कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण-पोषण के लिए दायर आवेदनों का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए
Manisha Khatri
10 Feb 2023 2:30 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने निचली अदालतों को निर्देश जारी किया है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत अपने-अपने पतियों से भरण-पोषण की मांग करने वाली महिलाओं द्वारा दायर आवेदनों पर निर्णय लेने के लिए एक समय-सीमा का पालन किया जाए।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश की पीठ ने निर्देश जारी करने की आवश्यकता महसूस करते हुए कहा कि ‘‘धारा 24 के प्रावधान निर्देश देते हैं कि भरण-पोषण की मांग करने वाले धारा 24 के तहत दायर एक आवेदन को 60 दिनों के भीतर यथासंभव निपटाया जाना चाहिए। शब्द ‘‘जहां तक संभव हो’’ की व्याख्या इस तरह की जा रही है कि न्यायालय कुछ मामलों में छह महीने बाद भी आदेश पारित कर सकता है, जिनमें आवेदन दाखिल करने के बाद दो साल, तीन साल या चार साल तक का समय भी लग जाता है।’’
यह भी कहा,‘‘भरण-पोषण के लिए दायर आवेदनों पर विचार करने में यह देरी उस प्रावधान की आत्मा को पराजित कर देगी जो उस पत्नी को राहत देने के लिए है जो विपरीत परिस्थितियों में वैवाहिक घर छोड़ देती है या उसे छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। केवल, क्योंकि प्रावधान 60 दिनों के भीतर आवेदन के निपटान का निर्देश देता है, इसे न्यायालयों द्वारा इस हद तक नहीं बढ़ाया जा सकता है कि पत्नी को सालों तक भरण-पोषण की राशि ही ना मिल पाए।’’
इसके अलावा यह भी कहा,‘‘संबंधित न्यायालय को पत्नी की तरफ से पति से भरण-पोषण की मांग करते हुए दायर किए गए आवेदनों के निपटान के लिए समय-सीमा का पालन करना चाहिए, ताकि भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार भ्रामक न हो।’’
जिसके बाद कोर्ट ने निम्नलिखित समय-सीमा जारी कीः
ए- आवेदन पर नोटिस तुरंत जारी किया जाएगा। ईमेल/व्हाट्सएप के माध्यम से सर्विस करना भी कानून की नजर में वैध सर्विस होगी।
बी-अधिनियम की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने वाली पत्नी द्वारा दायर आवेदन पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिए संबंधित न्यायालय पति को दो महीने का समय देगा।
सी- संपत्ति और देनदारियों के विवरण दाखिल करने के लिए पत्नी को भी दो महीने का समय दिया जाना चाहिए।
डी-पत्नी द्वारा दायर संपत्ति और देनदारियों पर, संबंधित न्यायालय पक्षकारों के तर्कों पर विचार करेगा, उन्हें सुनेगा और उचित आदेश पारित करेगा, यदि पहले नहीं तो चार महीने के भीतर यह आदेश पारित किया जाए।
ई- इसलिए, अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने वाले किसी भी आवेदन को तय करने की आउटर लिमिट इसके दाखिल होने की तारीख से छह महीने है।
एफ- इस समय सीमा को प्राप्त करने के लिए संबंधित न्यायालय को पति और पत्नी दोनों को अनावश्यक स्थगन देने से बचना चाहिए।
जी-यदि पति या पत्नी अंतरिम भरण-पोषण के आवेदन के आधार पर चल रही कार्यवाही को समाप्त करने में सहयोग न करें तो न्यायालय कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र होगा।
एच- छह महीने से अधिक की कोई भी देरी केवल पारित होने वाले आदेश में लिखित रूप में दर्ज कारणों पर होनी चाहिए।
बेंच ने कहा,‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि संबंधित न्यायालयों को उपरोक्त समय सीमा का पालन करना चाहिए, क्योंकि पति से भरण-पोषण की एक निश्चित राशि प्राप्त करने के लिए पत्नी को वर्षों तक इंतजार नहीं कराना चाहिए। कई मामलों में, जब पत्नी कई कारणों से ससुराल से बाहर निकलती है तो पत्नी दरिद्रता की ओर अग्रसर हो जाती है। पत्नी को इस तरह की अशुद्धियों की ओर धकेले जाने से बचाने के लिए, उपरोक्त समय-सीमा का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।”
पीठ ने प्रतिभा सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने अधिनियम की धारा 24 के तहत 06-02-2020 को आवेदन दायर किया था। पति ने आवेदन दायर करने के 19 महीने से अधिक समय बाद (28.11.2021) संपत्ति और देनदारियों के विवरण के साथ अपनी आपत्तियां दायर की थी। तब न्यायालय ने 26-08-2022 को आवेदन पर निर्णय किया और आवेदन की तिथि से भुगतान किए जाने का निर्देश दिया। इसलिए, कोर्ट ने आवेदन दाखिल करने के 30 महीने बाद इस मामले में इस मुद्दे का फैसला किया है।
रिकॉर्ड देखने और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करने के बाद बेंच ने पत्नी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार कोर्ट ने याचिकाकर्ता/पत्नी को दिए जाने वाले भरण-पोषण को 15,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये और मुकदमेबाजी के खर्च को 50,000 रुपये से बढ़ाकर 1,00,000 रुपये कर दिया।
केस टाइटल- प्रतिभा सिंह और विनीत कुमार
केस नंबर- रिट याचिका संख्या 21852/2022
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (केएआर) 50
आदेश की तिथि- 08 फरवरी 2023
प्रतिनिधित्व- याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट रोहन कोठारी व सीनियर एडवोकेट जयना कोठारी
प्रतिवादी के लिए एडवोकेट विवेक होल्ला व सीनियर एडवोकेट उदय होल्ला
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