वर्चुअल सुनवाई के दौरान वकील ने नहीं पहना नेक-बैंड: उड़ीसा उच्च न्यायालय ने 'पेशे की गरिमा बहाल करने के लिए' 500 रुपये जुर्माना लगाया

Sparsh Upadhyay

21 Feb 2021 4:59 AM GMT

  • Lawyer Not Wearing Neck-Band During Virtual Hearing

    Image Courtesy: India Today

    उड़ीसा उच्च न्यायालय ने सोमवार (15 फरवरी) को वर्चुअल मोड में कोर्ट के समक्ष बहस करते समय नेक-बैंड नहीं पहनने के चलते एक वकील पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया।

    जुर्माना लगाते हुए, न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही की पीठ ने देखा,

    "यह पेशा प्रकृति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी प्रफुल्लता इसकी पोशाक की पूरक है। एक वकील होने के नाते, उनसे उचित पोशाक के साथ गरिमापूर्ण तरीके से अदालत में पेश होने की उम्मीद है, भले ही यह एक वर्चुअल मोड हो।"

    गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान (एक जमानत मामले में), अदालत ने देखा कि इन्फॉर्मन्ट के वकील ने बहस के समय नेकबैंड नहीं पहना था।

    न्यायालय ने आगे उल्लेख किया कि वकीलों का ड्रेस कोड अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत निर्धारित नियमों द्वारा शासित है, जिसके अंतर्गत वकीलों को सफेद शर्ट और सफेद नेकबैंड पहनना अनिवार्य हो जाता है।

    न्यायालय द्वारा यह भी टिप्पणी की गई थी कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 49 (1) (जीजी) के तहत नियत नियम, नामित वरिष्ठ अधिवक्ताओं या अन्य अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड निर्धारित करता है।

    यह देखते हुए कि वकील ने अधिवक्ता अधिनियम के तहत निर्धारित ड्रेस कोड का उल्लंघन किया है, अदालत ने टिप्पणी की,

    "शिष्टाचार, दरबारी और पोशाक विशेष रूप से वकीलों के लिए क्षरण और व्यावसायिकता के सूक्ष्म संकेतक हैं और यह पेशे पर लोगों की धारणा को दृढ़ता से प्रभावित करता है। पेशा प्रकृति में गंभीर है और इसकी निपुणता इसकी पोशाक से पूरी होती है।"
    "कोर्ट निर्धारित ड्रेस कोड सहित पेशे की गरिमा को बहाल करने के लिए कर्तव्यबद्ध है," कोर्ट ने कहा।

    उपरोक्त के मद्देनजर, इन्फॉर्मन्ट के वकील को अगली तारीख तक उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के कल्याण कोष के साथ लागत के रूप में, 500 जमा करने का निर्देश दिया गया।

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    यह देखते हुए कि एक वकील कार में बैठकर "लापरवाही से" वर्चुअल सुनवाई में 'शामिल हुए, मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार (03 फरवरी) ने वकील के आचरण पर नाराजगी व्यक्त की

    कोर्ट ने कहा,

    "वकील लापरवाही से एक कार में बैठकर याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए हैं, जो कि उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग नियमों के मद्देनजर अस्वीकार्य है।"

    ज‌स्ट‌िस एसएम सुब्रमण्यम की खंडपीठ ने कहा कि कार के पीछे एक अन्य व्यक्ति भी बैठा हुआ था, जबकि वकील वर्चुअल हियरिंग के लिए पेश हुए थे। इस पर कोर्ट ने कहा,

    "कोर्ट की राय है कि मामले का प्रतिनिधित्व करने का ऐसा तरीका हाईकोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नियमों के अनुसार अदालती कार्यवाही का अनादर है।"

    पीटीआई के अनुसार, दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार (04 फरवरी) को कहा कि यह "चौंकाने वाला" है कि वकील "सड़कों पर, पार्कों में बैठकर और यहां तक कि सीढ़ियों पर चढ़ते हुए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों पर बहस कर रहे हैं या भाग ले रहे हैं", जिससे अदालत के लिए कार्यवाही करना मुश्किल हो जाता है...।

    नवंबर 2020 में, पीठासीन अधिकारी DRT-I अहमदाबाद, विनय गोयल ने एक वकील विशाल गोरी पर अपनी कार के अंदर बैठकर वर्चुअल सुनवाई में शामिल होने के कारण दस हजार रुपए का जुर्माना लगाया था।

    इसके अलावा, ऐसी घटनाएं हुई हैं, जहां अधिवक्ताओं को अनुचित कपड़े में वर्चुअल सुनवाई में शामिल होते पाया गया है।

    गुजरात हाईकोर्ट ने 23 सितंबर को एक आपराधिक विविध आवेदन की सुनवाई में पाया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के समक्ष पेश हुए आवेदक-अभियुक्त नंबर एक, अजीत कुभाभाई गोहिल खुलेआम थूक रहा था।

    आरोपी के आचरण को देखते हुए ज‌स्ट‌िस एएस सुफिया की खंडपीठ ने कहा था,

    "यह अदालत आवेदक-अभियुक्त नंबर 1 के आचरण को देखते हुए मामले को आज उठाने की इच्छुक नहीं है।"

    इसके अलावा, अदालत ने आवेदक-अभियुक्त नंबर एक को सुनवाई की अगली तारीख या उससे पहले हाईकोर्ट रजिस्ट्री के समक्ष 500 रुपए का जुर्मान जम करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि जुर्मान जमा नहीं करने पर मामले को सुनवाई के लिए नहीं लिया जाएगा।

    हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी एक वकील को कार के अंदर बैठकर वीडियो कॉन्फ्रेंस से कार्यवाही में भाग लेने के चलते फटकार लागई।

    चीफ जस्टिस अभय ओका और ज‌स्ट‌िस अशोक एस किन्गी की खंडपीठ ने कहा,

    "हालांकि असाधारण कारणों से, हमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई करनी पड़ती है। हम आशा करते हैं और बार के सदस्य भरोसे के साथ न्यूनतम ड‌ीकोरम का पालन करेंगे।"

    पिछले वर्ष जून में, सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की माफी को स्वीकार किया था, जिसने कोर्ट की वर्चुअल कार्यवाही में टी-शर्ट पहनकर बिस्तर पर लेटे हुए कार्यवाही में हिस्सा लिया था।

    राजस्थान उच्च न्यायालय ने वर्चुअल सुनवाई में अनुचित कपड़े पहनकर वकील के शामिल होने के कारण जमानत याचिका को स्थगित कर दिया था।

    हाल ही में, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने वाहनों, बगीचों और भोजन करते वर्चुअल सुनवाई में शामिल करने पर वकीलों की निंदा की थी।

    कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी। वकीन ने उस दिन की वर्चुअल अदालत की सुनवाई के स्क्रीनशॉट लिंक्‍डइन पर शेयर किया था।

    कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि आभासी अदालती कार्यवाही का स्क्रीनशॉट लेना वास्तविक कार्यवाही की तस्वीर खींचने जैसा है। हालांकि, बाद में वकील को चेतावनी देकर अवमानना ​​कार्यवाही को खत्म कर दिया गया था।

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