"चार साल से निलंबित चल रहे डॉ कफील खान के निलंबन का कारण बताएं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा
LiveLaw News Network
3 Aug 2021 11:53 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार साल से निलंबित चल रहे डॉक्टर कफील खान के निलंबन के कारण के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि डॉ कफील को चार साल से अधिक समय से निलंबित रखने का कारण बताना उत्तर प्रदेश राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है।
संक्षेप में मामला
डॉ कफील खान ने उनके खिलाफ पुन: जांच के आदेश देने के अनुशासनात्मक प्राधिकारी के आदेश को चुनौती देने के साथ-साथ 22 अगस्त 2017 को उनके निलंबन को चुनौती दी है।
न्यायालय के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया था, लेकिन इसने निष्कर्षों से असहमति जताई थी (उसे चिकित्सा लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त करते हुए) और इसने आगे की जांच करने का निर्देश दिया था।
अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने इसके साथ ही लगभग 11 महीनों के बाद यह आदेश (पुनः जांच) पारित करने का विकल्प चुना।
अदालत ने कहा कि,
"अनुशासनात्मक प्राधिकारी की ओर से आगे की कार्रवाई में देरी के बारे में नहीं बताया गया है।"
डॉ कफील खान के बारे में
डॉ कफील को बीआरडी ऑक्सीजन त्रासदी के बाद निलंबित कर दिया गया था, जिसमें लीक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति अचानक बंद होने के बाद 63 मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। जांच के बाद मंजूरी मिलने के बाद डॉ कफील को छोड़कर उनके साथ निलंबित किए गए अन्य सभी आरोपियों को बहाल कर दिया गया है।
शुरू में उन्हें अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्य करके एक उद्धारकर्ता के रूप में कार्य करने की सूचना मिली थी।
बच्चों को सांस लेने के लिए सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए नायक के रूप में सम्मानित होने के बावजूद उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (लोक सेवक, या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 308 (गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की, जिसके परिणामस्वरूप चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी हो गई।
डॉ कफील को सितंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया और अप्रैल 2018 में ही रिहा कर दिया गया था। दरअसल, उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए उनकी जमानत याचिका को अनुमति दी थी कि व्यक्तिगत रूप से डॉ खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है।
डॉ कफील को ड्यूटी में लापरवाही का आरोप लगाते हुए सेवा से निलंबित भी कर दिया गया। विभागीय जांच की एक रिपोर्ट ने डॉ कफील को सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉ कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया था।