राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ा सवाल धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने स्टूडेंट की याचिका खारिज की

Amir Ahmad

10 July 2025 2:03 PM IST

  • राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ा सवाल धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने स्टूडेंट की याचिका खारिज की

    राजस्थान हाईकोर्ट ने लॉ के स्टूडेंट द्वारा दाखिल याचिका खारिज की, जिसमें उसने यूनिवर्सिटी की परीक्षा में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से संबंधित सवाल को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला बताया था।

    अनूप कुमार ढांड की एकल पीठ ने कहा,

    "किसी न्यायिक निर्णय पर की गई निष्पक्ष आलोचना वैध है। एक स्टूडेंट शिक्षक द्वारा किसी संवेदनशील मुद्दे से जुड़े न्यायिक निर्णय पर दी गई अकादमिक या व्यक्तिगत राय को धर्म पर हमला नहीं माना जा सकता।"

    अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई नागरिक किसी फैसले पर निबंध या आलोचना लिखता है, जो उसकी व्यक्तिगत व्याख्या को दर्शाता है तो उसे सकारात्मक और रचनात्मक कानूनी विश्लेषण की दृष्टि से देखा जाना चाहिए, जब तक वह अवमानना की श्रेणी में नहीं आता।

    याचिकाकर्ता स्टूडेंट का दावा था कि प्रश्न पत्र की कुछ टिप्पणियां इतनी भड़काऊ थीं कि वे धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकती थीं और यह भारतीय दंड संहिता की धारा 295A का उल्लंघन है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "केवल इस आधार पर कि किसी प्रश्न पत्र की भाषा ने धार्मिक भावनाओं को आहत किया। धारा 295A के तहत कार्रवाई योग्य नहीं है, जब तक यह साबित न हो जाए कि वह सामग्री जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से डाली गई थी।"

    अदालत ने यह भी कहा,

    "शैक्षणिक स्वतंत्रता और शैक्षणिक संस्थाओं की स्वायत्तता को केवल इस आधार पर बाधित नहीं किया जा सकता कि किसी छात्र को भाषा आपत्तिजनक लगी। जब तक वह भाषा स्पष्ट रूप से अवमाननापूर्ण, आपत्तिजनक या मानहानिकारक न हो तब तक ऐसा कोई प्रतिबंध उचित नहीं है।"

    कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि याचिकाकर्ता को छोड़कर किसी अन्य स्टूडेंट ने उस प्रश्न पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी।

    न्यायालय ने अंत में कहा,

    "अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल स्तंभ है, जो नागरिकों को अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार देती है। परीक्षा में पूछा गया प्रश्न मात्र परीक्षक का दृष्टिकोण था, जिसे कानून के मापदंडों के अनुरूप देखा जाना चाहिए, न कि भावनाओं के आधार पर। कानून को तर्क से चलना चाहिए न कि भावनाओं से।"

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