कर्नाटक हाईकोर्ट ने द्विविवाह और पहले पति की हत्या के मामले में पत्नी को आरोपमुक्त करने का आदेश पलटते हुए कहा,साक्ष्य की सराहना करने के लिए ट्रायल आवश्यक

Manisha Khatri

18 Aug 2022 3:01 PM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने द्विविवाह और दूसरे पति के साथ मिलकर अपने पहले पति की हत्या की साजिश रचने की आरोपी महिला को आरोप मुक्त करने के सत्र न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया।

    जस्टिस डॉ. एचबी प्रभाकर शास्त्री की एकल पीठ ने कहा कि ममथा आर के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सामग्री है, जिसने परिवार के बंटवारे में अपनी नाबालिग बेटी को दी गई संपत्ति को पाने के लिए अपने पहले पति की कथित तौर पर हत्या कर दी थी।

    ''यह किसी भी संदेह या विवाद से परे है कि आरोप तय करने के चरण में, न्यायालय सबूतों का मूल्यांकन नहीं करेगा। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के उद्देश्य से साक्ष्य की सराहना करने का चरण कि क्या अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में सक्षम है या नहीं, तभी सामने आएगा जब मुकदमे में सभी सबूत रिकॉर्ड पर लाए जाएंगे।''

    ममथा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 493, 494, 496 (द्विविवाह), 120-बी (आपराधिक साजिश) और 201 (अपराध के सबूत गायब करना) रिड विद 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था।

    अभियोजन के अनुसार ममथा ने मंजूनाथ वाईडी से शादी की थी, जो एक आरोपी भी था, हालांकि इस अवधि के दौरान उसका पहला पति (अब मृतक) लापता हो गया था। हालांकि, जब पहला पति लगभग डेढ़ साल के अंतराल के बाद वापस लौटा और अपनी बेटी की कस्टडी की मांग करने लगा तो दोनों ने कथित तौर पर उसकी मौत का कारण बनने की साजिश रची।

    ट्रायल कोर्ट ने ममथा के आरोपमुक्त करने के आवेदन को इस आधार पर अनुमति दी थी कि जांच अनुचित थी। पुलिस द्वारा द्विविवाह (गैर-संज्ञेय) के अपराध की जांच नहीं की जा सकती है और किसी भी तरह की आपराधिक साजिश को दिखाने के लिए कोई ठोस सामग्री रिकॉर्ड में नहीं लाई गई है।

    निष्कर्ष

    पुलिस द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयानों और चार्जशीट पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आईपीसी की धारा 494 के तहत दंडनीय अपराध के लिए ममथा पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सामग्री पेश की थी।

    ''जब किसी शिकायत में संज्ञेय और गैर-संज्ञेय दोनों अपराध शामिल होते हैं, तो जांच एजेंसी यानी पुलिस को सभी अपराधों को संज्ञेय मानकर मामले की जांच के लिए आगे बढ़ने की आवश्यकता होती है। जिसके बाद सभी अपराधों, संज्ञेय या गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए चार्जशीट दायर की जाती है, बशर्ते कि पुलिस को जांच के दौरान यह पता चले कि कथित अपराध प्रथम दृष्टया किए गए हैं।''

    जहां तक हत्या के अपराध का संबंध है, अदालत ने कहा कि भले ही आरोपपत्र के किसी भी गवाह ने ममथा के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से कोई कृत्य करने का आरोप नहीं लगाया हो, लेकिन यह आरोप यानी विभाजन की संपत्ति को बनाए रखना ''आपराधिक मनःस्थिति'' की विशेषता है और इस प्रकार, अभियुक्तों के बीच साजिश, यदि कोई हो तो, अभियोजन द्वारा केवल मुकदमे के दौरान ही स्थापित की जा सकती है।

    ''चूंकि यह ऊपर माना गया है कि ममथा आर. (मूल आरोपी नंबर 3) के खिलाफ मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सामग्री है, सत्र न्यायाधीश की अदालत ने सीआरपीसी की धारा 227 के तहत दायर उसके आवेदन को स्वीकार करने और उसे कथित अपराधों से आरोप मुक्त करने में गलती की थी। इस प्रकार, उक्त आदेश रद्द किए जाने योग्य है और सीआरपीसी की धारा 227 के तहत दायर उसका आवेदन खारिज किए जाने योग्य है।''

    केस टाइटल- के.सी.रामू उर्फ रमन्ना बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर-आपराधिक संशोधन याचिका संख्या 206/2018 सी/डब्ल्यू. आपराधिक याचिका संख्या 711/2018 और आपराधिक याचिका संख्या 7026/2019

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 325

    आदेश की तिथि- 10 अगस्त 2022

    प्रतिनिधित्व-याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट अशोक बी. पाटिल; एचसीजीपी के नागेश्वरप्पा, आर-1 के लिए; आर-2 के लिए एडवोकेट सी.एन.राजू

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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