जूनागढ़ हिंसा - गुजरात हाईकोर्ट में पीआईएल, पुलिस हिरासत में कथित हिंसा, पुलिसकर्मियों द्वारा कथित दंगाइयों को सार्वजनिक रूप से पीटे जाने की जांच करने की मांग

Sharafat

27 Jun 2023 5:44 AM GMT

  • जूनागढ़ हिंसा -  गुजरात हाईकोर्ट में पीआईएल, पुलिस हिरासत में कथित हिंसा, पुलिसकर्मियों द्वारा कथित दंगाइयों को सार्वजनिक रूप से पीटे जाने की जांच करने की मांग

    जूनागढ़ भीड़ हिंसा और अन्य कृत्यों में शामिल कथित दंगाइयों की जूनागढ़ पुलिस द्वारा सार्वजनिक पिटाई और हिरासत में हिंसा करने की16 जून की घटना की प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश/वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी द्वारा जांच की मांग करते हुए गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है । .

    लोक अधिकार मंच और अल्पसंख्यक समन्वय समिति द्वारा एडवोकेट आनंद जे. याग्निक के माध्यम से दायर जनहित याचिका में घटना के लिए जिम्मेदार पुलिस कर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ और संदिग्धों/अभियुक्तों की चल संपत्तियों में तोड़फोड़ और विनाश के लिए एफआईआर दर्ज करने की भी मांग की गई है।

    जूनागढ़ में स्थानीय नागरिक निकाय द्वारा सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण करने के आधार पर कुछ इस्लामी धार्मिक स्थलों को तोड़ने के नोटिस जारी करने के बाद हिंसा भड़क उठी।

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ए जे देसाई और जस्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ के सामने जब यह मामला सोमवार को आया तो अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वकील को लोक अभियोजक को जनहित याचिका की एक प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया और मामले को 28 जून को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।

    याचिका में कहा गया है कि 16 जून को जूनागढ़ पुलिस ने 8-10 मुसलमानों को पहले हिरासत में लिया और उसके बाद उन्हें एक मस्जिद/दरगाह के सामने खड़ा कर दिया और उसके बाद सार्वजनिक रूप से उन्हें बेरहमी से कोड़े मारे गए।

    जूनागढ़ पुलिस द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित भारत के नागरिकों की कथित क्रूर सार्वजनिक पिटाई के कुछ वीडियो का जिक्र करते हुए जनहित याचिका में कहा गया है कि

    " भारत के नागरिकों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के और बिना किसी सक्षम अदालत के उन्हें दोषी ठहराए दंडित करने की ऐसी पुलिस क्रूरता, कानून और प्रवर्तन एजेंसी द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन का सबसे खराब रूप है। भले ही पुलिस क्रूरता के पीड़ितों को एक सक्षम अदालत के अनुसार दोषी ठहराया जाए, लेकिन स्वतंत्र भारत में सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अलग और अज्ञात है... इस तरह की सजा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा औपनिवेशिक, पुरातन, बर्बर और सभ्य दुनिया के लिए सबसे अमानवीय सजा माना जाता है। यह न केवल पीड़ित के चरित्र को नष्ट करता है बल्कि एक ऐसे राष्ट्र की छवि को भी धूमिल करता है जो कानून के शासन पर चलता है न कि इसके अपवादों पर।"

    जनहित याचिका में आगे कहा गया है कि जिन लोगों को बेरहमी से पीटा गया था , उन्हें बहुत देर से आरोपी के रूप में जेएमएफसी के सामने पेश किया गया। सार्वजनिक पिटाई के बाद उन्हीं पीड़ितों को पहले संदिग्ध/आरोपी के रूप में बिना किसी उपचार के पुलिस स्टेशन में हिरासत में रखा गया और उन्हें कोई चिकित्सा उपचार भी उपलब्ध नहीं कराया गया।

    " पीड़ितों को मानसिक और शारीरिक रूप से इतना प्रताड़ित किया गया कि जब उन्हें एलडी जेएमएफसी के सामने पेश किया गया तो वे इस औपचारिक सवाल के जवाब में एक शब्द भी नहीं बोल सके कि क्या गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने पीड़ितों के साथ उनके सामने पेश होने तक दुर्व्यवहार किया।"

    पीआईएल याचिका में कहा गया है कि पीड़ितों को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है। पीड़ितों की गिरफ्तारी के बाद जूनागढ़ पुलिस उनके घर गई और घर में तोड़फोड़ की।

    जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि कम से कम छह किशोरों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें हिरासत में हिंसा और यातना का शिकार बनाया गया और उन्होंने मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लिखित रूप में शिकायतें भी प्रस्तुत की। हालांकि, किशोर के माता-पिता ने बाद में उक्त शिकायतें वापस ले ली

    " संयोग से जेएमएफसी ने शिकायत वापस लेने की परिस्थितियों की जांच नहीं की और ऐसे आवेदन की वास्तविकता का पता नहीं लगाया। इसके अलावा जेएमएफसी ने यह पता लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया कि क्या इस तरह का आवेदन किशोरों और अन्य की स्वतंत्र इच्छा से वाप्स लिया गया है या जूनागढ़ पुलिस की धमकी और दबाव के तहत।"

    याचिका में कहा गया है इस पहलू पर पूछताछ और जांच की आवश्यकता है।

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