प्रिया रमानी अवमानना मामला : पत्रकार ग़ज़ाला वहाब ने अदालत को बताया -एमजे अकबर के हाथों हुआ उनका कथित यौन उत्पीड़न

LiveLaw News Network

11 Dec 2019 6:46 AM GMT

  • प्रिया रमानी अवमानना मामला : पत्रकार ग़ज़ाला वहाब ने अदालत को बताया -एमजे अकबर के हाथों हुआ उनका कथित यौन उत्पीड़न

    वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ग़ज़ाला वहाब ने अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रे विशाल पाहुजा के समक्ष प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ एमजे अकबर आपराधिक अवमानना मामले में अपना बयान दर्ज कराया।

    ग़ज़ाला ने अपने बयान में इस बात को तफ़सील से बताया कि एशियन एज अख़बार में काम करने के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ने किस तरह से उसका कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया। पिछले साल उन्होंने इस बारे में एक प्रकाशन में विस्तार से लिखा था।

    ग़ज़ाला वहाब ने अपने बयान की शुरुआत में अपने पेशे और शैक्षिक परिवेश के बारे में बताया।

    इस सब के बीच में, वरिष्ठ वक़ील गीता लूथरा ने अपनी शिक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में विस्तृत विवरण देने के ग़ज़ाला वहाब के बयान पर आपत्ति ली। उन्होंने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 और 9 के तहत इसकी इजाज़त नहीं है, क्योंकि यह इस मामले से जुड़ा न तो कोई साक्ष्य है न ही कोई मुद्दा और न ही किसी तथ्य से इसका कोई निकट संबंध है।

    लूथरा की निरंतर आपत्ति के कारण बहस छिड़ गई और रमानी के वक़ील रेबेका मैमन जॉन ने भी हस्तक्षेप किया। उन्होंने अदालत के निर्णय का हवाला दिया जिसमें अवमानना के एक मामले में सच को स्थापित करने के लिए आरोपी को अपनी बात बताने की अनुमति दी गई थी।

    जॉन ने आगे कहा कि बचाव पक्ष के गवाह से कैसे पूछताछ की जाए इस बारे में लूथरा का मुझे निर्देश देना गलत है। उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता के गवाह ने एमजे अकबर की प्रतिष्ठा का गुणगान किया पर बचाव पक्ष के गवाह को अपनी बात रखने की इजाज़त नहीं दी जा रही है।

    बाद में मजिस्ट्रेट ने लूथरा की आपत्ति को दरकिनार कर दिया और कहा -

    "साक्ष्य की स्वीकार्यता और प्रासंगिकता पर बाद में ग़ौर किया जाएगा। अभी अभियोजन इस मामले को निर्धारित करने के लिए जांच के बारे में अपनी समझ रख सकता है"।

    इसके बाद, ग़ज़ाला ने अकबर के हाथों अपने यौन उत्पीड़न की बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि उनके बैठने की जगह अकबर के ऑफ़िस के ठीक बाहर थी और अकबर अपने ऑफ़िस का दरवाज़ा हमेशा खुला रखते थे। सिर्फ़ मीटिंग के समय ही वह उसे बंद करते थे। 'एक बार मैं अपने ऑफ़िस के कंप्यूटर पर काम कर रही थी जब मुझे लगा कि वह मुझे घूर रहे हैं," उन्होंने अदालत को बताया।

    उन्होंने कहा कि इसके बाद अकबर एशियन एज के इंट्रानेट पर उसे निजी संदेश भेजते रहे और बाद में उन्हें अपने ऑफ़िस में आने को कहा। वह जैसे ही उनके ऑफ़िस में प्रवेश की, उन्होंने उससे शब्दकोश में एक शब्द ढूंढने को कहा और यह शब्दकोश इतना नीचे रखा हुआ था कि आप उसे बिना झुके या नीचे बैठे नहीं देख सकते।

