अदालतों में हो रहे सीमित कामकाज के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना व भूमि अधिग्रहण के मामलों में मुआवजे का भुगतान करने के लिए तय किए दिशा-निर्देश
LiveLaw News Network
28 Jun 2020 10:00 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है, जिसके तहत बचाव और सुरक्षा से समझौता किए बिना ही मोटर वाहन दुर्घटना दावा मामलों के दावेदारों व पीड़ितों, कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 के तहत दावेदारों और भूमि अधिग्रहण क्षतिपूर्ति मामलों के दावेदारों को भुगतान जारी किया जा सकेगा।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एस विश्वजीथ शेट्टी की खंडपीठ ने यह दिशा-निर्देश जारी किए हैं। क्योंकि राज्य में लॉकडाउन और जिला व ट्रायल कोर्ट में हो रहे आंशिक कामकाज के कारण वादियों को कोर्ट परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
राज्य में मार्च माह से दावेदारों को 100 करोड़ से भी ज्यादा रुपये जारी नहीं किए गए हैं।
महामारी COVID 19 के कारण न्यायालयों में हो रहे सीमित कामकाज की अवधि के दौरान सभी न्यायालयों द्वारा भुगतान करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश अपनाए जाएंगेः
(1) जो वादकर्ता राशि प्राप्त करने का हकदार है, वह न्यायालय के समक्ष सभी विवरण देते हुए एक आवदेन दायर करेगा। जिसमें कोर्ट की उस डिक्री/ आदेश का विवरण भी देना होगा,जिसके तहत उसे राशि पाने का हकदार बनाया गया है।
(2) आवेदन के साथ, उसे कई दस्तावेजों की प्रतियां भी प्रस्तुत करनी होगी। जैसे कि बैंक पासबुक का पहला पृष्ठ जिसमें बैंक का नाम, खाता संख्या, खाताधारक का नाम और बैंक का आईएफएस कोड आदि का विवरण हो। यदि पासबुक के पहले पृष्ठ में खाताधारक की तस्वीर नहीं है, तो उसे संबंधित बैंक के प्रबंधक का एक प्रमाण पत्र देना होगा,जिस पर खाता धारक की तस्वीर लगी हो और उसके खाते का विवरण भी दिया हो।
(3) खाता उस व्यक्ति के नाम पर होना चाहिए जो न्यायालय के आदेश के अनुसार राशि निकालने लेने का हकदार है।
(4) बैंक पासबुक के साथ, आवेदक को पैन कार्ड /फॉर्म 16, पते के प्रमाण और आधार कोर्ड या चुनाव/मतदाता पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे प्रामाणिक पहचान दस्तावेजों की फोटो प्रतियां प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। यदि आवेदक का प्रतिनिधित्व वकील द्वारा किया जाता है, तो दस्तावेजों की फोटो प्रतियां स्व-सत्यापित होने के साथ-साथ उसके अधिवक्ता द्वारा भी सही प्रतियों के रूप में सत्यापित होनी चाहिए।
(5) आवेदन के साथ, समर्थन में एक शपथ पत्र भी आवेदक को दायर करना होगा। जिसमें उस खाते का विवरण होना चाहिए,जो पैसा हस्तांतरण करने के लिए आवश्यक हैं। शपथ पत्र पर हस्ताक्षर के पास ही आवेदक की एक नवीनतम तस्वीर अंकित की जाएगी। शपथ पत्र में आवेदन के साथ लगाए दस्तावेजों की शुद्धता की पुष्टि करनी होगी।
आवेदन और शपथ पत्र के साथ, आवेदक को ज्यूडिशियल डिपाॅजिट के लिए उसके द्वारा हस्ताक्षरित एक खाली वाउचर भी प्रस्तुत करना होगा। यदि एक से अधिक आवेदक हैं, तो उन सभी के शपथ पत्र आवश्यक हैं। वाउचर पर किए गए हस्ताक्षरों की वकील द्वारा पहचान की जाएगी। इसके लिए वकील ''दावेदार के हस्ताक्षर'' शब्द के नीचे या राजस्व स्टांप लगाने की जगह के नीचे अपने हस्ताक्षर करने होंगे।
पहचान के लिए अधिवक्ता द्वारा किए गए हस्ताक्षर के नीचे उसे अपने बार काउंसिल नामांकन संख्या का भी उल्लेख करना होगा। खाली वाउचर की कुछ प्रतियां प्रधान जिला न्यायाधीश द्वारा बार एसोसिएशनों को उपलब्ध कराई जाएंगी ताकि बार के सदस्य उसी की फोटोकॉपी ले सकें। आवेदन के समर्थन में लगाए गए हलफनामे में यह भी लिखना होगा कि खाली वाउचर आवेदक द्वारा हस्ताक्षरित है।
(6) आवश्यक आदेश पारित करने के लिए आवेदनों को संबंधित न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा। न्यायालय अभिलेखों का अवलोकन करेगा और यह पता लगाएगा कि क्या जिसने आवेदन दिया है वह राशि प्राप्त करने का हकदार है या नहीं और हाईकोर्ट का कोई स्टे आदेश है या नहीं? जब संबंधित न्यायिक अधिकारी को यह पता चल जाएगा है कि आवेदक राशि प्राप्त करने का हकदार है तो उसके बाद वह सभी दस्तावेजों का सत्यापन भी करेगा। ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या बैंक खाते का सारा विवरण दिया किया गया है या नहीं, क्या बैंक खाता आवेदक के नाम पर है या नहीं आदि?
