वैध गर्भपात की ऊपरी सीमा को बढ़ाने का विधेयक लोकसभा में पास
LiveLaw News Network
19 March 2020 10:45 AM IST
लोकसभा ने मंगलवार को गर्भ को हटाने के बारे में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नन्सी (संशोधन) विधेयक, 2020 को पास कर दिया। ऐसा महिलाओं की स्वास्थ्य की सुरक्षा की दृष्टि से किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्टों में कई सारी याचिकाएँ दायर की गई जिसमें 20 सप्ताह से ज़्यादा समय के गर्भ को हटाने की अनुमति दिए जाने की माँग की गई थी। इस माँग के आधार गर्भ में असामान्य गड़बड़ियाँ और यौन हिंसा के कारण होनेवाले गर्भ थे और इसी वजह से इस संशोधन विधेयक को लाया गया।
इस विधेयक को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने पेश किया और ताकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नन्सी (संशोधन) विधेयक, 1971 की धारा 3 को संशोधित कर 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दिए जाने का प्रावधान है। इस श्रेणी में बलात्कार की पीड़ित महिलाएँ भी शामिल होंगी।
इस विधेयक के लक्ष्य और इसके संशोधन के कारण के बारे में जो कहा गया है वह इस तरह से है -
"समय बीतने और मेडिकल तकनीक में प्रगति होने के कारण गर्भ को समाप्त करने की ऊपरी सीमा बढ़ायी जा सकती है विशेषकर ऐसी महिलाओं के लिए जो अवांछित गर्भ का शिकार हो जाती हैं या जिनके गर्भ में कोई गड़बड़ी पैदा हो जाती है। फिर, महिलाओं को सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात की सेवा तक पहुँच को सुनिश्चित करने की भी ज़रूरत है ताकि डिलीवरी के दौरान माताओं की मृत्यु और असुरक्षित गर्भपात के कारण उनको होनेवाले ख़तरे और जटिलताओं को कम किया जा सके।"
मेडिकल राय
संशोधन विधेयक के अनुसार, 20 सप्ताह तक के गर्भ को हटाने के लिए डॉक्टर की राय की ज़रूरत होगी; और 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने के लिए दो डॉक्टरों की राय की ज़रूरत होगी।
डॉक्टरों की राय यह होनी चाहिए कि गर्भ को जारी रखने से इसे धारण करनेवाली महिला की जान को ख़तरा हो सकता है और उसे गंभीर शारीरिक और मानसिक आघात पहुँच सकता है; या यह कि अगर बच्चे की डिलीवरी हुई तो वह किसी गंभीर शारीरिक और मानसिक विकृति का शिकार होने की आशंका होगी।
महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विधेयक में कहा गया है कि ऊपरी अवधि की सीमा उन गर्भपातों पर लागू नहीं होंगे जहाँ मेडिकल बोर्ड ने गर्भ में किसी गड़बड़ी की आशंका ज़ाहिर की है।
मेडिकल बोर्ड
मेडिकल बोर्ड में (i) एक स्त्री-रोग विशेषज्ञ; (ii) एक शिशु-रोग विशेषज्ञ; (iii) एक रेडियोलोजिस्ट या सोनोलोजिस्ट; और (iv) अन्य सदस्य जिसको शामिल करने का निर्णय राज्य सरकार पर है। ये कैसे कार्य करेंगे इस बारे में विवरण एमटीपी नियमों द्वारा बाद में जारी किए जाएँगे।
पहचान की गोपनीयता
विधेयक में कहा गया है कि जिस महिला का गर्भपात होना है उसका नाम और अन्य विवरण गोपनीय रखा जाएगा। सिर्फ़ उस व्यक्ति का नहीं जिसको क़ानून के तहत ऐसा करने की इजाज़त दी गई है; और अगर कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसे एक महिने तक की जेल की सज़ा या जुर्माना देना होगा या दोनों ही दंड लगाए जाएँगे।
संसदीय बहस
इस विधेयक का समर्थन कई सदस्यों ने किया। इन सदस्यों ने कहा कि इससे ऐसी महिलाओं को बहुत राहत मिलेगी जो अवांछित गर्भ से छुटकारा पाना चाहती हैं। सदस्यों ने इस विधेयक में गोपनीयता बरतने के प्रावधानों की भी प्रशंसा की।
हालाँकि कुछ सदस्यों ने सतर्क करते हुए कहा कि विधेयक का संशोधन इस तरह से किया जाए कि इसका दुरुपयोग नहीं हो और लोग लड़कियों के गर्भ को समाप्त करने के लिए इसका प्रयोग न करें यह सुझाव दिया गया कि न केवल गर्भवती महिलाओं बल्कि ट्रान्सजेंडरों को भी इस विधेयक के तहत रखा जाए।