प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के सक्रिय सदस्य होने के आरोपी अब्दुल्ला सऊद अंसारी को लखनऊ एनआईए कोर्ट ने दी जमानत
Brij Nandan
10 Jan 2023 10:00 AM IST
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले की एक अदालत ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कथित सदस्य अदुल्लाह सऊद अंसारी को जमानत दे दी, जिसे पिछले साल एनआईए ने गिरफ्तार किया गया था।
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश, एन.आईए/ए.टी.एस, लखनऊ विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए अंसारी को जमानत पर रिहा करने के लिए पर्याप्त आधार पाया कि उस पर लगाई गई धाराएं सात साल से कम के कारावास के साथ दंडनीय हैं और वह सितंबर 2022 से जेल में बंद है।
अभियोजन पक्ष के कागजातों के अवलोकन से स्पष्ट है कि वर्तमान मामले में आरोपी प्रतिबंधित संगठन पी.एफ.आई. का सदस्य है। और उसके पास से P.F.I से संबंधित सामग्री और वीडियो क्लिप बरामद हुई है। हालांकि आरोपी का बयान है कि उसके पास से कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई है। उसे जांच अधिकारी द्वारा पूछताछ के बहाने पुलिस स्टेशन बुलाकर गिरफ्तार किया गया और उस पर लगाई गई धाराओं के तहत सात साल से कम कारावास की सजा का प्रावधान है।
अंसारी को पिछले साल सितंबर में एनआईए द्वारा किए गए एक छापे में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था, जिसमें उन्हें कथित तौर पर पीएफआई से संबंधित सामग्री और पीएफआई के भड़काऊ भाषणों के कब्जे में पाया गया था।
आरोपों के अनुसार, उसके पास से कुछ अन्य वीडियो फुटेज भी बरामद हुए हैं, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे मुस्लिम समुदाय को अन्य समुदायों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। उसके पास से सुरक्षाबलों द्वारा मुस्लिम समुदाय पर किए गए अपराध से जुड़ा एक वीडियो भी मिला है।
गौरतलब है कि उसने पीएफआई पर केंद्र के प्रतिबंध के बाद एनआईए पर गंभीर आरोप लगाते हुए जफरुल इस्लाम के वीडियो को साझा किया था, जिससे साबित होता है कि अंसारी पीएफआई का सक्रिय सदस्य है और वास्तव में, उसने कबूल किया कि वह 2017 से पीएफआई का एक सक्रिय सदस्य के रूप में काम कर रहा है।
नतीजतन, उसे गिरफ्तार किया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 153बी और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 7,8,13(1)(ए)(बी) और 13(2) के तहत मामला दर्ज किया गया।
अंसारी के वकीलों ने जमानत की मांग करते हुए अदालत का रुख किया और कहा कि अभियोजन पक्ष ने उन्हें झूठा फंसाया, जब वह जांच अधिकारी के साथ सहयोग करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन गए थे, जिसमें उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और परिवार को बिना कोई सूचना दिए न्यायिक रिमांड पर ले जाया गया था जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41A का सीधा उल्लंघन है।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि पुलिस ने आवेदक पर बहुत दबाव डाला और उससे कई सादे कागजों पर हस्ताक्षर करवाए। हालांकि, उसके पास से ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ, जिससे यह साबित हो सके कि वह किसी संदिग्ध या राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल था।
अंत में, सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य और अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून पर भरोसा करते हुए, उनके वकीलों ने इस आधार पर जमानत मांगी कि उनके खिलाफ कथित अपराध 7 साल की कैद यानी कम दंडनीय है।
इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने उसे 50 हजार रुपये का निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत दे दी। इसके साथ ही मुकदमे में सहयोग करने का निर्देश दिया।
एडवोकेट नजमुसाकिब खान, अजीजुल्लाह खान, साजिद खान, और ओबैदुल्ला खान ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा सुविधा प्रदान करने वाले आवेदक का प्रतिनिधित्व किया।
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें: