केरल हाईकोर्ट ने यौन शोषण की शिकार 13 वर्षीय नाबालिग लड़की को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति दी

LiveLaw News Network

20 April 2021 6:41 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने यौन शोषण की शिकार 13 वर्षीय नाबालिग लड़की को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति दी

    केरल हाईकोर्ट ने एक विशेष सुनवाई में सोमवार को यौन शोषण की शिकार एक 13 वर्षीय नाबालिग लड़की को अपनी 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी।

    न्यायमूर्ति बेचू कुरियन थॉमस की खंडपीठ ने बच्ची के पिता द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई की।

    न्यायमूर्ति थॉमस ने आदेश में टिप्पणी की कि,

    "यह (गर्भावस्था) भी पीड़ित को बलात्कार की घटना को याद दिलाने की संभावना हो सकती है। जाहिर है कि समाज के हित में नहीं है कि इस युवा पीड़िता को अपने जीवन में हर रोज बलात्कार की घटना के आघात से गुजरना पड़े। दुख इस बात से है कि गर्भावस्था का कारण वह आजीवन रहेगा और उसे जीवन भर दर्दनाक अनुभव के साथ रहना पड़ सकता है। पीड़िता के साथ-साथ माता-पिता और भाई-बहनों को भी जीवन भर इस आघात को सहना पड़ेगा।"

    कथित तौर पर अपने 14 वर्षीय भाई द्वारा किए गए यौन शोषण के कारण लड़की को पेट में दर्द की शिकायत के बाद अस्पताल ले जाने पर गर्भवती होने का पता चला।

    कोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था जीवन भर एक धब्बा बनकर पीड़िता के जीवन से चिपकी रहेगी और इससे उसे और अधिक आघात होगा। इसके साथ ही कोर्ट सरमिश्र चक्रवर्ती बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट और नीथु नरेन्द्रन बनाम केरल राज्य मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इन दोनों फैसलों में 23 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी।

    चूंकि बच्चे की गर्भावस्था 20-24 सप्ताह की गर्भकालीन आयु से परे थी, इसलिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। बोर्ड ने पाया कि गर्भावस्था की समाप्ति में भ्रूण के जीवित होने का जोखिम है और गर्भावस्था की समाप्ति में कई नए निर्देशों की आवश्यकता और अगर यह विफल हो जाता है तो सर्जरी करना पड़ सकता है। बोर्ड ने कहा था कि इस जोखिम के साथ गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति दी जा सकती है।

    कोर्ट ने बताया कि गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति दी जा सकती है यदि मेडिकल बोर्ड ने पाया कि गर्भावस्था को जारी रखने से गर्भवती महिला के जीवन को खतरा होगा या उसको शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट आएगी या जन्म के बाद बच्चे को पर्याप्त जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।

    इसके अतिरिक्त स्पष्टीकरण 1 में धारा 3 यह निर्दिष्ट करता है कि यदि बलात्कार की वजह से महिला गर्भ धारण करती है तो यह माना जाएगा कि गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट है। कोर्ट ने कहा स्पष्टीकरण में प्रयुक्त शब्द 'माना जाएगा' है।

    न्यायमूर्ति थॉमस ने कहा कि,

    "शब्द 'माना जाएगा' यह एक वैधानिक अनुमान के रूप में है जो स्पष्ट रूप से विधायिका के इरादे को दर्शाता है। बलात्कार के मामले में गर्भावस्था के कारण उत्पन्न पीड़ा को वैधानिक रूप से गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट माना जाता है। दो पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों की राय के आधार पर गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने तर्क दिया कि गर्भावस्था को जारी रखने की अनुमति देना बच्चे के साथ-साथ उसके माता-पिता के लिए भी दर्दनाक होगा। बच्चे के माता-पिता ने कथित अपराधी के साथ करीबी संबंध के कारण बच्चे पर इसका बुरा आघात और संभावित आनुवंशिक विकारों का हवाला देते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "नाबालिग लड़की को इस तरह के बुरे आघात से गुज़रना पड़ा है और मेडिकल बोर्ड की राय को ध्यान में रखते हुए मेरा विचार है कि याचिका की मांग के आधार पर याचिकाकर्ता की बेटी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।"

    कोर्ट ने 19 अप्रैल को दोपहर 12 बजे से 24 घंटे के भीतर गर्भावस्था को समाप्त करने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट अतिरिक्त निर्देश दिया कि डीएनए की पहचान के लिए और चल रहे आपराधिक जांच के उद्देश्यों से भ्रूण ऊतक को एकत्र किया जाए।

    कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह सभी चिकित्सा रिपोर्टों और दस्तावेजों को रिट याचिका में संलग्न करके गुप्त रखा जाए। इस तरह कोर्ट ने अपील का निपटारा किया।

    जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें:



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