    "मैं जैसे ही शब्द ढूँढने झुकी, अकबर अपने सीट से उठकर आए और मेरी कमर पकड़ ली। उन्होंने मेरी छाती और मेरी जांघों पर अपनी उंगलियां फेरानीए शुरू कर दीं। उन्होंने दरवाज़े पर अपनी पीठ टिका दी थी ताकि वे मुझे दरवाज़ा खोलने से रोक सकें। जैसे ही मैंने इसका प्रतिरोध किया, उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया और अपनी उंगलियों से मेरी छाती को दबा दिया।" वहाब ने अदालत को बताया।

    उन्होंने कहा कि इसके बाद एक बार फिर उनके साथ उस ऑफ़िस में यौन उत्पीड़न हुआ और उन्होंने मेरे होंठों को चूमने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि इस घटना से वह सन्न रह गई रोते हुए बाहर भागी।

    इस घटना के बारे में जब उन्होंने ऑफ़िस में किसी को बताया, तो उस महिला ने कहा कि वह उसके इस व्यवहार से अचंभित नहीं है और वह इस मामले में उसकी कोई मदद नहीं कर सकती। हमारे इस सहयोगी ने यह भी कहा कि इसमें ग़लती उसकी ख़ुद की है और उसे ज़्यादा सावधान रहना चाहिए था।

    अपने बयान में ग़ज़ाला वहाब ने कहा कि एशियन एज में पुरुष बॉस या सहयोगियों के हाथों यौन उत्पीड़न की शिकायतों की सुनवाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसलिए उसने एमजे अकबर को लिखा कि उन्होंने उसके साथ जो व्यवहार किया वह उसे पसंद नहीं करती। वहाब ने उन्हें लिखा कि वह उनका यह व्यवहार उसे स्वीकार्य नहीं है।

    अकबर ने अपने जवाब में उसे लिखा वह उसके बारे में सच्ची भावनाएं रखते हैं। बाद में उन्हें बताया गया कि अकबर उन्हें फ़ीचर विभाग देखने के लिए अहमदाबाद भेजना चाहते हैं। उन्होंने ग़ज़ाला वहाब को बताया कि कंपनी उन्हें रहने को जगह देगी जहां वे भी कभी कभार उससे मिलने आएंगे।

    ग़ज़ाला वहाब ने अदालत को बताया कि जब मामला यहां तक पहुंचा तो उन्होंने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया। जिस दिन उन्हें अहमदाबाद जाना था, वह अपने घर पर ही रही और अकबर के निजी सचिव को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया। इसके बाद अकबर ने उसे कॉल किया कि वह उसके घर आ रहे हैं और इस बात से वह इतनी घबराई कि उसने तत्काल आगरा के लिए ट्रेन पकड़ ली।

    उसने बताया कि इस घटना के बारे में अपने मां-बाप को भी नहीं बताया। वह अपने परिवार से आगरा में काम करने के लिए आने वाले पहली सदस्य थी और उसको अंदेशा था कि अगर उन्हें पता चलेगा तो वे फिर उसे कभी घर छोड़ने नहीं देंगे।

    अपनी पूछताछ के दौरान अंत में ग़ज़ाला वहाब ने कहा कि अकबर का रसूख़ ऐसा था कि उसके लिए सार्वजनिक रूप से अपनी कहानी बताना संभव नहीं था। पर 'मी टू मूवमेंट' के दौरान उसको ऐसा करना का साहस पैदा हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने अकबर के ख़िलाफ़ किसी तरह की क़ानूनी कार्रवाई की इच्छा नहीं रही।

    पूछताछ के दौरान, यह देखा गया कि जब ग़ज़ाला वहाब अपने यौन उत्पीड़न की कहानी बता रही थी, श्रीमती लूथरा सहित शिकायतकर्ता के वक़ील उनके बयानों को चटखारे ले-लेकर सुन रहे थे। बयान पूरे होने के बाद लूथरा ने इस पूरे बयान पर आपत्ति करते हुए इसे असंगत और सुनी-सुनाई बातें बतायी और कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 और 9 के तहत इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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