पिछली शादी को खत्म किए बिना लिव-इन रिलेशनशिप द्विविवाह के समान हो सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

15 Nov 2023 11:18 AM IST

  • पिछली शादी को खत्म किए बिना लिव-इन रिलेशनशिप द्विविवाह के समान हो सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पहले पति या पत्नी से शादी खत्म किए बिना किसी अन्य महिला/पुरुष के साथ रहना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 494, 495 के तहत द्विविवाह (Bigamy) का अपराध हो सकता है।

    जस्टिस कुलदीप तिवारी ने कहा,

    "...अपने पूर्व पति या पत्नी से तलाक की कोई वैध डिक्री प्राप्त किए बिना और अपनी पिछली शादी के अस्तित्व के दौरान, याचिकाकर्ता नंबर 2 याचिकाकर्ता नंबर 1 के साथ वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहा है, जो आईपीसी की धारा 494/495 के तहत दंडनीय अपराध हो सकता है, क्योंकि ऐसा रिश्ता विवाह की प्रकृति में 'लिव-इन रिलेशनशिप' या 'रिलेशनशिप' के वाक्यांश के अंतर्गत नहीं आता है।"

    ये टिप्पणी लिव-इन जोड़े द्वारा दायर रिट याचिका के जवाब में आई, जिसमें महिला के रिश्तेदारों द्वारा कथित धमकी से पुलिस सुरक्षा की मांग की गई। यह प्रस्तुत किया गया कि वे सितंबर से 'लिव-इन रिलेशनशिप' में रह रहे हैं और उनके रिश्ते को पुरुष के परिवार ने स्वीकार कर लिया है। हालांकि इससे महिला के रिश्तेदारों को शिकायत हुई।

    याचिका में कहा गया कि उन्हें महिला के परिवार के सदस्यों से जान से मारने की धमकी मिल रही है, इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा की जरूरत है।

    याचिका की जांच करते हुए कोर्ट ने कहा कि आदमी पहले से ही शादीशुदा है और उसकी पत्नी से एक बच्ची भी है।

    आगे यह नोट किया गया,

    "इसके अलावा, हालांकि याचिकाकर्ता नंबर 2 और उसकी पत्नी के बीच तलाक के मामले की स्थापना के तथ्य, फैमिली कोर्ट, पटियाला के समक्ष याचिका में दर्ज किए गए। हालांकि, उस का अंतिम भाग्य याचिका में तलाक के मामले का खुलासा नहीं किया गया, जो इस अदालत को यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करता है कि उक्त तलाक का मामला अभी विचाराधीन है।"

    याचिका पर विचार करने के बाद न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि "केवल निराधार और अस्पष्ट आरोप, निजी उत्तरदाताओं द्वारा याचिकाकर्ताओं को दी जा रही धमकियां, इसमें लगाए गए हैं।"

    इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपने आरोपों की पुष्टि के लिए न तो कोई सहायक सामग्री रिकॉर्ड पर रखी गई, न ही याचिकाकर्ताओं को दी जा रही कथित धमकियों के तरीके से संबंधित एक भी उदाहरण का कहीं भी खुलासा नहीं किया गया।

    न्यायालय ने आगे कहा कि इसलिए समर्थन में किसी भी वैध और ठोस सामग्री के अभाव में ऐसे अस्पष्ट आरोपों को न्यायालय द्वारा आसानी से और भोलेपन से स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस तिवारी ने इस बात पर प्रकाश डाला,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि व्यभिचार के मामले में किसी भी आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए वर्तमान याचिका शुरू की गई। इस न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के आह्वान की आड़ में इस न्यायालय के न्यायिक विवेक में याचिकाकर्ताओं का छिपा हुआ इरादा केवल अपने आचरण पर इस न्यायालय की मुहर प्राप्त करना है।"

    उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।

    अपीयरेंस: वीरेंद्र सिंह, याचिकाकर्ताओं के वकील।

    केस टाइटल: रीना देवी एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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