मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की सजा के 12 साल बाद पत्नी की कथित हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया
Shahadat
26 Dec 2022 11:56 AM GMT
![मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की सजा के 12 साल बाद पत्नी की कथित हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या की सजा के 12 साल बाद पत्नी की कथित हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2021/12/18/750x450_406272-mp-high-court-jabalpur-bench.jpg)
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के 12 से अधिक वर्षों के बाद हाल ही में हत्या के दोषी को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष की कहानी पुलिस द्वारा तैयार किए गए साइट मैप के अनुरूप नहीं है।
जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो, इसे सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता।
खंडपीठ ने कहा,
"जहां तक गोपाल प्रसाद (पीडब्लू-1) और शांति बाई (पीडब्लू-2) के प्रत्यक्ष साक्ष्य का संबंध है, जिसमें उन्होंने गवाही दी कि अपीलकर्ता उस कमरे से भाग गया जहां उसकी पत्नी मृत पाई गई थी, यह ध्यान देने योग्य है कि यह किसी का मामला नहीं है कि वह अपराध किए जाने के समय मौजूद था और किसी नेअपीलकर्ता को अपराध स्थल से भागते देखा। इस पृष्ठभूमि में अभियोजन पक्ष को अपने मौखिक साक्ष्य की पुष्टि करने के लिए कुछ सबूत पेश करने चाहिए। इसके अभाव में और साइट मैप' दोषपूर्ण होने के कारण 'हम यह मानने में असमर्थ हैं कि अपीलकर्ता द्वारा अपराध स्थल से भागने का तथ्य अभियोजन पक्ष द्वारा संतोषजनक रूप से स्थापित किया गया।
अभियोजन पक्ष निस्संदेह अपना मामला स्थापित कर सका कि संगीता की मृत्यु का कारण श्वासनली का फटने से हुई है, न कि जलने के घाव से। हालांकि, जब तक यह सटीकता के साथ स्थापित नहीं हो जाता है कि अपीलकर्ता ने ही संगीता की हत्या की है, पीलकर्ता को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह सामान्य है कि संदेह मजबूत हो सकता है, लेकिन यह सबूत की जगह नहीं ले सकता।"
अपीलकर्ता मनोज को जुलाई, 2010 में अपनी पत्नी संगीता की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया। अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, 2008 में घटना की तारीख पर मनोज ने आधी रात के आसपास संगीता के चाचा बलराम से कहा कि उसने "खुद को आग लगा ली है।" इसके बाद बलराम मनोज के घर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला। उन्होंने दरवाजा तोड़ा और संगीता को मृत पाया।
मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया कि मौत का कारण श्वासनली का फटना था न कि जलने की चोट। तदनुसार, मनोज के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302, 304-बी दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 304-बी के अपराध से बरी कर दिया, लेकिन उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी पाया। व्यथित, अपीलकर्ता ने अपनी सजा के खिलाफ न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
अपीलकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि अभियोजन का मामला यह है कि उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी और घटनास्थल से भाग गया। हालांकि, कमरे से निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था, जो अंदर से बंद था।
पुलिस द्वारा तैयार किए गए साइट मैप का हवाला देते हुए अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उक्त दरवाजे के अलावा कमरे से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था। दीवारों के अंदर से टूटे होने के भी कोई निशान नहीं है। इस प्रकार, यह दावा किया गया कि ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि अपीलकर्ता अपनी पत्नी की हत्या कर सकता है और दरवाजे को अंदर से बंद करके घटनास्थल से भाग गया। उसने आगे गवाहों द्वारा दी गई गवाही से प्रासंगिक अंशों की ओर इशारा किया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि लोगों को उस परिसर में प्रवेश करने के लिए दरवाजा तोड़ना पड़ा, जहां उन्होंने मृतक पाया। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई कि अभियोजन के मामले में भौतिक विसंगतियां हैं, इसलिए उसकी दोषसिद्धि रद्द की जाए।
इसके विपरीत, राज्य ने तर्क दिया कि मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मृतक की मृत्यु श्वासनली के फटने के कारण हुई न कि जलने से। इस प्रकार, यह प्रस्तुत किया गया कि अपराध की जघन्य प्रकृति और रिकॉर्ड पर लाए गए सबूतों को देखते हुए अपीलकर्ता की दोषसिद्धि में हस्तक्षेप के लिए कोई मामला नहीं बनता।
पक्षकारों की दलीलों और ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड की जांच करते हुए अदालत ने अपीलकर्ता द्वारा दिए गए तर्कों में दम पाया। कोर्ट ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही से साफ है कि दरवाजा अंदर से बंद था।
पीठ ने कहा,
"इन सभी गवाहों ने स्पष्ट रूप से कहा कि उक्त दरवाजा सब्बल की मदद से तोड़ा गया और जब स्पॉट मैप तैयार किया गया तो दरवाजा घर के आंगन में पड़ा था।"
कोर्ट ने पुलिस द्वारा तैयार किए गए साइट मैप पर भी ध्यान दिया, जिसमें संकेत दिया गया कि कमरे में अंदर से बंद दरवाजे के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
अदालत ने कहा,
"'साइट मैप' में इस बात का कोई संकेत नहीं है कि जिस कमरे में मृतक पाई गई थी, उसकी कोई दीवार कच्ची थी या उसकी भागने के लिए जगह बनाने के लिए उसमें ईंटों को हटाया गया था। इस प्रकार, गोपाल प्रसाद के मौखिक बयान के अलावा (PW-1) और शांति बाई (PW-2) और चाचा (PW-4) के बयान से यह साबित करने के लिए कोई अन्य सामग्री नहीं है कि ईंटों को हटाकर मृतक की हत्या करने के बाद अपीलकर्ता कमरे से भाग गया।"
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपना मामला उचित संदेह से परे स्थापित नहीं किया। तदनुसार, अपील स्वीकार की गई और अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: मनोज उर्फ गुड्डू बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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