राज्य को विचार करना चाहिए कि एक सामान्य किसान के साथ क्या होता होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मवेशी वध अध्यादेश पर कहा

LiveLaw News Network

19 Jan 2021 10:03 AM IST

  • राज्य को विचार करना चाहिए कि एक सामान्य किसान के साथ क्या होता होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट ने मवेशी वध अध्यादेश पर कहा

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने आज (सोमवार) को कहा कि "राज्य को विचार करना होगा कि एक सामान्य किसान के साथ क्या होता है।" कोर्ट ने यह सुझाव देते हुए कहा कि या तो राज्य सरकार को इस समय बयान देना होगा कि कर्नाटक पशु वध की रोकथाम और और मवेशी संरक्षण अध्यादेश, 2020 की धारा 5 के उल्लंघन के लिए कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी या इसके लिए कोई उचित आदेश पारित करना होगा।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम की खंडपीठ ने कहा कि,

    "याचिका की सूची कल के अगले दिन (20 जनवरी) को दोपहर 2.30 बजे के बाद दें। जब अदालत अध्यादेश की धारा 5 से संबंधित सीमित अंतरिम राहत देने के लिए प्रार्थना पर विचार करेगी, तो धारा 13 पर भी ध्यान देगी। व्यापक प्रार्थना को बाद के चरण में माना जाएगा।"

    महाधिवक्ता प्रभुलिंग. के. नवदगी ने कहा कि,

    "अधिनियम के तहत ड्राफ्ट नियमों को फ्रेम किया गया है और हमने अंतिम रूप देने से पहले आपत्तियां जताने का मौका दिया है। राज्य के नियमों को अंतिम रूप देना, पशु परिवहन के नियम, 1978 के नियम 46 से नियम 56 तक मवेशियों के परिवहन की अनुमति देता है। यह एक अंतरिम व्यवस्था है। "

    नियमों के उल्लंघन पर पीठ ने कहा कि,

    "केंद्रीय नियम 46 से 56, रेल द्वारा परिवहन के लिए भी लागू होंगे। जबकि अध्यादेश की धारा 22 किसी भी तरीके के परिवहन के लिए लागू है। इसके मुताबिक एक किसान अगर अपने मवेशियों को उसी गांव में ले जाना चाहता है तो उसे एक प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करना होगा। अंतत: हमें यह देखना होगा कि जमीनी स्तर पर क्या होगा।"

    एडवोकेट जनरल नवदगी ने कोर्ट को आश्वासन देते हुए कहा कि,

    "नियमों को यथासंभव व्यावहारिक तरीके से लागू किया जाएगा। ये नियम अंधाधुंध रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।"

    पीठ ने ने सुझाव देते हुए कहा कि,

    "राज्य सरकार को इस समय यह बयान देना होगा कि अध्यादेश की धारा 5 के उल्लंघन के लिए कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी, अन्यथा हमें आदेश पारित करना होगा।"

    एडवोक्ट जनरल नवदगी ने निर्देश देने के लिए एक दिन का समय मांगा, जिसे अदालत ने अनुमति दे दी।

    पीठ ने याचिका पर राज्य सरकार द्वारा दायर आपत्ति के प्रारंभिक बयान को भी रिकॉर्ड में लिया। इसमें अपने जवाब में राज्य ने कहा है कि राज्य सरकार ने बाद में ड्राफ्ट नियमों को तैयार किया है, जो पशुओं को कृषि या पशुपालन के उद्देश्यों के लिए परिवहन में सक्षम बनाता है। नियमों का मसौदा अर्थात् कर्नाटक मावेशी वध की रोकथाम और मवेशियों का संरक्षण (मवेशियों का परिवहन) नियम 2020 को कर्नाटक राजपत्र में 16.01.2021 को प्रकाशित किया गया था।

    आगे कहा गया कि,

    "अध्यादेश की धारा 22 के तहत निरस्त अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों को लागू किया जा रहा है। आगे पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत केंद्र सरकार ने पशुओं के परिवहन नियम, 1978 के तहत जो नियम 46 से 56 मवेशियों के परिवहन के लिए प्रदान करता है, जो कि अध्यादेश की धारा 5 (2) के तहत नियमों को लागू किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस अध्यादेश की धारा 5 के तहत मवेशियों का परिवहन करना चाहता है, तो राज्य इसे परिवहन की अनुमति देगा अगर वह केंद्रीय अधिनियम के नियम 46 से नियम 56 का पालन करता है।"

    आगे फिर कहा गया कि,

    "राज्य में पशु चिकित्सा अधिकारियों और निरीक्षकों के नेतृत्व में 4212 पशु चिकित्सा संस्थान हैं जो हमेशा उपलब्ध रहते हैं और 176 मोबाइल क्लीनिक हैं।"

    यह बयान मोहम्मद आरिफ जमील द्वारा कर्नाटक पशु वध संरक्षण और मवेशी संरक्षण अध्यादेश, 2020 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते दौरान जारी किया गया था। याचिका में कहा गया है कि यह कानून, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और असंवैधानिक है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (g) नागरिकों को व्यापार और कारोबार करने की गारंटी देता है, जो कि अनुच्छेद के खंड 6 में उल्लिखित उचित प्रतिबंध के अधीन है।

    पशुओं की खरीद-बिक्री या पुनर्विक्रय पर पूर्ण प्रतिबंध से किसानों, पशु व्यापारियों पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा। पशु व्यापार पर रोक से किसानों को अपने बच्चों को खाना खिलाना मुश्किल हो जाएगा। इसके साथ ही किसानों को मवेशियों को भी चारा खिलाना आवश्यक है। अगर किसान ऐसा करने में असफल होता है तो यह कानून के तहत अपराध माना जाएगा। इससे "काउ विजिलेंस" का उदय होगा।

    याचिका में कहा गया कि,

    "नया कानून संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है। इसके साथ ही भोजन का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, विवेक और गोपनीयता के अधिकार का एक हिस्सा है। जानवरों के वध पर प्रतिबंध लगाकर नागरिकों को जानवरों के मांस खाने के विकल्प से वंचित किया जाना, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।"

    याचिका में आगे कहा गया कि,

    "बीफ, मंगलोरियन व्यंजनों का एक अभिन्न हिस्सा है। यह अध्यादेश इन लोगों को गोमांस का सेवन करने से रोकता है जो उनकी संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस प्रकार यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 29 का उल्लंघन करता है। याचिका में कर्नाटक के पशु वध को रोक और मवेशी अध्यादेश के संरक्षण, 2020 को "असंवैधानिक" घोषित करने का अनुरोध किया गया है। अंतरिम राहत के माध्यम से भी यही स्थिति है।"

    Next Story