मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत अर्जी को 'आंख मूंदकर' खारिज करने के सेशन कोर्ट के तरीकों पर चिंता जताई

LiveLaw News Network

30 April 2022 6:26 AM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने शुक्रवार को सेशन कोर्ट द्वारा मामले के गुण-दोष में जाने के बिना अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं को आंख बंद करके खारिज करने पर चिंता व्यक्त की।

    अदालत ने आगे कहा कि छोटे-मोटे मामलों के लिए भी वादियों को उन पर 'अनावश्यक वित्तीय बोझ' डालते हुए दूरदराज और निर्जन क्षेत्रों से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

    जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल ने आवेदक की सीआरपीसी की धारा 439 द्वारा दायर जमानत याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि आवेदक के मामले में उसे निचली अदालत से ज़मानत मिल जानी चाहिए थी।

    उन्होंने कहा,

    इस न्यायालय के पास दिन-प्रतिदिन का अनुभव है कि निचली अदालत ने मामले के गुण-दोष पर ध्यान दिए बिना आरोपी की जमानत अर्जी को आंख मूंदकर खारिज किये जा रहे हैं। यह बहुत चिंता का विषय है कि पूरे राज्य में सेशन कोर्ट स्थापित होने के बावजूद दूरस्थ और निर्जन क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों को न्याय प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के छोटे-मोटे मामलों में वादियों को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।

    सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट को सीआरपीसी की धारा 439 के तहत समवर्ती शक्तियों के साथ निहित किया गया है। दूर-दराज के स्थानों से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से वादियों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है। उक्त न्यायालय द्वारा पारित इस प्रकार का आदेश राज्य के सभी भागों में सेशन कोर्ट स्थापित करने के उद्देश्य को ही विफल कर देता है।

    यह भी ध्यान देने योग्य है कि जमानत आवेदन का निर्णय करते समय न्यायालय किसी व्यक्ति को दोषी या बरी नहीं कर रहा है, केवल कुछ शर्तों के साथ मुकदमे के दौरान अभियुक्त को हिरासत से मुक्त किया जाता है।

    आवेदक को पुलिस ने कथित तौर पर मोटरसाइकिल चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। तदनुसार, इस्तगासा (शिकायत सीआरपीसी की धारा 156(3)) के तहत उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 41 (1-4), 102 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 379 के अपराध दर्ज किए गए। उसके बाद 51 दिन बीत जाने के बाद भी उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया।

    आवेदक ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसे मामले में झूठा फंसाया जा रहा है और वह निर्दोष है। हालांकि, राज्य ने आवेदन का विरोध किया।

    पक्षकारों की दलीलों और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि आवेदक जमानत पर रिहा होने का हकदार है। अदालत ने निचली अदालत के न्यायाधीश को आगे के लिए सलाह देते हुए कहा कि वे कानून के प्रावधानों और जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों को तौलें और जमानत की अर्जी को आंख मूंदकर खारिज न करें।

    कोर्ट ने कहा,

    निचली अदालत (वंदना जैन, तृतीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विदिशा) को सलाह दी जाती है कि वे भविष्य में कानून के प्रावधानों और जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्यों के माध्यम से आदेश पारित करें और जमानत आवेदन को आँख बंद करके अस्वीकार न करें।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने आवेदक को जमानत दे दी और तदनुसार, आवेदन की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: देवेंद्र लोधी बनाम म.प्र. राज्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एमपी) 131

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