जोशीमठ संकट- 'सख्ती से निर्माण प्रतिबंध लगाएं, और आगे होने वाली क्षति को रोकने के लिए रिपोर्ट जमा करें': उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए

Brij Nandan

14 Jan 2023 4:51 AM GMT

  • जोशीमठ संकट- सख्ती से निर्माण प्रतिबंध लगाएं, और आगे होने वाली क्षति को रोकने के लिए रिपोर्ट जमा करें: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए

    उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह चमोली जिले के बाढ़ प्रभावित जोशीमठ शहर में निर्माण पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करे।

    चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आधिकारिक अधिकारियों को मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त करने और अगले दो महीनों के भीतर और अधिक नुकसान को रोकने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा।

    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि समिति में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सीईओ पीयूष रौतेला और कार्यकारी निदेशक, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, एमपीएस बिष्ट को शामिल किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने यह आदेश वर्ष 2021 में ऋषि गंगा नदी पर हायरडो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट, और धौलीगंगा नदी पर एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना के कारण एक ग्लेशियर के फटने, अचानक बाढ़ का सामना करना पड़ा, मद्देनजर दायर एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए पारित किया। जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी।

    अब, इस याचिका में, जोशीमठ क्षेत्र में हाल के भूगर्भीय विकास के संबंध में एक अंतरिम आवेदन दायर किया गया।

    याचिकाकर्ता (पी.सी. तिवारी) ने इस आवेदन में मिश्रा आयोग की 1976 की एक रिपोर्ट संलग्न की है जिसमें कहा गया है कि जोशीमठ चट्टान और गाद पर बैठा है, जो भूस्खलन के परिणामस्वरूप जमा हुआ है और इसकी ठोस और स्थिर नींव नहीं है।

    रिपोर्ट ने निर्माण परियोजनाओं के उपक्रम के खिलाफ चेतावनी दी और उक्त रिपोर्ट में सुझाए गए उपचारात्मक उपाय, अन्य बातों के साथ-साथ, भारी निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने एम.पी. बिष्ट और पीयूष रौतेला एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र द्वारा तैयार एक लेख भी प्रस्तुत किया। जिसमें जोशीमठ की बिगड़ती स्थिति के बारे में चेतावनी दी है।

    लेख की सामग्री और 1976 की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया और उन पर कार्रवाई नहीं की गई।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि हालांकि राज्य और केंद्र सरकारें क्षेत्र के निवासियों के लिए कदम उठा रही हैं, यह आवश्यक है कि क्षेत्र के संबंधित विशेषज्ञ जोशीमठ क्षेत्र में मौजूद स्थिति का अध्ययन करें ताकि यह आकलन किया जा सके कि कैसे स्थिति को बचाया जा सकता है, और आगे होने वाली क्षति को बचाया जा सकता है।

    नतीजतन, न्यायालय ने राज्य को हाइड्रोलॉजी, भूविज्ञान, ग्लेशियोलॉजी, आपदा प्रबंधन, भू-आकृति विज्ञान और भूस्खलन विशेषज्ञों के क्षेत्र से स्वतंत्र विशेषज्ञों को एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए, 24 मई2023 को उच्च न्यायालय में एक सीलबंद कवर में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    अंत में, राज्य सरकार को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, जोशीमठ के आदेश के अनुसार क्षेत्र में निर्माण और ब्लास्टिंग गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देते हुए, N.T.P.C द्वारा सभी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाते हुए, अदालत ने मामले को 24 मई, 2023 को सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।

    उल्लेखनीय है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ में केवल 12 दिनों में 5.4 सेमी की तेजी से गिरावट देखी गई। राज्य सरकार के एक अनुमान के अनुसार, होटल और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के अलावा 678 घर खतरे में हैं।

    केस टाइटल- पी.सी. तिवारी बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य

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