सभी कैदी कर सकेंगे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रायवेट वकील के साथ कानूनी साक्षात्कार, दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में बताया

LiveLaw News Network

7 July 2020 10:54 AM GMT

  • सभी कैदी कर सकेंगे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रायवेट वकील के साथ कानूनी साक्षात्कार, दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में बताया

    दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्राायवेट वकील के साथ कानूनी साक्षात्कार करने की सुविधा अब दिल्ली के सभी कैदियों को दी जाएगी।

    एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जलान की पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार ने यह जानकारी दी है। सरकार की तरफ से बताया गया है कि अब सभी कैदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा ले सकेंगे,ताकि वे अपने वकील के साथ कानूनी साक्षात्कार कर सके।

    अधिवक्ता सार्थक मग्गन के जरिए दायर इस याचिका में तर्क दिया गया था कि 23 मार्च को एक आदेश जारी करके जेल में कैदियों से मिलने की सुविधा को निलंबित कर दिया गया था। उसके बावजूद अब तक कोई भी ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है ताकि टेलिफोन के जरिए बातचीत की जा सकें।

    दिल्ली सरकार के लिए पेश हुए श्री सत्यकाम ने अदालत को बताया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा अब निम्नलिखित शर्तों के आधार पर सभी कैदियों को दे दी गई है,जो इस प्रकार हैं-

    ए-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या वीसी के लिए वकील ई-मेल के माध्यम से अनुरोध कर सकेंगे,जिन पर जेल अधीक्षक द्वारा विचार किया जाएगा।

    बी-वीसी की अनुमति देने या न देने के संबंध में अधीक्षक वकालतनामा और आवेदक की पहचान की पुष्टि करने के बाद उचित निर्णय लेगा।

    सी-वीसी के लिए एक स्लॉट या समय जल्द से जल्द तय कर दिया जाएगा और तय स्लॉट से एक दिन पहले आवेदक को इसी सूचना भेज दी जाएगी।

    डी-एक कैदी को एक सप्ताह में दो बार 30-30 मिनट की वीसी के स्लाॅट देने की अनुमति होगी।

    ई-पहले आओ पहले पाओ के आधार पर वीसी के अनुरोधों पर विचार किया जाएगा।

    एफ-कानूनी साक्षात्कार उप अधीक्षक /सहायक अधीक्षक की उपस्थिति में किए जाएंगे,लेकिन वह दूर से निगरानी करेंगे।

    जी-किसी भी दुरुपयोग के मामले में, वीसी सुविधा को तुरंत खत्म कर दिया जाएगा।

    याचिकाकर्ता की तरफ से पेश उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने सर्कुलर में मौजूद कई अस्पष्टताओं पर आपत्ति जताई। श्री पाहवा ने विशेष तौर पर 'पहले आओ पहले पाओ' और 'सुविधा का दुरुपयोग' जैसे वाक्यांशों के खिलाफ आपत्ति जाहिर की।

    श्री पाहवा ने कहा कि इन दिशानिर्देशों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मुविक्कल या कैदी और उसके वकील के बीच विशेषाधिकार प्राप्त संचार हो पाए, जो कैदी की निजता के अधिकार का एक हिस्सा है।

    इसके अलावा, श्री पाहवा ने कहा कि फोन काॅल करने की अनुमति भी दी जाए और वीसी के अनुरोध पर संबंधित अधीक्षक द्वारा विचार करने के लिए 48 घंटे की समयावधि निर्धारित की जाए।

    विशेषाधिकार प्राप्त संचार के मुद्दे पर, श्री सत्यकाम ने कहा कि इसका उल्लंघन नहीं किया जाएगा क्योंकि जेल अधिकारी उस जगह पर केवल सुरक्षा उद्देश्यों के कारण ही उपस्थित होंगे, लेकिन वह इस सुनवाई से दूर रहेंगे।

    इन सबमिशनों को रिकॉर्ड में लेने के बाद अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए सरकार से कहा कि वह याचिकाकर्ता के सुझावों पर विचार करे। जिसके बाद सरकार चाहे तो उक्त परिपत्र में संशोधन कर सकती है और इसे उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक अनुकूल बनाया जा सकता है।

    अदालत ने याचिकाकर्ता से भी कहा है कि अगर उसे इस सर्कुलर में प्रदान की गई किसी भी सुविधा के कार्यान्वयन के बारे में कोई शिकायत हो तो वह फिर से अदालत आने के लिए स्वतंत्र होगा।

    Next Story