पुलिस ने माना, वाहनों में कोरोना वायरस की जांंच के लिए लाठी का प्रयोग किया, तेलंगाना हाईकोर्ट ने जताई हैरत

LiveLaw News Network

19 Jun 2020 11:16 AM GMT

  • पुलिस ने माना, वाहनों में कोरोना वायरस की जांंच के लिए लाठी का प्रयोग किया, तेलंगाना हाईकोर्ट ने जताई हैरत

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने पुलिस के यह मानने पर हैरत जताई कि वाहनों में कोरोना वायरस की जांच के लिए लाठी का प्रयोग किया गया।

    शीला सारा मैथ्यू ने एक याचिका दायर की, जिसमें लोगों पर लॉकडाउन का उल्लंघन करने के आरोप में जुल्म ढाने वाले पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई है।

    कोर्ट को इस बात पर अचरज हुआ जब पुलिस ने स्वीकार किया कि घरों के बाहर रखे दुपहिया वाहनों की जांच के क्रम में पुलिस ने लाठी का प्रयोग किया कि उनमें कोरोना वायरस मौजूद है कि नहीं।

    अदालत ने कहा कि पुलिस का यह कहना वास्तव में अचरज में डालने वाला है और पुलिस इस कथित घटना के बारे में पूरी रिपोर्ट अदालत में पेश करे।

    अदालत ने राज्य पुलिस से घायल लोगों की रिपोर्ट, उनके बयान अगर पुलिस ने रिकॉर्ड किया है तो देने को कहा और यह भी बताने को कहा कि इस बारे में दोषी पुलिसवालों के ख़िलाफ़ क्या विभागीय कार्रवाई हुई उसकी रिपोर्ट भी पेश करें।

    मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में पीठ ने पीड़ितों के उन बयानों अदालत में पेश करने को कहा जो पुलिस ने रिकॉर्ड किए हैं, जिनमें पीड़ितों ने कथित रूप से उनके साथ किसी तरह की घटना होने की बात से इनकार किया है।

    हैदराबाद के पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार ने खंडपीठ को बताया कि जिस व्यक्ति पर कथित रूप से पुलिस द्वारा हमले की बात कही गई है, उस पर हमला हुआ ही नहीं बल्कि वह वह पुलिस को आते देखकर भागा और गिर गया।

    इस पर अदालत ने कहा कि काउंटर हलफ़नामे में उसके घायल होने की रिपोर्ट पेश नहीं की गई है।

    इसी तरह एक अन्य मामले में यह दावा किया गया कि पुलिस ने एक अन्य व्यक्ति को मारा और इसके बारे में भी यही कहा गया है कि वह पुलिस को देखकर भागा और इस क्रम में वह मैनहोल में गिर गया और उसकी दाहिनी टांग टूट गई। अदालत ने कहा कि काउंटर हलफ़नामे में यह रिपोर्ट भी दायर नहीं की गई। हालांकि पुलिस का कहना है कि उसे उस्मानिया जनरल अस्पताल में एस्कोर्ट -एचजी 174 ने दाखिल कराया पर हलफ़नामे से मेडिकल रिपोर्ट भी ग़ायब है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति बी विजयसेन रेड्डी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने कहा कि यह आरोप है कि पुलिस ने एक विकलांग व्यक्ति पर हमला किया पर पुलिस का कहना है कि यह व्यक्ति मोटर वाहन अधिनियम का नियमित रूप से उल्लंघन करने वाला व्यक्ति है और उसके ख़िलाफ़ कम से कम 13 चालान काटे गए हैं, लेकिन काउंटर हलफ़नामे में कोई भी चालान पेश नहीं किया गया है।

    एक अन्य मामले में यह आरोप है कि गोलकुंडा पुलिस थाने में एक व्यक्ति को सिपाही ने मारा-पीटा और इस वजह से उसको 35 टांके लगे और उसका फ़्रैक्चर भी हुआ। इस व्यक्ति को पुलिस ने देखा जब वह स्कूटर से बिना मास्क लगाए जा रहा था और हेलमेट भी नहीं पहन रखा था। इस व्यक्ति और पुलिसवाले के बीच कहासुनी हुई। सिपाही ने लाठी मारी जो उसके चश्मे पर लगी, उसका चश्मा टूट गया, और उसकी दाईं आँख से खून बहने लगा। पुलिस ने बताया कि उसे ननाल नगर के ऑलिव अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इस व्यक्ति के घायल होने की रिपोर्ट भी काउंटर हलफ़नामे में पेश नहीं की गई है। ज़ाहिर है कि सिर्फ़ आंख में छोट लगने से किसी के चेहरे पर 35 टांके नहीं लग सकते। इसका मतलब यह हुआ कि अदालत को सही तथ्यों से अवगत नहीं कराया गया है। हालाँकि दावा किया गया है कि सिपाही को 29.04.2020 को जारी आदेश के मुताबिक़ निलंबित कर दिया गया है पर न तो इसके निलंबन आदेश की कॉपी और न ही उसके ख़िलाफ़ शुरू की गई विभागीय जांच की का कोई ब्योरा काउंटर हलफ़नामे में नहीं दिया गया है।

    अदालत ने कहा कि इंटरनेट पर प्रसारित हो रहे एक वीडियो में एक सब-इंस्पेक्टर को एक स्थानीय व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा गया है। यह व्यक्ति किराना का सामान लेने के लिए घर से बाहर निकला था। अदालत ने कहा कि इस आरोप को न तो प्रति-हलफ़नामे में स्वीकार किया गया है और न यह बताया गया है कि इस दोषी पुलिसवाले के ख़िलाफ़ क्या विभागीय कार्रवाई की गई है।

    अदालत ने कहा कि ऐसे ही द हिंदू अख़बार ने 24 मार्च 2020 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि एक पत्रकार रवि रेड्डी के साथ बेगमपेट पुलिस थाने के दो सब-इन्स्पेक्टरों और तीन पुलिसवालों ने बदसलूकी की । पुलिस ने दावा किया है कि रवि रेड्डी ने किसी हमले से इंकार किया पर यह बयान अदालत में पेश नहीं किया गया है ताकि इस दावे को झुठलाया जा सके।

    अदालत ने कहा कि कई मामलों में पुलिस के ख़िलाफ़ हुई जांच के क्या नतीजे निकले हैं, इसके बारे में कोई सूचना नहीं दी गई है और दूसरे मामलों में पीड़ितों के नाम तक नहीं बताए गए हैं।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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