2020 प्रदर्शन मामला: मुख्यमंत्री भगवंत मान समेत AAP नेताओं के खिलाफ़ दर्ज FIR रद्द, हाईकोर्ट ने कहा– प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं

Amir Ahmad

1 Dec 2025 12:35 PM IST

  • 2020 प्रदर्शन मामला: मुख्यमंत्री भगवंत मान समेत AAP नेताओं के खिलाफ़ दर्ज FIR रद्द, हाईकोर्ट ने कहा– प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2020 में चंडीगढ़ में हुए प्रदर्शन से जुड़े दंगा मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान समेत आम आदमी पार्टी (AAP) के कई नेताओं के खिलाफ दर्ज FIR और उससे जुड़ी सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपियों के विरुद्ध कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत लगाए गए आरोपों के आवश्यक तत्व भी स्थापित नहीं होते।

    जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने दंगा, गैरकानूनी जमावड़ा, लोक सेवक को चोट पहुंचाने और सरकारी कर्तव्य के निर्वहन में बाधा से संबंधित धाराओं के अंतर्गत दर्ज FIR व आरोपपत्र को निरस्त करते हुए कहा कि जिस दिन यह प्रदर्शन हुआ उस समय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144 लागू नहीं थी। ऐसे में प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोकने का कोई कानूनी आधार नहीं था। अदालत ने यह भी नोट किया कि कथित पथराव करने वालों में से किसी व्यक्ति का नाम तक दर्ज नहीं है और न ही याचिकाकर्ताओं पर किसी प्रकार के उकसावे के ठोस आरोप लगाए गए। उनके विरुद्ध किसी विशेष शब्द इशारे या निर्देश का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे यह साबित हो कि उन्होंने भीड़ को हिंसा के लिए प्रेरित किया हो।

    अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से यही सामने आता है कि जब मजिस्ट्रेट के आदेश पर भीड़ पर पानी की बौछार की गई, उसके बाद अफरातफरी मची और धक्का-मुक्की के दौरान पुलिसकर्मियों को सामान्य चोटें आईं। मेडिकल रिपोर्टों में दर्ज खरोंच, दर्द और सूजन जैसी चोटें भीड़ में धक्का-मुक्की से हो सकती हैं, न कि किसी सुनियोजित हमले से। इसलिए याचिकाकर्ताओं पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि उन्होंने स्वेच्छा से लोक सेवकों पर हमला किया या उन्हें चोट पहुंचाई।

    मामले की पृष्ठभूमि बताते हुए अदालत ने उल्लेख किया कि यह FIR तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान बिजली दरों में वृद्धि के विरोध में आयोजित AAP की रैली के बाद दर्ज की गई थी। FIR में आरोप लगाया गया था कि भगवंत मान, हरपाल चीमा, मीत हेयर, बलजिंदर कौर, अमन अरोड़ा सहित अन्य नेताओं ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च करने के लिए उकसाया। पुलिस का दावा था कि बैरिकेड तोड़े जाने की कोशिश हुई और पानी की बौछार के बाद पत्थर फेंके गए।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि किसी भी नेता के विरुद्ध कोई विशिष्ट कृत्य या भूमिका आरोपित नहीं है और सभी चोटें सामान्य हैं, जो भीड़ में धक्का-मुक्की के कारण होना स्वाभाविक है। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि धारा 144 लागू न होने की स्थिति में इस जमावड़े को गैरकानूनी नहीं माना जा सकता।

    राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के दौरान बल प्रयोग से रोका गया और उनके चोटिल होने के प्रमाण मेडिकल रिपोर्ट से मिलते हैं। हालांकि, अदालत ने रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद पाया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी प्रत्यक्ष कृत्य या उकसावे का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। आरोपपत्र में भी स्वीकार किया गया कि कथित पथराव में शामिल किसी भी व्यक्ति की पहचान अब तक नहीं की जा सकी है।

    अदालत ने यह स्पष्ट किया कि चूंकि गैरकानूनी जमावड़ा ही सिद्ध नहीं होता, इसलिए दंगा, साझा उद्देश्य से अपराध, लोक सेवक को चोट पहुंचाने या उस पर हमला करने जैसी धाराओं के तत्व पूरे नहीं होते। इसी आधार पर एफआईआर और सभी परिणामी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया गया।

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