देह-व्यापार के लिए वेबसाइट बनाने का आरोप : कर्नाटक हाईकोर्ट ने वेबसाइट डिजाइनर के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द किया

LiveLaw News Network

27 Sep 2020 12:35 PM GMT

  • देह-व्यापार के लिए वेबसाइट बनाने का आरोप : कर्नाटक हाईकोर्ट ने वेबसाइट डिजाइनर के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक 31 वर्षीय वेबसाइट डिजाइनर के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामला कर दिया है। इस वेसाइट डिजाइनर पर आरोप था कि उसने एक वेबसाइट बनाई थी, जिसका इस्तेमाल देह-व्यापार के लिए ग्राहकों को खोजने के लिए किया जा रहा था।

    न्यायमूर्ति अशोक जी निजगन्नवर ने गेविन मेंडेस की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसके खिलाफ इमाॅरल ट्रैफिक प्रीवेंशन एक्ट की धारा 4,5 व 7,आईपीसी की धारा 370, 370ए (2), 292, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 व फाॅरनर एक्ट की धारा 14 के तहत दर्ज केस को रद्द कर दिया।

    अभियोजन पक्ष के अनुसार 7 फरवरी, 2014 को पुलिस को देह-व्यापार के संबंध में की जा रही अवैध गतिविधियों के बारे में एक विश्वसनीय सूचना मिली थी। पुलिस को पता चला था कि एक अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट के माध्यम से ग्राहकों से संपर्क किया जा रहा है और विदेशी और भारतीय लड़कियों की सप्लाई की जा रही है। इस सूचना को एक नकली ग्राहक भेजकर पुख्ता किया गया था।

    तत्पश्चात 08 फरवरी 2014 को नकली ग्राहक के माध्यम से उक्त गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को विदेशी लड़कियां उपलब्ध करवाने के लिए बुलाया गया था। जिसके बाद पुलिस ने अपार्टमेंट में छापा मारा और तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनमें दो लड़कियां और एक आदमी था। जब आरोपी नंबर 1 से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह ग्राहकों को एक ईमेल आईडी व वेबसाइट के जरिए संपर्क करता था। यह वेबसाइट आरोपी मेंडेस ने डिजाइन की थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया

    याचिकाकर्ता पणजी, गोवा का निवासी है और वह एक पेशेवर सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक सॉफ्टवेयर डेवलपर है। सह-अभियुक्त द्वारा दिए गए ऑर्डर के आधार पर याचिकाकर्ता ने वेबसाइट डिजाइन की थी और उसे ऑनलाइन डिलीवर कर दिया था। इस काम के बदले सह-अभियुक्त ने सीधे याचिकाकर्ता के खाते में पेशेवर शुल्क जमा करा दिया था।

    इस प्रकार, याचिकाकर्ता का आरोपी नंबर 1 के साथ सीधा कोई संपर्क नहीं था। न ही वह कभी उससे मिला था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता को इस बात का भी कोई ज्ञान नहीं था कि आरोपी द्वारा उक्त वेबसाइट का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जा रहा था। याचिकाकर्ता का नाम एफआईआर में नहीं था ,परंतु बाद में आरोप पत्र में उसका नाम आरोपी नंबर 4 के रूप में शामिल किया गया था।

    अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया

    अभियुक्त नंबर 1 से 3 ने देह-व्यापार के जरिए अवैध लाभ कमाने के लिए आरोपी नंबर 4 द्वारा डिजाइन की गई वेबसाइट का उपयोग किया था। इस प्रकार आरोपी नंबर 4 द्वारा अन्य तीनों आरोपियों को यह सुविधा प्रदान की थी। इतना ही नहीं इस मामले में आरोपी नंबर 4 की भी मिलीभगत है। इसलिए आरोपी नंबर 4 के खिलाफ चल रही कार्यवाही या आरोपपत्र को रद्द करने के लिए कोई उचित आधार नहीं हैं।

    कोर्ट की टिप्पणी

    अदालत ने कहा,

    ''आरोप पत्र के रिकॉर्ड को देखने के बाद प्रथम दृष्टया कोई ऐसी सामग्री नहीं मिली है जो कथित अपराध में याचिकाकर्ता की भागीदारी के आरोप को सही साबित करती हो।''

    अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया है कि इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे सह-आरोपियों को सत्र अदालत ने बरी कर दिया है। यह भी कहा गया है कि

    ''जब तक आरोपपत्र के रिकॉर्ड से यह पता नहीं चलता है कि याचिकाकर्ता अन्य आरोपियों के साथ इमाॅरल ट्रैफिकिंग के काम में सक्रिय रूप से शामिल था या उक्त उद्देश्य के लिए विशेष रूप से उनके लिए वेबसाइट डिजाइन करके याचिकाकर्ता द्वारा भी विदेशी लड़कियों का उपयोग किया जा रहा था,तब तक उसके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस प्रकार, हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार उक्त कार्यवाही को रद्द किया जाना चाहिए।''

    केस का विवरण-

    केस का शीर्षक-गेविन मेंड्स व कर्नाटक राज्य

    केस नंबर- आपराधिक याचिका नंबर 1625/2016

    कोरम-न्यायमूर्ति अशोक जी निजगन्नवर

    प्रतिनिधित्व-याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता अशोक पाटिल,राज्य के लिए एडवोकेट महेश शेट्टी।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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