुंथथियार समुदाय के सदस्यों के लिए एक निजी भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है।

    टिप्पणियां

    निर्णयों और अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों पर भरोसा करते हुए और इतिहास में जाति भेद के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए अदालत ने कहा कि क्या मानव गरिमा की मूलभूत गारंटी मानव जीवन के बाद और शव के सभ्य ‌निस्तारण तक फैली है'।

    एस सेतु राजा बनाम मुख्य सचिव, तमिलनाडु सरकार (2007) और दलीप कुमार झा बनाम पंजाब राज्य (2014) का उल्लेख करते हुए , अदालत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा का अधिकार न केवल जीवितों के लिए ही, बल्कि मृतकों के लिए भी उपलब्ध है।

    अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, और अदालत जाति भेद के समाजशास्त्रीय खतरे से आंखें नहीं मूंद सकती। इसलिए, मोहम्मद गनी बनाम पुलिस अधीक्षक और अन्य (2005) और अन्य निर्णयों पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा, ' कानून स्पष्ट है कि किसी के धार्मिक संस्कारों और रीति-रिवाजों के अनुसार शव को दफनाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है।"

    अदालत ने मिल्टन वी प्राइस बनाम एवरग्रीन सिमेट्री कंपनी ऑफ सिएटल (1960) के एक अमेरिकी फैसले को भी याद किया, जिसमें याचिका इसलिए दायर की गई थी कि एक गैर-कोकेशियान कपल के शिशु को एक 'अनन्य' कोकेशियान भूमि में दफन करने से इनकार करने से संबंधित थी।

    अदालत ने यह भी नोट किया कि पुरम्बोक भूमि में अतिक्रमण अत्यधिक निंदनीय है। इसलिए, यह उपयुक्त होगा यदि प्रतिवादी जाति या पंथ या धर्म के बावजूद, मदुर गांव में सभी लोगों के लिए एक उपयुक्त भूमि को सामान्य कब्रिस्तान के रूप में व्यवस्थित कर सकें।

    केस शीर्षक: बी कलाइसेल्वी और अन्य बनाम जिला कलेक्टर और अन्य।

    केस नंबर: WP No 9229 Of 2021, and WMP No 9767 Of 2021

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