माफ़ीनामे के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने डेक्कन हेराल्ड और तीन चैनलों के ख़िलाफ़ आपराधिक अवमानना का केस वापस लिया, 73 लाख का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

29 Jan 2020 5:06 AM GMT

  • माफ़ीनामे के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने डेक्कन हेराल्ड और तीन चैनलों के ख़िलाफ़ आपराधिक अवमानना का केस वापस लिया, 73 लाख का जुर्माना  लगाया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को डेक्कन हेराल्ड और तीन स्थानीय कन्नड़ न्यूज़ चैनलों बीटीवी, टीवी5, और दिग्विजय के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी ख़बर छापने को लेकर उनके ख़िलाफ़ दायर आपराधिक अवमानना की याचिका को बिना शर्त माफ़ीनामे के बाद ख़ारिज कर दिया। इन समाचार माध्यमों ने इस मुक़दमे की लागत के रूप में ₹73 लाख देने का वादा भी किया।

    न्यायमूर्ति अभय ओक और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की पीठ ने आरोपों को वापस लेते हुए कहा,

    "हम उम्मीद करते हैं और हमारा विश्वास है कि यह आदेश उन लोगों के लिए एक सबक़ होगा जो यह समझते हैं कि वे न्यायपालिका के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के आरोप लगा सकते हैं। हम उच्च्तर अदालतों की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं और …जो हुआ उसे देखते हुए हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। नरमी दिखाने और दया को कमज़ोरी नहीं समझा जाना चाहिए।"

    डेक्कन हेराल्ड ने एक ख़बर प्रकाशित की थी जिसमें लिखा था कि शहर के सिविल अदालत (बेंगलुरु) के एक जज के निवास से कर्नाटक हाईकोर्ट के ख़ुफ़िया विभाग के छापे में ₹ 9 करोड़ बरामद हुए। इसके बाद तीन न्यूज़ चैनलों ने इस ख़बर को दिखाया और बीटीवी ने तो इन नोटों को गिनते हुए भी दिखाया। पीठ ने अपने आदेश में कहा, "हम इस वजह से भी नरमी दिखा रहे हैं क्योंकि हम किसी को जेल नहीं भेजना चाहते।"

    प्रतिवादियों से कहा गया है कि वे मुक़दमे पर ख़र्च हुई राशि का भुगतान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास इस आदेश के मिलने के आठ सप्ताह के भीतर जमा करा दें।

    बीटीवी पर ₹20 लाख का जुर्माना लगाया गया है, अदालत ने उसे ₹10 लाख इस आदेश के मिलने के आठ सप्ताह के भीतर और शेष राशि 16 सप्ताह बाद जमा करने को कहा है।

    डेक्कन हेराल्ड पर ₹30 लाख का जुर्माना लगाया गया है। TV5 पर ₹8 लाख और दिग्विजय टीवी पर ₹10 लाख का जुर्माना लगा है। डेक्कन हेराल्ड ने अपने रिपोर्टर के ख़िलाफ़ एक आंतरिक अनुशासनात्मक जांच कराने पर भी राज़ी हो गया है। यह जांच एक अवकाश प्राप्त न्यायिक अधिकारी करेगा।

    इनमें से सभी संस्थाओं ने ख़बरों के विनियमन और न्यायिक ख़बरों को प्रकाशन से पहले उसकी जांच करने का भी आश्वासन भी दिया है।

    अदालत ने कहा कि डेक्कन हेराल्ड जिसका प्रसार संख्या 2.2 लाख है, ने जो ख़बर प्रकाशित की थी वह अदालत को अपमानित करने के अलावा और कुछ नहीं था जबकि उसके पास इस तरह का कोई सबूत नहीं था। उसकी रिपोर्ट में हाईकोर्ट को अपमानित किया गया है और सारे नियमों को धता बताया गया है।

    अदालत ने कहा,

    "इस ख़बर को जज के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और उनके मित्रों ने पढ़ा होगा। न्यायिक अधिकारी के पास अपने बचाव का कोई रास्ता नहीं है। स्वनियंत्रण का नियम यह कहता है कि ग़लत ख़बर का जवाब नहीं दिया जाए। इस रिपोर्ट ने न केवल संस्थान को बदनाम किया, बल्कि नागरिकों और मुक़दमादारों की नज़र में इस संस्थान को नीचा दिखाया है।

    संवैधानिक अदालत के एक जज के रूप में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा का व्यापक अधिकार है। पर जब इस तरह के बकवास आरोप लगाए जाते हैं, हम शायद ही उसे संरक्षण दे पाते हैं।"

    अदालत ने राज्य की इस सलाह को मान लिया कि इस मामले में जुर्माने की राशि को न्यायिक अधिकारियों के घरों, राष्ट्रीय खेल गांव, कोरमंगला की मरम्मत पर ख़र्च की जाए।

    पीठ ने यह भी कहा कि एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने जो सुझाव दिए हैं उस पर हाईकोर्ट प्रशासनिक रूप से ग़ौर करेगा -

    * सभी टीवी और प्रिंट मीडिया यह सुनिश्चित करेंगे कि हाईकोर्ट और निचली अदालत की रिपोर्टिंग करनेवाले रिपोर्टरों की अच्छी ट्रेनिंग सुनिश्चित करेंगे और बेहतर है कि उनके पास आधारभूत क़ानूनी शिक्षा हो।

    * अदालतों की रिपोर्टिंग से जुड़े पत्रकारों की हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार कार्यालय से पंजीकरण आवश्यक है।

    * हर रिपोर्टर एक ऐसा बैज लगाएँगे ताकि उनकी पहचान हो सके। ये बैज उन्हें हाईकोर्ट का रजिस्ट्रार जारी करेगा।

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