"वकील पेशेवर फीस लेते हैं और फिर अपने काम से दूर भागते हैं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले के समयबद्ध निपटान की मांग वाली याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

5 Aug 2021 2:51 AM GMT

  • वकील पेशेवर फीस लेते हैं और फिर अपने काम से दूर भागते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले के समयबद्ध निपटान की मांग वाली याचिका खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले के समयबद्ध निपटान की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,

    "वकील एक तरफ अदालत के कामकाज को हल्के में नहीं ले सकते। जाहिर है, वकीलों ने अपनी पेशेवर फीस ली होगी और उसके बाद वे काम से परहेज कर रहे हैं और दूसरी तरफ, वे संबंधित अदालत को एक निश्चित अवधि के भीतर मामले का फैसला करने के लिए निर्देश देने की मांग कर रहे हैं।"

    न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला की खंडपीठ प्रफुल्ल कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इलाहाबाद डिविजन, इलाहाबाद के आयुक्त को अदालत द्वारा तय की गई एक निश्चित अवधि के भीतर अपील पर फैसला करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    न्यायालय ने वर्ष 2014 से ही आदेश-पत्र का अवलोकन किया और नोट किया कि कुछ तिथियों को छोड़कर लगभग सभी वकीलों ने काम से परहेज किया और एक बार अभियोजन के अभाव में भी अपील खारिज कर दी गई थी।

    दिलचस्प बात यह है कि चूंकि वकील नियमित रूप से काम से परहेज कर रहे हैं, इसलिए आदेश-पत्र पर एक रबर स्टैंप का इस्तेमाल किया गया कि वकील काम से परहेज कर रहे हैं।

    कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति वर्ष 2014 से ही आज तक जारी है, सिवाय उस अवधि को छोड़कर जब कोर्ट COVID-19 महामारी के कारण काम नहीं कर पा रहे थे।

    न्यायालय ने कहा कि,

    "लगभग हर दिन बड़ी संख्या में याचिकाएं इसी तरह की प्रार्थनाओं के साथ इस अदालत के सामने आ रही हैं कि कार्यवाही एक समयबद्ध अवधि के भीतर तय की जाए और ज्यादातर मामलों में मामले की ऑर्डर शीट केवल कुछ अपवादों के साथ समान स्थिति को दर्शाती है। यह नीचे की अदालतों में विशेष रूप से राजस्व के मामले में खेदजनक स्थिति के बारे में बहुत कुछ बोलता है।"

    अदालत ने ऐसी परिस्थितियों में रिट याचिका में प्रार्थना के अनुसार राहत देने से इनकार कर दिया और इसे अदालत की चिंता और अंततः वादियों के साथ-साथ करदाताओं के वित्तीय या संसाधनों की बर्बादी कहा।

    कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के निर्देश और/या परमादेश जारी किए जाते हैं तो मामले का फैसला नहीं होने पर कोर्ट/प्राधिकरण पर कोर्ट की अवमानना की धमकी दी जाएगी।

    न्यायालय ने फैसला सुनाया कि,

    "यह फिर से अदालत पर एक अनावश्यक बोझ पैदा करते हुए मुकदमेबाजी पैदा करता है। फिर से बड़ा सवालिया निशान है, किसके लाभ के लिए? हो सकता है कि वही वकील जो काम से दूर रहकर इस मुकदमे को पैदा कर रहा हो, जो वास्तव में पर्याप्त वकील के रूप में सेवा नहीं कर रहा है।"

    इस प्रकार रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    अंत में सरकारी वकील के साथ-साथ रजिस्ट्री को आदेश की एक प्रति संबंधित बार एसोसिएशन को 15 दिनों की अवधि के भीतर भेजने का निर्देश दिया गया ताकि बार एसोसिएशन और संबंधित बार एसोसिएशन के सदस्यों को इसके बारे में जागरूक किया जा सके।

    कोर्ट ने रजिस्ट्री को इस मुद्दे पर वकीलों को जागरूक करने के उद्देश्य से सभी बार एसोसिएशनों को अग्रेषित करने के लिए क्षेत्र के सभी जिला न्यायाधीशों और आयुक्तों और राजस्व बोर्ड को आदेश की एक प्रति भेरने का भी निर्देश दिया।

    केस का शीर्षक - प्रफुल्ल कुमार बनाम यूपी राज्य एंड अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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