जब सीपीसी के तहत स्पष्ट प्रावधान दिया गया है तो सीपीसी की धारा 151 के तहत यथास्थिति आदेश टिकाऊ नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

7 Sep 2022 9:54 AM GMT

  • जब सीपीसी के तहत स्पष्ट प्रावधान दिया गया है तो सीपीसी की धारा 151 के तहत यथास्थिति आदेश टिकाऊ नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सीपीसी की धारा 151 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए अदालत द्वारा पारित यथास्थिति का आदेश टिकाऊ नहीं है, क्योंकि नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत इसके लिए स्पष्ट प्रावधान प्रदान किया गया है।

    जस्टिस एस ए धर्माधिकारी की पीठ ने कहा,

    बेशक निचली अदालत ने आयुक्त की नियुक्ति में गलती की, क्योंकि संहिता के आदेश 39 नियम 1 और नियम 2 के तहत आवेदन का फैसला करते समय साक्ष्य के संग्रह की अनुमति नहीं दी जा सकती। आवेदन पर प्रथम दृष्टया कानून के तीन ठोस सिद्धांतों पर निर्णय लिया जाना है। यहां तक कि​ यथास्थिति का आदेश अपीलीय न्यायालय द्वारा संहिता की धारा 151 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए नहीं दिया जा सकता, जब संहिता के तहत स्पष्ट प्रावधान प्रदान किया गया हो।

    मामले के तथ्य यह है कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के तहत आवेदन के साथ-साथ स्वामित्व और स्थायी निषेधाज्ञा की घोषणा के लिए दीवानी अदालत के समक्ष मुकदमा दायर किया। अस्थायी निषेधाज्ञा के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया, जिसके खिलाफ उसने निचली अपीलीय अदालत के समक्ष आदेश XLIII नियम 1 CPC के तहत अपील दायर की। निचली अपीलीय अदालत ने दीवानी अदालत के उस आदेश को उलट दिया, जिसमें अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए प्रतिवादी के आवेदन को खारिज कर दिया गया। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने उक्त आदेश को उलटने के आदेश को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख किया।

    याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि निचली अपीलीय अदालत ने आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के दायरे से परे जाकर वाद भूमि के सीमांकन के लिए आयुक्त की नियुक्ति का निर्देश दिया, जिसकी प्रतिवादी/वादी द्वारा कभी भी प्रार्थना नहीं की गई। यह आगे कहा गया कि निचली अपीलीय अदालत ने भी सीपीसी की धारा 151 के तहत मामले में यथास्थिति प्रदान की, जिसका प्रयोग इस तथ्य के मद्देनजर नहीं किया जा सकता कि आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के तहत स्पष्ट प्रावधान है।

    सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के साथ-साथ न्यायालय के निर्णयों पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सीपीसी की धारा 151 के तहत अदालत के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को डेबिट जस्टिटिया के आदेश देने के लिए निस्संदेह पुष्टि की गई है, लेकिन उस अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता है ताकि संहिता के प्रावधानों को निरस्त करना पड़े।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित आदेश कानून के अनुसार पारित किया गया है, इसलिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि आयुक्त की नियुक्ति के लिए किसी आवेदन की आवश्यकता नहीं और अदालत स्वयं ही आयुक्त की नियुक्ति कर सकती है, जैसा कि वर्तमान मामले में किया गया है। इस प्रकार, प्रतिवादी ने निष्कर्ष निकाला कि याचिका खारिज किए जाने योग्य है।

    रिकॉर्ड पर पक्षकारों और दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण की जांच करते हुए न्यायालय ने आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के दायरे को स्पष्ट किया-

    ...अंतरिम निषेधाज्ञा प्रदान करने के लिए विवेक का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित तीन सिद्धांत लागू होते हैं: -

    (i) वादी का प्रथम दृष्टया मामला क्या है;

    (ii) क्या सुविधा का संतुलन वादी के पक्ष में है;

    (iii) यदि अस्थायी निषेधाज्ञा अस्वीकार कर दी जाती है तो क्या वादी को अपूरणीय क्षति होगी।

    कोर्ट ने कहा कि निचली अपीलीय अदालत ने अस्थायी निषेधाज्ञा के लिए प्रतिवादी के आवेदन पर फैसला करते हुए एक आयुक्त की नियुक्ति में गलती की। कोर्ट ने आगे कहा कि आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के तहत आवेदन पर प्रथम दृष्टया कानून के तीन ठोस सिद्धांतों पर निर्णय लिया जाना चाहिए। न्यायालय ने यह भी माना कि सीपीसी की धारा 151 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपीलीय अदालत द्वारा यथास्थिति का आदेश नहीं दिया जा सकता, जब संहिता के तहत स्पष्ट प्रावधान प्रदान किया गया है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने निचली अपीलीय अदालत को आदेश XXXIX नियम 1 और नियम 2 CPC के तहत प्रतिवादी के आवेदन पर कानून के अनुसार, आयुक्त के साक्ष्य / रिपोर्ट का मूल्यांकन किए बिना निर्णय लेने और जल्द से जल्द निर्णय लेने का निर्देश दिया। तद्नुसार, याचिका को यहां ऊपर दर्शाई गई सीमा तक अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: ओमप्रकाश अग्रवाल एवं अन्य बनाम संदीप कुमार अग्रवाल एवं अन्य।

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