काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद भूमि स्वामित्व विवादः वाराणसी की सिव‌िल कोर्ट ने एएसआई को सर्वे की अनुमति दी, उत्तर प्रदेश सरकार का खर्च वहन करना होगा

LiveLaw News Network

8 April 2021 3:54 PM GMT

  • काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद भूमि स्वामित्व विवादः वाराणसी की सिव‌िल कोर्ट ने एएसआई को सर्वे की अनुमति दी, उत्तर प्रदेश सरकार का खर्च वहन करना होगा

    वाराणसी की सिविल कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित इलाके का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वेक्षण का खर्च वहन करने का निर्देश दिया है।

    एएसआई को यह पता लगाने के लिए कहा गया है कि क्या " किसी अन्य धार्मिक संरचना के साथ/पर सुपरइम्पोजिशन, परिवर्तन, या जोड़ या संरचनात्मक ओवरलैपिंग की गई है।"

    कोर्ट ने यह निर्देश स्वंयभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से एडवोकेट विजय शंकर रस्तोगी की ओर से दायर याचिका पर दिया गया है।

    याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि मस्जिद जिस भूमि पर बनी है वह हिंदुओं की है। न्यायालय से यह घोषणा करने का आग्रह किया गया कि हिंदुओं को अपने मंदिर की पूजा करने और पुनर्निर्माण करने का अधिकार है।

    गौरतलब है कि जमीन का मालिकाना विवाद ज्ञानपीठ मस्जिद से संबंधित है, यह कथित रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर के खंडहर पर बनी है। हिंदू समुदाय का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद को मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त करके बनाया गया है।

    मंदिर के ट्रस्ट की ओर से 1991 में वाराणसी जिला न्यायालय में दायर एक मुकदमे के अनुसार, मंदिर को 1664 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके मस्जिद का निर्माण किया गया।

    मौजूदा याचिका में, मुस्लिम समुदाय को हिंदुओं पूजा स्थलों में दखल देने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा मांगी गई है। याचिका का विरोध ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति- अंजुमन इंताज़ामिया मस्जिद ने किया था।

    कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं:

    -महानिदेशक, एएसआई पूरी साइट का व्यापक पुरातात्विक भौतिक सर्वेक्षण करेंगे।

    -पुरातात्विक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि क्या विवादित स्थल पर मौजूद वर्तमान धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक संरचना पर सुपरइम्पोजिशन, परिवर्तन या जोड़ से तैयार किया गया है, या किसी भी अन्य धार्मिक संरचना के साथ या पर किसी भी प्रकार की संरचनात्मक ओवरलैप‌िंग है।

    -समिति इस बात का भी पता लगाएगी कि क्या विवादित स्थल पर मस्जिद के निर्माण से पहले या उस पर सुपरइम्पोजिशन, परिवर्तन, जोड़ या किसी प्रकार की स्ट्रक्चरल ओवरलैपिंग के जर‌िए हिंदू समुदाय से संबंध‌ित मंद‌िर मौजूद था।

    -यदि ऐसा है, तो वास्तव में उसकी आयु, आकार, स्मारकीय और वास्तुशिल्प डिजाइन या शैली क्या है, और यह किसी हिंदू देवता या देवताओं को समर्पित था।

    -इस प्रयोजन के लिए, डीजी "नामचीन व्यक्तियों" की 5 सदस्यीय समिति का गठन करेंगे, जो पुरातत्व विज्ञान में पारंगत और विशेषज्ञ होंगे, जिनमें से दो अधिमानतः अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित हों।

    -समिति विवादित स्थल पर मौजूद धार्मिक संरचना के हर हिस्से में प्रवेश की हकदार होगी; और वादी या प्रतिवादी के पक्ष के प्रत्येक कलाकृतियों को ठीक से संरक्षित किया जाएगा।

    -किसी भी समय सर्वेक्षण कार्य में आरंभ करने से पहले, समिति पक्षों या उनके वकीलों को अग्रिम नोटिस देगी, जिन्हें वहां मौजूद रहने का हक होगा।

    -सर्वेक्षण करते समय, समिति यह सुनिश्चित करेगी कि विवादित स्थल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को नमाज अदा करने से ना रोका जाए।

    -यदि सर्वेक्षण कार्य के कारण एक विशेष स्थान पर नमाज की अदा करना संभव नहीं हो तो समिति ऐसे मस्जिद के परिसर में किसी अन्य स्थान पर नमाज अदा करने के लिए एक वैकल्पिक और उपयुक्त स्थान प्रदान करेगी।

    -सर्वेक्षण कार्य 09:00 बजे से 05:00 बजे के बीच किया जाएगा।

    -समिति विवादित स्थल के मानचित्र के साथ एक व्यापक दस्तावेज तैयार करेगी।

    -संपूर्ण सर्वेक्षण की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी समिति द्वारा कार्यवाही के रिकॉर्ड के रूप में सुनिश्चित की जाएगी।

    -समिति से अपेक्षा की जाती है कि वह इस मामले की संवेदनशीलता से अवगत होगी, इसलिए समिति हमेशा यह सुनिश्चित करेगी कि हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के हितधारकों से किसी भी प्रकार पक्षपातपूर्ण या अधिमान्य व्यवहार ना किया जाए और दोनों पक्षों को समान रूप से सम्मान दिया जाए।

    -संपूर्ण सर्वेक्षण कार्य छलावरण में किया जाएगा, यानी पूरा विवादित स्थल सर्वेक्षण शुरू होने से पहले और समाप्त होने तक ढंका जाएगा। आम जनता या मीडिया को सर्वेक्षण कार्य को देखने की अनुमति नहीं होगी।

    -महानिदेशक पुरातत्व विज्ञान में विशेषज्ञ एक नामचीन और अनुभवी व्यक्ति को पर्यवेक्षक के रूप नियुक्त करेगा।

    उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को 1991 में मंदिर के ट्रस्ट की ओर से हिंदुओं को भूमि की बहाली करने के लिए दायर मुकदमे पर यह तय करना बाकी है कि यह सुनवाई योग्य है या नहीं?

    मस्जिद प्रबंधन के अनुसार, सिविल कोर्ट पर, पूजा स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, साथ में पढ़ें सीपीसी की धारा 9, के तहत मौजूदा विवाद की सुनवाई करने पर रोक है।

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