कुछ दिन एक साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि दो वयस्क वास्तव में 'लिव-इन-रिलेशन' में हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 Dec 2021 5:24 AM GMT

  • कुछ दिन एक साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि दो वयस्क वास्तव में लिव-इन-रिलेशन में हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर विचार करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि दो वयस्क कुछ दिनों से एक साथ रह रहे हैं, उनका यह दावा पर्याप्त नहीं है कि वे वास्तव में लिव-इन-रिलेशनशिप में हैं।

    न्यायमूर्ति मनोज बजाज की पीठ ने 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज किया और यह नोट किया गया कि याचिका कार्रवाई के वैध कारण के बिना दायर की गई थी।

    पूरा मामला

    पीठ अनिवार्य रूप से 18 साल की लड़की और 20 साल के लड़के द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने दावा किया था कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं और वयस्क होने पर शादी करने का फैसला किया।

    सुरक्षा याचिका में यह कहा गया था कि लड़की के माता-पिता उनके खिलाफ हैं और उन्होंने अपनी पसंद के लड़के के साथ उसकी शादी करने का फैसला किया है, और उन्हें झूठे आपराधिक मामले में फंसाने की चेतावनी भी दी है। इसलिए, वे अब लिव इन रिलेशन में साथ रहते हैं।

    सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता दिनांक 24 नवंबर 2021 से लिव-इन रिलेशनशिप में (होटल में) साथ रह रहे हैं (कोर्ट के आदेश की तारीख 26 नवंबर)।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा व्यक्त की गई धमकी की आशंका वास्तविक नहीं लगती है।

    अदालत ने यह भी कहा कि निजी प्रतिवादियों द्वारा उनके खिलाफ अब तक कोई शिकायत नहीं की गई है।

    कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी निजी प्रतिवादी द्वारा पुलिस को शिकायत की जाती है तो इसे उनके जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरा नहीं माना जा सकता है क्योंकि निजी प्रतिवादी भी अपने उपचार का लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र हैं।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि समाज पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक मूल्यों में गहरा बदलाव अनुभव कर रहा है, विशेष रूप से उत्साही युवाओं के बीच, जो शायद ही कभी पूर्ण स्वतंत्रता की खोज में अपने माता-पिता का साथ छोड़ कर उनकी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने लगे हैं।

    अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे जोड़ों द्वारा दायर की गई सुरक्षा याचिकाएं आमतौर पर केवल लड़की के अस्वीकार करने वाले माता-पिता या अन्य करीबी रिश्तेदारों के खिलाफ खतरे की आशंका के एकमात्र आधार पर आधारित होती हैं, क्योंकि जोड़े के फैसले का लड़के के परिवार के सदस्यों द्वारा शायद ही कभी विरोध किया गया है।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "एक साथ रहने का उनका अधिकार या तो उनके अचानक, गुप्त और छोटे गंतव्य विवाह या लिव-इन-रिलेशनशिप पर आधारित है। ऐसी अधिकांश याचिकाओं में औपचारिक प्रतीकात्मक कथन कार्रवाई के काल्पनिक कारण के आधार होते हैं और शायद ही कभी वास्तविक खतरे का अस्तित्व होता है और इस तरह के मामले इस अदालत के काफी समय का उपभोग करते हैं।"

    कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि लिव इन रिलेशनशिप एक दूसरे के प्रति कुछ कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ मिलकर ऐसे रिश्तों को वैवाहिक संबंधों के समान बनाती है।

    केस का शीर्षक - हिमानी एंड अन्य बनाम हरियाणा राज्य एंड अन्य

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