'कैंसर का इलाज अमीर और गरीब के लिए समान रूप से वहन करने योग्य होना चाहिए': कर्नाटक हाईकोर्ट ने कैंसर रोधी 42 दवाओं के ट्रेड मार्जिन पर 30% की सीमा बरकरार रखी

Shahadat

5 Dec 2022 6:04 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा जारी 2019 के आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें 42 कैंसर रोधी दवाओं के ट्रेड मार्जिन पर 30% की सीमा लगाई गई है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने हेल्थकेयर ग्लोबल एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए कहा,

    "भारत में कैंसर रोगियों को भारी खर्च करना पड़ता है और कैंसर की दवाओं को कुछ हद तक सस्ती करने की आवश्यकता है ताकि अमीर और गरीब दोनों समान से कैंसर के इलाज करा सके। यदि ऐसी नीति प्रख्यापित नहीं की जाती है तो गरीब या गरीब मध्यम वर्ग, जो इस देश की अधिकांश आबादी का निर्माण करता है, उसको उच्च कीमतों के कारण इस बीमारी के शिकार होते देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप निर्माताओं ने इसकी अप्रभाविता का अनुमान लगाया है।"

    याचिकाकर्ता ने देश भर में 20 व्यापक देखभाल केंद्रों के साथ कैंसर देखभाल का सबसे बड़ा प्रदाता होने का दावा किया। इसने तर्क दिया कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, जिसने अधिसूचना जारी की, मूल्य नियंत्रण आदेश के तहत गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन (कैंसर रोधी दवाओं) की अधिकतम कीमत या खुदरा मूल्य (Retail Price) तय करने के लिए अधिकृत नहीं है।

    इसने यह प्रस्तुत किया,

    "गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन केवल बाजार बल द्वारा निर्धारित किए जाने हैं और किसी भी विनियमन के अधीन नहीं हो सकते हैं।"

    कंपनी ने आगे तर्क दिया कि किसी भी दवा के अधिकतम मूल्य या खुदरा मूल्य के निर्धारण के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है, इसलिए 30% की सीमा मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 19 ( 1)(जी) के तहत याचिकाकर्ता के व्यापार के अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लगाती है।

    न्यायालय ने हालांकि राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल्स मूल्य निर्धारण नीति, 2012 के उद्देश्यों का उल्लेख किया और पाया कि इसका प्रमुख सिद्धांत ऐसी दवाओं की अनिवार्यता के आधार पर दवाओं की कीमत का विनियमन है, जो आर्थिक मानदंड/बाजार हिस्सेदारी सिद्धांत से अलग होगा, जिसे अब तक अपनाया गया है।

    फिर यह नोट किया गया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए और ड्रग्स (कीमत नियंत्रण) आदेश, 1995 के अधिक्रमण में भारत सरकार ने ड्रग्स (कीमत नियंत्रण) आदेश, 2013 को अधिसूचित किया।

    इसके तहत विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए पीठ ने कहा,

    "मूल्य नियंत्रण आदेश में निहित कुछ भी होने के बावजूद दवा की अधिकतम कीमत का निर्धारण शक्ति उपलब्ध है। खंड 20 सरकार द्वारा गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन की निगरानी की भी अनुमति देता है। गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन वर्तमान याचिका की विषय वस्तु है। खंड 20 20 सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए गैर-अनुसूचित योगों सहित सभी दवाओं के अधिकतम खुदरा मूल्यों की निगरानी करने का अधिकार देता है कि कोई भी निर्माता किसी दवा के अधिकतम खुदरा मूल्य को खंड 20 में पाए जाने वाले मूल्य से अधिक नहीं बढ़ाता है। उक्त आदेश की अनुसूची-1 में उन दवाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जो इस तरह के नियंत्रण के दायरे में आएंगे।"

    इसके अलावा कोर्ट ने कहा,

    "फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी और अनुसूचित फॉर्मूलेशन फार्मा उद्योग में 16-17 प्रतिशत की कीमत कैप के तहत हैं। शेष गैर-अनुसूचित दवाओं पर एकमात्र नियंत्रण यह सुनिश्चित करना है कि वार्षिक मूल्य वृद्धि 10% से अधिक नहीं है। श्रेणीबद्ध तरीके से उस खंड में कीमतों को युक्तिसंगत बनाने की मांग करते हुए आदेश को प्रख्यापित किया गया, क्योंकि भारत में उच्च दवा की कीमतें अनुचित हैं। व्यापार मार्जिन उस मूल्य के बीच का अंतर है, जिस पर निर्माता स्टॉकिस्टों को दवाएं बेचता है और अंतिम कीमत जब यह मरीजों तक पहुंचता है।"

    कोर्ट ने कहा कि नीति सिद्धांत के बजाय ब्याज द्वारा निर्देशित निर्णय लेने की प्रणाली है, इस मामले में हित सार्वजनिक है, क्योंकि वे सभी कैंसर विरोधी दवाएं हैं जिन्हें अब विनियमित करने की मांग की जा रही है।

    कोर्ट ने इस संबंध में कहा,

    "यह नहीं भुलाया जा सकता कि नीति केवल विषय वस्तु से निपटने के लिए कार्रवाई का तरीका है। प्राधिकरण वैधानिक या अन्यथा कार्रवाई का तरीका चुनने का हकदार है, जिसे वह जनहित में आवश्यक या समीचीन समझता है। न्यायालयों ने हमेशा सरकार या वैधानिक प्राधिकरणों की नीतियों के ज्ञान पर न्यायिक संयम और विवेक का प्रयोग किया, उन परिस्थितियों को छोड़कर जहां ऐसी नीति मनमानापन, अनुचितता या सनक को प्रदर्शित करती है, ताकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के सिद्धांतों का उल्लंघन किया जा सके।"

    न्यायालय ने कहा कि नीति को मनमाना करार देने के लिए कोई परिस्थिति उसके संज्ञान में नहीं लाई गई।

    पीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत उसका अधिकार छीन लिया गया। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(जी) जो नागरिक को किसी भी पेशे को करने का अधिकार देता है। या किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने के लिए इतना निरपेक्ष नहीं माना जा सकता है, क्योंकि मौलिक अधिकार भी उचित प्रतिबंधों से जुड़े हुए हैं।"

    आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए इस आधार को खारिज करते हुए कि उसका लाभ कम हो जाएगा, क्योंकि वह केवल एक खुदरा विक्रेता है, पीठ ने कहा,

    "सीमा निर्माता पर है लेकिन प्रभाव खुदरा विक्रेता (Retail Salesperson)पर है। यह आधार नहीं हो सकता है। विवादित नीति पर न्यायिक पुनर्विचार के लिए बहुत कम गुंजाइश है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन करती है।"

    इस प्रकार कोर्ट ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि लाभ के उद्देश से खुदरा विक्रेता द्वारा दी गई चुनौती को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: हेल्थकेयर ग्लोबल एंटरप्राइजेज लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 11057/2019

    साइटेशन: लाइवलॉ (कर) 496/2022

    आदेश की तिथि : 30 नवंबर, 2022

    प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता के वकील दीपक भास्कर; एमबी नरगुंड, एडीएल पेश हुए। उत्तरदाताओं के लिए गौतम देव सी. उल्लाल के लिए सॉलिसिटर जनरल, सीजीसी।

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