मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार अध्यक्ष ने चीफ जस्टिस के आवास पर मंदिर गिराए जाने की कथित घटना की जांच की मांग करते हुए CJI को लिखे पत्र पर खेद व्यक्त किया
Amir Ahmad
27 Jan 2025 6:51 AM

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट धन्या कुमार जैन ने चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत को पत्र लिखकर पिछले महीने CJI से शिकायत करने और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के आधिकारिक आवास से कथित तौर पर हनुमान मंदिर हटाए जाने की जांच की मांग करने पर खेद व्यक्त किया।
संदर्भ के लिए, CJI जस्टिस बीआर गवई, पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे अपने पत्र (दिनांक 22 दिसंबर) में बार एसोसिएशन अध्यक्ष ने आरोप लगाया था कि चीफ जस्टिस कैथ के कहने पर चीफ जस्टिस के आवास से मंदिर हटाया गया। पत्र में चीफ जस्टिस कैथ के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की भी प्रार्थना की गई।
स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया द्वारा इस पत्र को व्यापक रूप से कवर किए जाने के कुछ दिनों बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट प्रशासन ने ऐसी खबरों का खंडन किया।
खास बात यह है कि राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने भी स्पष्ट किया कि चीफ जस्टिस के आधिकारिक आवास में ऐसा कोई मंदिर कभी अस्तित्व में नहीं था।
इस पृष्ठभूमि में बार अध्यक्ष ने अब अपने पत्र पर खेद व्यक्त किया।
चीफ जस्टिस को संबोधित एक पत्र (दिनांक 25 जनवरी, 2025) में, बार अध्यक्ष जैन ने कहा कि CJI को लिखे उनके पत्र से भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जिसके लिए वह बेहद दुखी हैं और उन्होंने चीफ जस्टिस से खेद व्यक्त किया।
अपने पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इस संबंध में उनकी ओर से कोई पुनरावृत्ति नहीं होगी।
पत्र का पूरा पाठ यहां पुन: प्रस्तुत किया गया:
"दिनांक 22.12.2024 को मुझे संघ के सद्स्य रवीन्द्र नाथ त्रिपाठी एडवोकेट के द्वारा वेदना पत्र मान्य मुख्य न्यायाधिपति के बंगले के हनुमान मंदिर के दर्शन के लिए प्रस्तुत किया गया, जिसका परिचय मेरे दिनांक में आया था। 23.12.2024 को एक अवेदन पत्र उक्त पत्र की जोच हेतु शासन के उच्च पदासीन मननीयों को प्रेषित किया गया था। उक्त पत्र में शासन पी.डी.बी.एल.यू.डी. एवं मननीय राजिस्ट्रार हाईकोर्ट के द्वारा जबाब प्राप्त हुए, जिसे समाधान कारक स्थिति बनी और मुझे महसूस हुआ कि मेरे पत्र से भ्रम की स्थिति तप्पन्न हुई, जिसके लिए मैं अत्यंत दुखी हूं और माननीय मुख्य न्यायाधिपति के प्रति खेद व्यक्त करता हूं। भविष्य में इस संबंध में मेरे द्वारा कोई पुनरावर्ती नहीं होगी। मैं अपने पूर्वव्रती अवेदन पत्रों पर कोई कार्य नहीं चाहता हूं।"