'कोई सकारात्मक अनुपालन नहीं': कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य को फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज में रिक्त पदों को भरने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
18 Nov 2021 5:37 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार से राज्य में फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में रिक्त पदों को भरने के लिए कहा। ताकि इसके कामकाज में सुधार हो सके जिससे अदालतों में लंबित आपराधिक मुकदमों के शीघ्र निपटान में मदद मिलेगी।
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने 13 अगस्त को अदालत द्वारा जारी अंतरिम निर्देशों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत अनुपालन रिपोर्ट के आधार पर कहा,
"अनुपालन रिपोर्ट के अवलोकन से संकेत मिलता है कि केवल कागज पर अनुपालन किया गया, क्योंकि आदेश में निर्धारित संयुक्त निदेशक, उप निदेशकों और अन्य अधिकारियों के पद पर कोई नियुक्ति नहीं की गई।"
इसमें कहा गया,
"अनुपालन रिपोर्ट से कोई सकारात्मक अनुपालन नहीं दिखता। हम प्रतिवादी द्वारा दिनांक 13/08/2021 के आदेश का अनुपालन करने के लिए किए गए प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं।"
अदालत ने राज्य सरकार को आदेश का पूर्ण अनुपालन करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया और कहा,
"यह स्पष्ट किया जाता है कि अदालत द्वारा जारी निर्देश प्रतिकूल प्रकृति का नहीं है। यह स्वयं विभाग के लाभ के लिए है कि वह इसका पालन करे। आदेश के पालन करने से एफएसएल के कामकाज में सुधार करेगा और कर्नाटक राज्य की अदालतों में लंबित आपराधिक मुकदमों के शीघ्र निपटान में मदद करेगा।"
13 अगस्त के अपने आदेश में अदालत ने कहा था,
"राज्य मशीनरी द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने के कारण भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का घोर उल्लंघन है। यह राज्य की ओर से न्याय के लिए त्वरित पहुंच प्रदान करने का दायित्व है।"
निर्देश 22 दिसंबर, 2020 को एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित आदेश के आधार पर शुरू की गई एक स्व-प्रेरणा याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया था, जिसमें उसने रिक्तियों को भरने के लिए राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए थे।
पदों को भरने और फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में उचित सुविधाएं प्रदान करने पर सरकार द्वारा दायर हलफनामों के माध्यम से जाने पर अदालत ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि अब जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे वस्तुतः छोटे कदम हैं। वे कदम राज्य सरकार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की तुलना में बहुत कम हैं। विशेष रूप से यह ध्यान में रखते हुए कि इनमें से कई आपराधिक मामलों में फॉरेंसिक साइंस ट्रायल रिपोर्ट की आवश्यकता है, जहां कई बार आरोपी न्यायिक हिरासत में होता है और फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज से रिपोर्ट प्राप्त न होने के कारण मुकदमे में देरी होती है। इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित किया जाता है।
इसके अलावा, अदालत ने कहा,
"विचाराधीन कैदियों को प्रभावित करने में देरी के अलावा इसका पीड़ितों या उनके परिवारों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है, जो एफएसएल के देरी के कारण लगने वाले समय में पीड़ा का शिकार होते हैं।"
इसमें कहा गया,
"उपरोक्त पृष्ठभूमि में यह स्पष्ट है कि आपराधिक मामलों के त्वरित समाधान को सक्षम करने के लिए राज्य का एक कर्तव्य है, जिसमें सभी फोरेंसिक नमूनों के त्वरित विश्लेषण को सक्षम करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने का पहलू शामिल होगा और रिपोर्ट प्रस्तुत करना होगा।"
न्यायालय को दी गई जानकारी के अनुसार राज्य के विभिन्न एफएसएल में संयुक्त निदेशक के तीन पद, उप निदेशक के सात पद, सहायक निदेशक के 18 पद, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारियों के 35 पद और वैज्ञानिक अधिकारियों के 138 पद रिक्त हैं। एक नारकोटिक पदार्थ के संबंध में एक रिपोर्ट में एक वर्ष लगता है, कंप्यूटर/मोबाइल/ऑडियो-वीडियो फोरेंसिक में लगभग डेढ़ साल लगते हैं, एक डीएनए परीक्षण में डेढ़ साल लगते हैं, ये औसत समय होते हैं।
केस शीर्षक: कर्नाटक हाईकोर्ट बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: 2021 का डब्ल्यू.पी नंबर 2739