कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूर्व भाजपा विधायक के मदल विरुपक्षप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला रद्द किया

Shahadat

21 Dec 2023 7:05 AM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूर्व भाजपा विधायक के मदल विरुपक्षप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला रद्द किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व विधायक के मदल विरुपक्षप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत शुरू किए गए आपराधिक मुकदमा रद्द कर दिया।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

    “याचिकाकर्ता के खिलाफ एक्ट की धारा 7 (ए) और (बी) की सामग्री का कोई आरोप नहीं है। यदि याचिकाकर्ता द्वारा रिश्वत की किसी मांग या स्वीकार की भनक तक नहीं है तो यह समझ से परे है कि उसके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति कैसे दी जा सकती है।''

    विरुपाक्षप्पा कर्नाटक साबुन और डिटर्जेंट लिमिटेड (केएसडीएल) के अध्यक्ष थे, लेकिन उनके बेटे वी प्रशांत मदल को अनुबंध के संबंध में रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त द्वारा कथित तौर पर रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। आरोप है कि विरुपाक्षप्पा ने केएसडीएल का टेंडर देने के लिए 80 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी। इसकी शिकायत निविदाकर्ता ने लोकायुक्त से की। लोकायुक्त पुलिस ने जाल बिछाया और शिकायतकर्ता के पास 40 लाख रुपये भेजे, जिसे आरोपी के बेटे को सौंप दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एक्ट की धारा 7 (ए) और (बी) या धारा 7 ए को याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं रखा जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ता को आरोपी नंबर 1 के रूप में सूचीबद्ध किया गया। इसलिए रिश्वत की किसी भी मांग या स्वीकृति का कोई संकेत नहीं है। तस्वीर में कहीं नहीं है, लेकिन उसे केवल इस कारण से अपराध के जाल में घसीटा गया, क्योंकि वह केएसडीएल का अध्यक्ष है और आरोपी नंबर 2 ने अपने पिता की ओर से पैसे लिए होंगे।

    इसके अलावा, अपराध के रजिस्ट्रेशन के लिए एक्ट की धारा 17ए के तहत पूर्वानुमति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता लोक सेवक है और लोक सेवक के खिलाफ अपराध दर्ज करने के लिए एक्ट की धारा 17ए के तहत पूर्वानुमति अनिवार्य है।

    अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता भले ही तस्वीर में नहीं है, लेकिन वह केएसडीएल का अध्यक्ष है। उनके बेटे ने पैसे मांगने और स्वीकार करने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया। यह याचिकाकर्ता के लिए है, या खुद के लिए, यह जांच का विषय है। सीनियर वकील का जोरदार ढंग से कहना कि अपराध पर रोक लगाना अभी बहुत शुरुआती चरण में है। चूंकि यह ट्रैप का मामला है और ट्रैप के मामले में एक्ट की धारा 17ए के तहत पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना कानून नहीं है, क्योंकि एक्ट की धारा 17ए का प्रावधान ट्रैप के मामलों में पूर्व अनुमोदन के बिना अपराध के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देता है।

    पीठ ने कहा कि एक्ट की धारा 7 के माध्यम से चलने वाला तथ्य लोक सेवक द्वारा अनुचित लाभ की मांग है, अर्थात, एक लोक सेवक द्वारा अवैध संतुष्टि की मांग; स्वीकृति; किसी कर्तव्य के पालन या पालन से विरत रहने के लिए। सीधे तौर पर कहें तो एक्ट धारा 7 को साबित करने के लिए मांग और स्वीकृति अपरिहार्य है।

    फिर शिकायत का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा,

    ''पूरी शिकायत में इस बात का जरा भी जिक्र नहीं कि याचिकाकर्ता ने कभी पैसे की मांग की, या उसे स्वीकार किया। पूरा आरोप आरोपी नंबर 2 के खिलाफ है, जो शिकायत में बताए गए अनुसार प्रथम दृष्टया रिश्वत मांगने और स्वीकार करने का दोषी है। याचिकाकर्ता का नाम कहीं नहीं है। याचिकाकर्ता के खिलाफ एक्ट की धारा 7 (ए) और (बी) की सामग्री का कोई आरोप नहीं है।

    जिसे ध्यान में रखते हुए आरोपी नंबर 2 के कार्यालय और आवास की तलाशी ली गई। तलाशी के दौरान अन्य चल संपत्तियों के अलावा 6.10 करोड़ रुपये की भारी नकदी मिली। याचिकाकर्ता के लिए कहीं भी कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं पाई गई।

    तब उन्होंने कहा,

    “याचिकाकर्ता का बेटा निस्संदेह प्रथम दृष्टया मांग, स्वीकृति का दोषी है और उस नकदी के लिए जवाबदेह है जो उसके घर या उसके कार्यालय में पाई गई। यदि याचिकाकर्ता किसी भी मामले में कहीं नहीं पाया जाता है, केवल इसलिए कि वह आरोपी नंबर 2 - बेटे का पिता है, तो उस पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। प्रथम दृष्टया, यह बेटा - आरोपी नंबर 2 है, जिसे पूरे ट्रायल में आरोपों का जवाब देना है, क्योंकि मांग और स्वीकृति के सभी संकेत बेटे पर हैं।

    आगे कहा गया,

    “अभियोजन पक्ष की यह दलील कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता बेटे के कृत्यों में शामिल नहीं है। इसलिए कुछ नैतिक दायित्वों के कारण आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह आपराधिक है। अभियोजन और याचिकाकर्ता के खिलाफ कम से कम प्रथम दृष्टया सामग्री होनी चाहिए। किसी भी आरोपी के खिलाफ शिकायत में अस्पष्टता अनिवार्य रूप से अपराध के उन्मूलन में परिणत होगी, विवादित शिकायत केवल याचिकाकर्ता के लिए उसी अस्पष्टता या अस्पष्टता के दोष से ग्रस्त है।

    अंत में यह कहा गया,

    “निविदा का दस्तावेज़, जो शिकायत का विषय बन गया है, उसे भी न्यायालय के समक्ष रखा गया। कहीं भी याचिकाकर्ता ने कार्यवाही में भाग भी नहीं लिया। इसलिए इन सभी पहलुओं पर याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसके परिणामस्वरूप न्याय की विफलता होगी।''

    याचिका स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा,

    ''अपराध की सामग्री के बारे में दूर-दूर तक कोई अपराध नहीं पाया गया। ऐसे में आगे की कार्यवाही की अनुमति देना केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। यह उत्पीड़न में तब्दील हो जाएगा और अंततः न्याय का गर्भपात हो जाएगा।''

    अपीयरेंस: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट संदीप एस पाटिल की ओर से सीनियर एडवोकेट प्रभुलिंग के नवाडगी, आर1 के लिए एडवोकेट बी बी पाटिल की ओर से सीनियर एडवोकेट अशोक हरनहल्ली।

    केस टाइटल: के मदल विरुपक्षप्पा बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 5633/2023।

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