मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति की हत्या मामले में केमिस्ट्री प्रोफेसर की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी, वैज्ञानिक तर्क किए खारिज
Amir Ahmad
30 July 2025 4:10 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार 29 जुलाई को एक सत्र न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें रसायन शास्त्र (केमिस्ट्री) की असिस्टेंट प्रोफेसर ममता पाठक को अपने पति की हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने ममता पाठक द्वारा स्वयं की ओर से पेश किए गए वैज्ञानिक तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि ममता और उनके पति डॉ. नीरज पाठक के संबंध अच्छे नहीं थे, और उन्होंने पहले उन्हें नींद की गोलियां देकर बेहोश किया और फिर उनके शरीर में विद्युत प्रवाह (करंट) पहुंचाकर यातनाएं दीं जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
कोर्ट ने कहा,
“सभी परिस्थितियाँ एक पूर्ण श्रृंखला के रूप में जुड़ी हुई हैं इसलिए ममता पाठक का दोष संदेह से परे सिद्ध होता है।”
डॉ. नीरज पाठक की अप्रैल 2021 में उनके निवास पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। ममता पाठक ने शुरुआत में इसे दुर्घटना बताकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी। लेकिन पोस्टमॉर्टम में मौत का कारण करंट लगना और हृदय-श्वसन प्रणाली का विफल होना पाया गया, जिसके बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज हुआ।
जांच के दौरान घर से नींद की गोलियां बिजली की तारें और सीसीटीवी डीवीआर जब्त किए गए। सेशन कोर्ट में ट्रायल चला जिसके बाद ममता को दोषी ठहराया गया।
इसके खिलाफ ममता ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। उन्होंने तर्क दिया कि शरीर पर पाई गई जलन की निशानियों को बिना माइक्रोस्कोप या रासायनिक परीक्षण के सिर्फ विद्युत झुलस से जोड़ना वैज्ञानिक रूप से गलत है जो इस मामले में नहीं किया गया।
ममता ने यह भी कहा कि मृतक लकड़ी के पलंग पर लेटे थे उनके पैर प्लास्टिक की कुर्सी पर थे और बिछी हुई चादर व गद्दा समेत ये सभी वस्तुएं बिजली की चालक नहीं होतीं इसलिए 'अर्थिंग' की अनुपस्थिति में करंट लगने की संभावना नहीं थी।
राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पोस्टमॉर्टम तीन डॉक्टरों की टीम ने किया था और शरीर पर बिजली के झटके से मेल खाती बाहरी जलन की चोटें थीं। उन्होंने कहा कि सेशन कोर्ट ने साक्ष्यों की गहराई से समीक्षा के बाद उचित निर्णय लिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि मामला भले ही परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा Sharad Birdichand Sarda बनाम महाराष्ट्र राज्य केस में निर्धारित मानकों को पूरा करता है। कोर्ट ने ममता के बयान पर आधारित वस्तुओं की बरामदगी, घटनास्थल तक उनकी पहुंच और चोटों की प्रकृति को सजा के लिए पर्याप्त बताया।
इस पर कि पुलिस ने दबाव डालकर उनसे हस्ताक्षर करवाए थे कोर्ट ने कहा,
“सिर्फ यह कह देना कि हस्ताक्षर दबाव में हुए और यह बताना कि पंचनामा के सात दिन बाद हस्ताक्षर करवाए गए, दो अलग बातें हैं। ममता ने चालाकी से इन दोनों को जोड़ने की कोशिश की लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई सामग्री नहीं है। अतः यह तर्क खारिज किया जाता है।”
कोर्ट ने Shivaji Chintappa Patil बनाम महाराष्ट्र राज्य केस का हवाला देते हुए दोहराया कि झूठी या अस्पष्ट सफाई को भी अपराध सिद्ध करने वाली मजबूत कड़ी के रूप में देखा जा सकता है और इस मामले में भी वैसी ही स्थिति है।
पोस्टमॉर्टम पर ममता की वैज्ञानिक आपत्तियों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि शव पर विद्युत जलन की दृश्य चोटें और डॉक्टरों की राय इस निष्कर्ष को मजबूती से समर्थन देती हैं और मृत शरीर पर विघटन या धातुकरण न होना मृत्यु का कारण करंट लगने से इंकार नहीं करता।
एफआईआर की वैधता पर उठाई गई आपत्ति को भी कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि एफआईआर न तो पूर्व-तिथि की थी और न ही पूर्व-समय की बल्कि 'मर्ग इंटीमेशन पर आधारित थी। इसमें ममता का नाम भी नहीं था इसलिए इस आधार पर जांच को खारिज नहीं किया जा सकता।
अंत में कोर्ट ने कहा कि ममता के तकनीकी तर्क पहले से स्थापित तथ्यों के सामने टिक नहीं पाए।
इस आधार पर सेशन कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को सही ठहराया गया और अपील खारिज कर दी गई।

