जोशीमठ संकट: 'ज़मीन डूबने के असली कारण का पता लगाने को लेकर राज्य गंभीर नहीं', उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को पेश होने का निर्देश दिया

Shahadat

7 Sep 2023 9:29 AM GMT

  • जोशीमठ संकट: ज़मीन डूबने के असली कारण का पता लगाने को लेकर राज्य गंभीर नहीं, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को पेश होने का निर्देश दिया

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के जोशीमठ क्षेत्र में भूस्खलन और धंसाव का अध्ययन करने के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों को शामिल नहीं करने के लिए राज्य अधिकारियों की खिंचाई की।

    चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा,

    “उत्तरदाताओं ने स्टडी के संचालन में उपरोक्त क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स को शामिल नहीं किया है। हमें यह अभिव्यक्ति मिलती है कि राज्य भूमि धंसाव के वास्तविक कारणों का पता लगाने और उभरी स्थिति से गंभीरता से निपटने के प्रति गंभीर नहीं है।

    सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात का भी उल्लेख किया कि पिछली सुनवाई में उसने जोशीमठ क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए जल विज्ञान, भूविज्ञान, आपदा प्रबंधन और भूस्खलन सहित क्षेत्रों के एक्सपर्ट को शामिल करने का निर्देश दिया गया था।

    खंडपीठ ने आगे कहा कि केवल गहन अध्ययन से ही हमें पता चलेगा कि भूमि धंसाव क्यों हुआ है, इससे कैसे निपटा जाए और भविष्य में इसे कैसे रोका जाए।

    आदेश का अनुपालन न करने पर कोर्ट ने मुख्य सचिव, उत्तराखंड सरकार को अगली तारीख पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया।

    ये टिप्पणियां वकील स्निग्धा तिवारी के माध्यम से पीसी तिवारी द्वारा दायर याचिका के जवाब में आईं। इस याचिका में जलविज्ञानी, भूविज्ञानी, ग्लेशियोलॉजिस्ट, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ, भूस्खलन एक्सपर्ट सहित एक्सपर्ट्स की स्वतंत्र समिति के लिए राज्य को निर्देश देने की मांग की गई थी, जिससे जोशीमठ में भूमि डूबने और रेनी और तपोवन में भूस्खलन की मौजूदा ज़मीनी स्थिति का आकलन कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सके।

    याचिकाओं में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि जोशीमठ क्षेत्र में तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर बांध नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन के अस्थिर विकास के कारण भूमि धंसने और खिसकने की घटनाएं हो रही हैं। इससे जोशीमठ और बांध निर्माण स्थल के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले हजारों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है।

    जनवरी में राज्य के वकील ने अदालत को सूचित किया था कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को पहले ही अध्ययन करने और जोशीमठ क्षेत्र में चल रही भूवैज्ञानिक गतिविधि पर रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त किया गया था।

    वहीं याचिकाकर्ता की वकील स्निग्धा तिवारी ने सुझाव दिया कि जल विज्ञान, भूविज्ञान, ग्लेशियोलॉजी, आपदा प्रबंधन, भू-आकृति विज्ञान और भूस्खलन विशेषज्ञों के क्षेत्रों में स्वतंत्र विशेषज्ञों को ऐसे किसी भी अध्ययन से जोड़ा जा सकता है।

    सुझाव पर विचार करते हुए न्यायालय ने उपरोक्त क्षेत्रों के एक्सपर्ट को शामिल करने का निर्देश दिया।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि मई में भी ऐसा कोई एक्सपर्ट अध्ययन से नहीं जुड़ा था।

    आदेश का अनुपालन न करने पर विचार करते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया,

    "उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव अगली तारीख पर हमारे सामने फिजिकल या वर्चुअल रूप से उपस्थित रहेंगे।"

    मामले को अब अगली सुनवाई के लिए 22 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

    केस टाइटल: पी.सी. तिवारी बनाम उत्तराखंड राज्य

    याचिकाकर्ता के वकील: स्निग्धा तिवारी और अभिजय नेगी, राजीव सिंह बिष्ट, अपर मुख्य सरकारी वकील, राज्य, संजय जैन, सीनियर वकील, डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता की सहायता से, प्रतिवादी क्रमांक 2 और 3 के वकील।

    4. राजेंद्र डोभाल, सीनियर वकील, शुभांग डोभाल की सहायता से, प्रतिवादी नंबर 4 के वकील।

    5. वी.के. काप्रुवान, भारत संघ के सरकारी वकील।

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