मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता, जनहित याचिका पर 28 जुलाई को होगी सुनवाई
Amir Ahmad
23 July 2025 4:08 PM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट 28 जुलाई को जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करेगा जिसमें राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्टूडेंट्स की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को चौंकाने वाला रुझान बताया गया।
चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय साराफ की खंडपीठ ने बुधवार (23 जुलाई) को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए याचिकाकर्ता के वकील की उपस्थिति को नोट करते हुए मामले को सोमवार के लिए सूचीबद्ध किया है जब वकील व्यक्तिगत रूप से पेश होंगे।
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण कुमार भार्गव द्वारा दाखिल की गई, जिन्होंने दावा किया कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु मिलकर देश में छात्रों की आत्महत्याओं के लगभग एक-तिहाई मामलों के लिए जिम्मेदार हैं।
याचिका में IC3 इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'Students Suicide: An Epidemic Sweeping India, Volume 2' और UNICEF की 'The State of the World's Children' रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि भारत में 15-24 आयु वर्ग के हर सात में से एक युवा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है लेकिन केवल 41% युवा ही मदद लेने की आवश्यकता महसूस करते हैं, जो इस क्षेत्र में जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक को दर्शाता है।
याचिका में दावा किया गया कि मध्यप्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टूडेंट्स की आत्महत्याओं को अक्सर प्राकृतिक मौत दिखा कर छुपा लिया जाता है। आरोप है कि माता-पिता या तो दबाव में आकर या डर के चलते मामले को अधिकारियों तक नहीं पहुंचाते।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि निजी संस्थान अक्सर परिवारों को मामले की रिपोर्ट न करने के लिए हतोत्साहित करते हैं और कई मामलों में दबाव भी डालते हैं जिससे सूचना का दमन होता है और भय का वातावरण बनता है।
2024 की संसदीय बहसों में भी मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्याओं की घटनाओं पर चिंता जताई गई। साथ ही राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा गठित टास्क फोर्स की रिपोर्ट में कहा गया कि मध्यप्रदेश छात्र आत्महत्या दर के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है।
याचिका में राज्य सरकार और संबंधित प्राधिकरणों को निर्देश देने की मांग की गई कि वे मेडिकल कॉलेजों (सरकारी व निजी दोनों) में कामकाज की स्थिति और माहौल में सुधार लाएं। साथ ही पिछले 10 वर्षों में कॉलेजों में हुई आत्महत्याओं की उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की गई है।

