अडानी ग्रुप पर रिपोर्टिंग के खिलाफ प्रतिबंधात्मक आदेश पर दिल्ली कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Amir Ahmad
18 Sept 2025 3:13 PM IST

दिल्ली कोर्ट ने गुरुवार को पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा दायर उस अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के 6 सितंबर के एकतरफा आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में उन्हें अडानी ग्रुप के बारे में खबरें प्रकाशित करने से रोक दिया गया था।
रोहिणी कोर्ट के डिस्ट्रिक्ट जज सुनील चौधरी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान जज ने मौखिक रूप से पूछा कि क्या गुहा के पास अपने कथित मानहानिकारक लेखों के दावों की पुष्टि के लिए कोई सामग्री है।
गुहा की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पेस ने अदालत को बताया उनके पास सामग्री है। वह एक जिम्मेदार पत्रकार हैं। अगर उनसे स्पष्टीकरण मांगा जाता तो वह जरूर देते।
पत्रकार की दलीलें
पेस ने मुख्य रूप से तीन तर्क दिए:
ओवरबोर्ड राहत: याचिका में दिए गए आदेश में एकतरफा निषेधाज्ञा (ex-parte injunction) देने का कोई कारण नहीं बताया गया।
मानहानिकारक हिस्सा: यह स्पष्ट नहीं किया गया कि लेख का कौन सा हिस्सा मानहानिकारक है।
समूह की अन्य कंपनियां: यह आदेश न केवल अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के खिलाफ बल्कि उसके समूह की उन कंपनियों के खिलाफ भी सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाता है, जो इस मुकदमे में पक्षकार भी नहीं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि अडानी एंटरप्राइजेज के लिए एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त करने की बिल्कुल कोई तात्कालिकता नहीं थी, क्योंकि लेख 2017 और उसके बाद के थे। उन्होंने आरोप लगाया कि इस आदेश के आधार पर केंद्र सरकार ने उन सभी यूआरएल को हटाने का आदेश दिया, जिनका मुकदमे में जिक्र भी नहीं था।
पेस ने कहा,
"यह सचमुच प्रतिवादी को मानहानि के मामले में जज की कुर्सी पर बैठाने जैसा है।"
अडानी एंटरप्राइजेज की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट अनुराग अहलूवालिया ने तर्क दिया कि कंपनी के खिलाफ बिना किसी आधार या सामग्री के लगातार मानहानिकारक लेख प्रकाशित किए गए। उन्होंने एक लेख का हवाला दिया जिसका शीर्षक था "जो अमेरिका के लिए एलन मस्क हैं, वही मोदी के लिए अडानी हैं।"
अहलूवालिया ने कहा,
"ये लेख खुद ही सब कुछ बता रहे हैं। यह तो सिर्फ शुरुआत है। अगले लेखों में और भी भयानक भाषा का इस्तेमाल किया गया। यह एक धारणा बनाता है कि मैं बिल्कुल भी एक पेशेवर कंपनी नहीं हूं।"
उन्होंने आरोप लगाया कि पत्रकारों ने कंपनी के खिलाफ घोटाले के आरोप लगाए। हालांकि इन आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई सामग्री सार्वजनिक नहीं की है।
उन्होंने कहा,
"बार-बार ऐसे लेख मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं। अगर वे निष्पक्ष पत्रकार होते तो वे कहते यह सबूत है, हमारे पास सामग्री है और हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं'।
पत्रकारों ने रोहिणी कोर्ट के स्पेशल सिविल जज अनुज कुमार सिंह द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी है।
ट्रायल कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया कि पत्रकारों द्वारा प्रकाशित रिपोर्टें मानहानिकारक और असत्यापित थीं।
जज ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के पक्ष में पत्रकारों और तीन वेबसाइटों - pranjoy.in, adaniwatch.org और adanifiles.com.au के खिलाफ एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा पारित की थी।
न्यायालय ने कहा था कि अडानी ग्रुप के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला बनता है और संतुलन उनके पक्ष में है यह देखते हुए कि लगातार मानहानिकारक रिपोर्टिंग से उनकी सार्वजनिक छवि को और नुकसान हो सकता है और "मीडिया ट्रायल" हो सकता है।
कोर्ट ने पत्रकारों को आदेश दिया कि वे 5 दिनों के भीतर अपने संबंधित लेखों या सोशल मीडिया पोस्ट से मानहानिकारक सामग्री को हटा दें।