इस तरह के सत्यापन के प्रयोजनों के लिए आवेदन दायर करने वाले पक्षकार को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने की जरूरत नहीं होगी। केवल उसे तभी आना होगा,जब न्यायालय को दस्तावेजों की वास्तविकता के बारे में कोई गंभीर संदेह पैदा होगा या कुछ विसंगतियों का पता लगेगा और आवेदक का अधिवक्ता उन संदेह या विसंगतियों को दूर नहीं कर पाता है या समझा नहीं पाता है। ऐसे मामलों में अदालत पक्षकार की उपस्थिति पर जोर दे सकती है और उसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए या व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया जा सकता है।
ऐसे मामलों में जहां व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता होती है। उन मामलों में निर्धारित तारीख पर अदालत में पेश होने के लिए संबंधित व्यक्ति को प्रवेश पास जारी करने के लिए न्यायालय को आदेश पारित करना होगा। आवेदन करने वाले व्यक्ति की भौतिक उपस्थिति केवल तभी करवाई जानी चाहिए,जब यह बहुत आवश्यक हो।
(7) यदि न्यायालय आवेदन के अवलोकन व आवेदक द्वारा पेश दस्तावेजों को देखने के बाद इस बात से संतुष्ट है कि आवेदक राशि पाने का हकदार है, तो न्यायालय यह आदेश देगा कि के-2 प्रक्रिया के माध्यम से आवेदक के विशिष्ट खाते में राशि का हस्तांतरण कर दिया जाए।
(8) इसके बाद, कोर्ट ऑफिस/ अकाउंट्स सेक्शन के -2 पोर्टल पर लॉग इन करने के बाद बैंक मैंडेट फॉर्म जनरेट करेगा। बैंक मैंडेट फाॅर्म का प्रिंट आउट निकालकर आवेदक के वकील को दिया जाएगा ताकि वह उस पर आवेदक के हस्ताक्षर करवाकर ला सकें। वहीं आवेदक के हस्ताक्षर को सत्यापित करने के लिए इस बैंक मैंडेट फाॅर्म पर वकील को भी अपने हस्ताक्षर करने होंगे। वकील को अपने हस्ताक्षर के नीचे अपनी बार काउंसिल की नामांकन संख्या भी लिखनी होगी। बैंक मैंडेट फाॅर्म पर हस्ताक्षर के लिए अदालत में पक्षकार को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने की आवश्यकता नहीं होगी। यह मैंडेट फाॅर्म तीन दिनों की अधिकतम अवधि के साथ वापस करना होगा। इसके बाद अगर यह फाॅर्म जमा कराया जाता है तो उस पर डीडीओ के हस्ताक्षर भी करवाने होंगे। मिश्रित या विविध बिलों के सृजन के लिए न्यायालय के कार्यालय द्वारा अन्य कदम उठाए जाएंगे। मैंडेट फाॅर्म में बैंक खाते का सारा विवरण होगा और उस पर आवेदक के हस्ताक्षर भी होंगे। इसलिए विविध बिल पर उसके हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बाद, के -2 द्वारा आवश्यक सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा और अपेक्षित राशि के -2 के न्यायिक खाते से सीधा संबंधित पार्टी के बैंक खाते में स्थानांतरित कर दी जाएगी।
(9) न्यायालय राशि प्राप्त करने वाले व्यक्ति पर किसी भी रजिस्टर में उसके हस्ताक्षर करने के लिए जोर नहीं दे सकता है।
(10) यदि आवेदक का प्रतिनिधित्व एक अधिवक्ता द्वारा नहीं किया जाता है तो ऐसी स्थिति में आवेदक के व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में पेश हुए बिना उसे भुगतान नहीं किया जा सकता है। इस तरह के मामलों में उन्हें प्रवेश पास जारी करना होगा। लेकिन, न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि आवेदक को दोबारा कोर्ट न ही आना पड़े। एक बार में ही उसे अदालत बुलाकर सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएं।
(11) वैवाहिक मामलों में रखरखाव या भरण-पोषण के भुगतान से संबंधित आदेशों के मामले में, यह उचित होगा कि संबंधित न्यायालय आरटीजीएस के माध्यम से रखरखाव के भुगतान के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दें या भुगतान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति किसी अन्य प्रत्यक्ष हस्तांतरण के तरीके से रख-रखाव पाने के हकदार व्यक्ति के खाते में उस राशि को भेज दें।
अदालत ने दिशानिर्देश जारी करने के बाद कहा कि-
'' COVID 19 की महामारी के कारण, वादी पिछले तीन महीनों से भुगतान प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए, सभी न्यायालयों को जल्द से जल्द भुगतान के लिए किए गए आवेदनों को निपटाने का प्रयास करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सकें कि योग्य वादकर्ताओं को जल्द से जल्द राशि प्राप्त हो सकें। न्यायालय प्रतिदिन के भुगतानों को किसी विशेष संख्या तक सीमित नहीं कर सकता हैं। जब हम इन निर्देश को जारी कर रहे हैं तो यह भी हम स्पष्ट करते हैं कि यह सुनिश्चित करना न्यायालयों का कर्तव्य होगा कि यह राशि उन लोगों को भुगतान की जाए जो इसके असल हकदार हैं।''
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि के -2 तक त्वरित पहुंच की सुविधा उपलब्ध कराई जाए ताकि न्यायालय भुगतान को जारी करने में सक्षम हो सकें।
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