बच्चों की कस्टडी विवादों में "मानवीय मुद्दे" शामिल, समाधान के लिए स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूला नहीं बना सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

21 Oct 2022 7:38 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोहराया कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी से जुड़े विवाद जटिल हैं, जिसमें "मानवीय मुद्दे" शामिल हैं। इस प्रकार इसे हल करने के लिए कोई स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूला नहीं हो सकता।

    जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस केएस हेमलेखा की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों का फैसला अपने तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर करना होता है और कोई सख्त नियम नहीं बनाया जा सकता।

    पीठ ने आगे हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 की धारा 6 का जिक्र करते हुए कहा कि यदि नाबालिग के हित में यह सर्वोपरि है कि उसकी कस्टडी मां के पास नहीं होनी चाहिए।

    पीठ ने कहा,

    "कस्टडी विवाद में मानवीय मुद्दे शामिल होते हैं, जो हमेशा जटिल होते हैं ... यदि यह पाया जाता है कि उम्र 5 वर्ष से अधिक उम्र के नाबालिग के कल्याण की आवश्यकता है तो उसकी कस्टडी मां के पास होनी चाहिए, तो न्यायालय ऐसा करने के लिए बाध्य है। इसी प्रकार, यदि अवयस्क का हित जो सर्वोपरि है, उसके लिए यह अपेक्षित है कि अवयस्क बच्चे की कस्टडी मां के पास नहीं होनी चाहिए तो न्यायालय को मां की कस्टडी में खलल डालना न्यायोचित होगा, भले ही उसकी उम्र पांच साल से कम हो।"

    ऐसे परिदृश्य में न्यायालय ने कहा कि पिता या माता के अधिकारों का प्रभावित होना लाजमी है। हालांकि, यह देखा गया कि कस्टडी के मुद्दे पर मुकदमेबाजी करने वाले पक्षकारों के अधिकार अप्रासंगिक हैं, क्योंकि प्रमुख विचार बाल कल्याण है।

    अदालत ने महिला द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें अपने नाबालिग बच्चों का तुरंत पता लगाने और उन्हें पेश करने और उसके पति को उन बच्चों को याचिकाकर्ता को सौंपने का निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि वे मेक्सिको में रहते हैं और पति बच्चों को पार्क में टहलने के बहाने भारत ले आया। याचिकाकर्ता ने पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए वर्तमान बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका दायर की गई।

    पीठ ने रिकॉर्ड का अध्ययन करने पर कहा कि जब न्यायालय माता-पिता की कस्टडी में दखल देता है तो न्यायालय सामान्य रूप से दूसरे माता-पिता को मुलाक़ात के अधिकार प्रदान करेगा। कारण यह है कि बच्चे को माता-पिता दोनों की संगति चाहिए।

    अदालत ने दंपति से अपील की कि वे संयुक्त ज्ञापन दाखिल करके बच्चों की कस्टडी साझा करने के लिए अंतरिम व्यवस्था के साथ सामने आएं, जब तक कि पीड़ित पक्ष या तो माता/पिता अंतरिम कस्टडी/स्थायी कस्टडी के लिए उपयुक्त के पास नहीं पहुंच जाते।

    तद्नुसार दंपति ने अपने ज्ञापन दिया, जिसमें यह सहमति हुई कि बच्चों की कस्टडी याचिकाकर्ता के पास रविवार शाम 6.00 बजे से शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक रहेगी। बच्चों की कस्टडी प्रतिवादी क्रमांक चार के पास शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे से बच्चों के लंच के बाद रविवार शाम 6.00 बजे तक रहेगी। उसे याचिकाकर्ता के आवास पर सप्ताह के दिनों में शाम को केवल दो घंटे के लिए बच्चों से मिलने की अनुमति है।

    पीठ ने तदनुसार याचिका का निपटारा कर दिया और दोनों पक्षों को अंतरिम व्यवस्था का दुरुपयोग नहीं करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: एमआरएस डेनिएला लीरा नानी बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: रिट याचिका बंदी प्रत्यक्षीकरण नंबर 77/2022

    साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 420/2022

    आदेश की तिथि: 30 सितंबर, 2022

    उपस्थिति: एस विवेक रेड्डी, बीना पी.के. के लिए सीनियर वकील, याचिकाकर्ता के लिए वकील; आर1 से आर3 के लिए थेजेश पी., एचसीजीपी; राज प्रभु, आर4 के एडवोकेट

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