लिव इन रिलेशनशिप सामाजिक नैतिकता, संविधान प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार में बाधक नहीं बन सकती : राजस्थान हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Sep 2021 9:37 AM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट 

    राजस्थान हाईकोर्ट ने बिना विवाह के एक साथ रहने का निर्णय करने वाले प्रेमी युगलों के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा को लेकर निरंतर चली आ रही कानूनी बहस को आगे बढ़ाते हुए अहम आदेश में कहा है कि नैतिकता और कानून में विरोधाभास होने की स्थिति में भी नागरिकों को उनके संविधान प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस डॉ. पुष्पेन्द्रसिंह भाटी ने सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया और हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा पारित सभी आदेशों पर विचार करते हुए साफ कर दिया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है और सार्वजनिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता पर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार की कानूनी वैधता सर्वोपरि है।

    एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं के प्रतिवेदन पर पुलिस को संभावित खतरे का आकलन करते हुए आवश्यक होने पर सुरक्षा उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए।

    दरअसल, राजस्थान हाईकोर्ट में एक विवाहिता और उसके साथी ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर कहा कि वे दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप में हैं। महिला विवाहित है और पुरुष साथी से एक वर्ष बड़ी है। लिव-इन सम्बन्ध के कारण उनकी सुरक्षा को खतरा है। याचिकाकर्ता विवाहिता ने आरोप लगाया कि एक लड़की को जन्म देने के कारण लगातार उत्पीडऩ और हिंसा के चलते उसने स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने का विकल्प चुना था।

    याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता अपने सम्बन्धों को लेकर कोर्ट की मंजूरी नहीं मांग रहे, बल्कि केवल अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।

    जस्टिस डॉ. पुष्पेन्द्रसिंह भाटी की एकलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए कहा,

    "सभी मौलिक अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा राज्य का कर्तव्य है। यहां तक कि यदि कोई अवैध या गलत काम किया गया है तो कानून की उचित प्रक्रिया के अनुरूप दंडित करने का कर्तव्य पूरी तरह राज्य के पास है। राज्य किसी भी परिस्थिति में मोरल पुलिसिंग या भीड़ की मनसिकता की आड़ में इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता। जब गंभीर अपराधों के दोषी अपराधियों को भी जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है तो कानूनी या अवैध सम्बन्धों में उन लोगों को समान सुरक्षा प्रदान नहीं करने का कोई कारण नहीं हो सकता। कोर्ट के सामने लिव-इन सम्बन्धों की वैधता और उससे जुड़े मामलों के सम्बन्ध में कोई प्रश्न होता तो शायद अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती।"

    कोर्ट ने कहा,

    "सभी नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करने का अधिकार है और इसका लाभ उठाया जा सकता है। इस अधिकार को समाप्त करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, भले ही सुरक्षा की मांग करने वाला व्यक्ति अनैतिक, गैरकानूनी या अवैध कार्य का दोषी हो।"

    पीठ ने कहा कि यह कोर्ट स्वयं को व्यक्तिगत स्वायत्ता के सिद्धांत से मजबूती से बंधा हुआ पाता है, जिसे एक जीवंत लोकतंत्र में सामाजिक अपेक्षाओं से बाधित नहीं किया जा सकता। हम इस सिद्धांत को पूरी तरह महत्व देते हैं कि संवैधानिक नैतिकता का सामाजिक नैतिकता पर एक अधिभावी प्रभाव है। सार्वजनिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता पर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार की कानूनी वैधता सर्वोपरि है।

    केस का शीर्षक - लीला बनाम राजस्थान राज्य व अन्य

    (एडवोकेट रजाक के. हैदर, लाइव लॉ नेटवर्क)

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