मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने "अशुद्ध" पनीर बेचने के आरोपी विक्रेता को अग्रिम जमानत दी

Shahadat

5 Jan 2023 6:01 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अशुद्ध पनीर बेचने के आरोपी विक्रेता को अग्रिम जमानत दी

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में उस विक्रेता को अग्रिम जमानत दी, जिस पर आरोप है कि वह मानव इस्तेमाल के लिए अनुपयुक्त पनीर बेच रहा था।

    जस्टिस अतुल श्रीधरन की पीठ ने पाया कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि ग्राहक ने पनीर को इस भरोसे से खरीदा कि यह शुद्ध है, लेकिन बाद में उसमें मिलावटी पाई गई।

    कोर्ट ने कहा,

    आईपीसी की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के अपराध के लिए आईपीसी की धारा 415 की सामग्री को पूरा करना होगा। एक प्रतिनिधित्व होना चाहिए, जो व्यक्ति को ऐसे तरीके से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे उसे नुकसान होता है या ऐसे तरीके से कार्य करने के लिए जिसमें वह गलत प्रतिनिधित्व के लिए अन्यथा कार्य नहीं करता। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत नहीं होता कि ग्राहक ने पनीर को इस अभ्यावेदन के तहत खरीदा है कि पनीर शुद्ध है और बाद में मिलावटी पाया गया।

    मामले के तथ्य यह थे कि आवेदक की दुकान का निरीक्षण करते समय खाद्य निरीक्षक ने पनीर को जब्त कर लिया, जो खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 3(1)(जेडजेड) के तहत मानव उपभोग के लिए असुरक्षित पाया गया। एफएसएसए के तहत आवश्यक के रूप में आवेदक के खिलाफ शिकायत दर्ज की। इसके अलावा, उन्होंने आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 272, 273 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर भी दर्ज करवाई। गिरफ्तारी की आशंका को लेकर आवेदक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    आवेदक ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि उक्त एफआईआर दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर की गई। आगे यह तर्क दिया गया कि उस पर आरोप लगाया गया कि उसने एक अपराध किया, जो विशेष रूप से एफएसएसए के तहत उल्लिखित है, जिसके तहत उसे आईपीसी की धारा 57(1)(ii) के तहत दंड का सामना करना पड़ा। इसके विपरीत, राज्य ने जोर देकर कहा कि मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाले व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध बनाया जा सकता है।

    पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए न्यायालय ने आवेदक द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन से सहमति व्यक्त की। यह नोट किया गया कि आईपीसी की धारा 415 के तहत सामग्री को पूरा नहीं किया गया ताकि आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध को आकर्षित किया जा सके।

    फ़िर खाद्य निरीक्षक द्वारा स्वयं दर्ज किया गया है। हालांकि अन्य धाराओं के साथ धारा 272 और 273 इस मामले में प्रथम दृष्टया लागू होती हैं, संज्ञेय और जमानती अपराध नहीं हैं। प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि आवेदक के कृत्य पर केवल आईपीसी की धारा 57 (1) (ii) और धारा 272 और 273 के तहत कार्यवाही की जा सकती है। प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 420 के तहत आवेदक को अपराध के लिए उत्तरदायी बनाने के लिए आईपीसी की धारा 415 की सामग्री को पूरा नहीं किया गया।

    तदनुसार, आवेदन की अनुमति दी गई और आवेदक को अग्रिम जमानत का लाभ दिया गया।

    केस टाइटल: बीरबल धाकड़ बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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